अमनपसंद गिलानी व नेक दिल मनमोहन सिंह..
ऊंट के विवाह में गधा गीत गा रहा था, कोर्इ श्रोता नहीं था, कोर्इ दर्शक नहीं था। तब संस्कृत के किसी कवि के हदय के तार बज उठे और उनसे जो संगीत निकला उसने इन शब्दों का रूप ले लिया-
उष्ट्रानाम् विवाहेषु गीतम गायंति गर्दभा:।
परस्परम् प्रशंसन्ति अहो रूपम् अहो ध्वनि।।
अर्थात् ऊंट के विवाह में गधा गीत गा रहा है और किसी श्रोता या दर्शक के न होने पर दोनों परस्पर ही प्रशंसा कर रहे हैं। गधा ऊंट से कहता है कि आपका क्या रूप है, और ऊंट गधे से कहता है कि आपका क्या स्वर है?
भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी इसी तर्ज पर कार्य कर रहे हैं। एक ने अपने समकक्ष को अमन पसंद कहा है तो दूसरे ने पहले को नेक दिल और अमन पसंदी का पैरोकार कहा है। ‘अमन पसंद’ उस देश का पैरोकार है जिस पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता और ‘नेकदिल उस देश का प्रतिनिधि है जो अपने ‘नेकदिली के कारण ही बर्बाद हुआ है। सदियों से यहां ऐसे ‘नेकदिल होते आये हैं जो अपने मानवतावाद के कारण, अपने मानवीय गुणों के कारण ही फंसे और देशहित का सौदा करके जाने अनजाने में ही देश को धोखा दे गये। आज जब हमारे प्रधानमंत्री गिलानी को अमन् पसंद कहे जा रहे हैं तो उनसे यह पूछा जा सकता है कि जिस व्यकित को आप अमन पसंद कह रहे हो उसके रहते पाकिस्तान में हिंदुओ की सामूहिक हत्या और धर्म परिवर्तन का शर्मनाक खेल क्यों चल रहा है? अभी पिछले दिनों ही पाकिस्तान मे चार हिंदू डाक्टरों को मार दिया गया। इसके अतिरिक्त पाक प्रधानमंत्री से हमारे नेक दिल प्रधानमंत्री क्या ये कह सकते हैं कि वो सरस्वती नदी के किनारे सारस्वत ब्राहमणों द्वारा जहां वेदों की ऋचाओ की रचना की गयी थी वहां उनकी स्मृति में कोर्इ उधान स्थापित करा दें। अथवा जहां संस्कृत के प्रथम व्याकरणाचार्य ऋषि पाणिनि का जन्म स्थल है वहां संस्कृत व्याकरण का कोर्इ गुरुकुल स्थापित करा दें, अथवा आचार्य चाणक्य के विश्वविधालय तक्षशिला का पुनरुद्धार कराके इस महामानव की मूर्ति वहां स्थापित करा दें, अथवा महाभारत कालीन कटासराज जहां यक्ष युधिष्ठिर संवाद हुआ था उसकी कोर्इ आकर्षक दृश्यावली उत्कीर्ण करा दें, अथवा शालिवा हनकोट (स्यालकोट) पूरण भक्त और धर्मवीर हकीकत राय के जन्मस्थल का पुनरुद्धार दोनों देशों के सांझे इतिहास के दृष्टिगत करा दें अथवा जहां राजा पौरुष ने तथाकथित विश्व विेजेता सिंकदर के दांत खटटे किये थे, उस पवित्र नदी झेलम के तट पर उसकी स्मृति में कोर्इ स्मारक बनवा दें, अथवा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पुत्र लव द्वारा स्थापित लवपुर (लाहौर) और कुश द्वारा स्थापित कुषपुर (कुसुर) को उनका पुराना नाम दे अथवा क्या आप भक्त प्रहलाद के मूल स्थान (मुलतान) में भक्त प्रहलाद के नाम पर किसी ध्यान
केन्द्र की स्थापित करा सकते हैं। अथवा संत सिरोमणि गुरु नानक देव जी के जन्म स्थल ननकाना साहब को उसकी पुरानी आभा और दिव्यता लौटा सकते हैं अथवा अफगानिस्तान के पठानों को पराजित करने वाले नरश्रेष्ठ हरि सिंह नलवा के जन्मस्थल गुजरांवाला का पुनरुद्धार करा सकते हैं अथवा स्वामी रामतीर्थ की जन्म स्थली मुरारी वाला (गुजरानवाला) में स्वामी रामतीर्थ स्मारक का निर्माण करा सकते हैं अथवा धर्मरक्षक महाराजा रणजीत सिंह के समाधि स्थल लाहौर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करा सकते हैं अथवा अफगानिस्तात में दो दिनार में नीलाम हुर्इ माताओं बहनों के अपमान का बदला लेने वाले सिंह सपूत वप्पारखल द्वारा स्थापित रावलपिंडी को भगवान शंकर के गणों की छावनी के रूप में स्थापित करा सकते हैं अथवा राजा पोरस की राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) जिसमें प्रसिद्ध महात्मा गुरु बाबा पीर रतन नाथ जी महाराज की गददी को आज पुन: प्रतिषिठत करा सकते हैं अथवा राजा दाहर की बलिदानी बेटी सूर्यामल और परिमल के बलिदान की स्मृति में सिंध में स्मारक बना सकते हैं, अथवा मोहन जोदड़ो को भारतीय आर्यों की प्राचीन नगरी के रूप में महिमा मंडित करा सकते हैं ?
हमें मालूम है कि मन मोहन के ‘अमन-पसंद गिलानी इनमें से एक भी कार्य नहीं कर सकते। फिर भी मन मोहन सिंह कबूतरी धर्म (कबूतर बिल्ली को देखकर आंखें बंद कर लेता है और सोचता है कि अब बिल्ली को वह दीख नहीं रहा है और हम देखते हैं कि बिल्ली कबूतर को खा जाती है) का पालन कर रहे हैं। भारत के नेताओं के इस ‘कबूतरी धर्म के कारण भारत ने अतीत में काफी नुकसान उठाया है, पर दुर्भाग्य का विषय है कि हम आज भी उसी पुरानी डगर पर ही चले जा रहे हैं। नागों को दूध पिलाने की हमारी पुरानी परंपरा है और दुर्भाग्यवश मन मोहन सिंह उसी परंपरा का अनुसरण कर रहे हैं।
मुख्य संपादक, उगता भारत