भारत को समझो’ अभियान के तहत वास्तव में पहले यह समझना चाहिए कि भारत क्या था? भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति विश्व में कैसे फैली? प्रथमतया इस तथ्य की जानकारी होना आवश्यक है। तभी भारत को वास्तविक अर्थ में समझा जा सकता है। हमें समझना होगा कि इसराइल के यहूदी कौन हैं?
शेख कौन हैं? पठान कौन है? फिनिशिया, चाइल्डिया, बेबीलोनिया, ईरान,जुडिया, सीरिया आदि देशों के निवासी कौन हैं? अफरीदी, काबुली, बलोच कौन हैं? इनका भारतवर्ष से क्या संबंध है?
यह देश कैसे बने और इनमें भारतवर्ष में से जाकर कौन लोग बसे ? भारत के बारे में कारवां आते गए और हिंदुस्तां बनता गया – नेहरू का अथवा अन्य लेखकों का यह कथन कितना उचित है?
अब थोड़ा सा विषय पर विचार करते हैं। भारत से पश्चिम की ओर सर्वप्रथम अफरीदी, काबुली और बलूचियों के देश आते हैं। इन देशों में इस्लाम के प्रचार के पूर्व आर्य ही निवास करते थे ।यहीं पर गांधार था ।जहां की गांधारी राजा धृतराष्ट्र की रानी थी।
इसी के पास राजा गजसिंह का बसाया हुआ गजनी शहर अब तक विद्यमान है। काबुल में जो पठान जाति रहती है ,वह पूर्व में झूंसी अर्थात प्रयाग के पूर्व में गंगा नदी के किनारे पर एक राजधानी होती थी, उसकी रहने वाली चंद्रवंशी क्षत्रिय जाति पठान है आज।
अफगानिस्तान का असली नाम उच्चारण में उप गण स्थान है ।यह गण ‘अफरीदी ‘आर्यों से द्वेष रखने के कारण ही आर्यों के शासन से अलग रहते थे। इसी प्रकार बलूचिस्तान भी बल उच्च स्थान शब्द का अपभ्रंश है। इसमें केलात नामक नगर अब तक विद्यमान है। यह केलात तब का है जब केलात नामी पतित आर्य क्षत्रिय यहां आकर बसे थे। यह क्षत्रिय होने से ही बल में उच्च स्थान प्राप्त कर सके थे।
मनुस्मृति में जहां अन्य पतित क्षत्रियों के नाम बताए गए है वहां ‘किराता यवना शका’ कहकर किरात भी गिनाए गए हैं।
फिर अफगानिस्तान से आगे चलते हैं। जहां ईरान है। जिसको पारश्य देश भी कहते हैं ।यह वह जाति है जो भारतवर्ष में पारसी नाम से जानी जाती है। यह जाति अति प्राचीन काल से आर्यों से पृथक होकर ईरान में बसी थी। पारसी लोग फारसी भाषा में सरस्वती नदी को हरहवती ,सरयू नदी को हरयु ,भरत को फरत और बाद में यूफरत ,भोपाल को बेबीलोन ,काशी को कास्सी, आर्यन को ईरान बोलते हैं ।इस प्रकार पारसी भी भारतीय आर्यों की ही शाखा है।
ईरान के पास ही अरब है। वैदिक भाषा में अर्व घोड़े को कहते हैं। जहां घोड़े रहते हैं उस स्थान को अर्ब कहते हैं। आज भी अरबी घोड़ा सर्वोपरि समझा जाता है। आर्यों ने ही इस देश का नाम अरब रखा था।
स्मृतियों के पढ़ने वाले जानते हैं कि आर्यों से उत्पन्न एक वर्ण शंकर जाति को’ शैख’ कहते हैं। यह शंकरजाति ब्राह्मण के योग से उत्पन्न होती है । प्रतीत होता है कि वही शैख जाति अरब में बस कर शेख हो गई ,क्योंकि शेखों का अरब में वही मान है जो भारत में ब्राह्मणों का है। मुसलमान होने से पहले वहां के निवासी अपने आप को ब्राह्मण ही कहते थे।
अरब में अब तक बहुत से आर्य निवास करते हैं परंतु उनका आचार्य यहां के हिंदुओं का सा नहीं है ।जर्मन युद्ध के समय यहां के कई फौजी सिपाही बगदाद, बसरा और मेसोपोटामिया आदि में रहकर यहां आए हैं, जो बतलाते हैं कि वहां अब तक पुराने हिंदुओं के चिन्ह पाए जाते हैं ।इन घटनाओं से अच्छी प्रकार सिद्ध होता है कि अरब निवासी आर्य ही हैं।
आधुनिक नक्शे के अनुसार फारस, भूमध्य सागर, मेसोपोटामिया को सब जानते हैं। फिनिशिया पश्चिम एशिया में भूमध्य सागर के किनारे पर है। सीरिया देश फिनिशिया से मिला हुआ पूर्व की तरफ है। बेबीलोनिया सीरिया के दक्षिण फारस के पश्चिम और अरब के उत्तर में है। चाइल्डिया भी इसी के पास है। जुडिया को सीरिया भी कहते हैं, वह भी यहीं पर है और मेसोपोटामिया सीरिया के पश्चिम में है ।इन देश के निवासियों का परिचय संबंध प्राचीन आर्यों से है।
फिनिशिया देश संस्कृत के शब्द पाणि से बना है। जिसका अर्थ है वैश्य वर्ण के व्यापार करने वाले लोग। अर्थात जो व्यापार करने के लिए बनिए (बणिक, वाणिज्यिक ) वहां बस गए थे। उनका देश आज फिनिशिया है। मद्रास के आसपास के क्षेत्र में सागवान की लकड़ी अधिक होती है जिसकी बड़े-बड़े नाव या जहाज बनाकर ये पणिक या पणि दूर देश को गए और पश्चिम एशिया में भूमध्य सागर के किनारे पर आबाद हो गए।
इसके अलावा चाइल्डिया देश चोल कल वालों का है।
इस प्रकार आर्य लोग अपनी आर्य सभ्यता के साथ पूर्व से पश्चिम में पहुंचे। इस प्रकार चाईल्डिया, फिनिशिया, बेबीलोनिया वाले भारतवासी आर्य ही है।
संस्कृत में शब्द होता है यह्व।चाइल्डियन लोग इसको यहवे बोलते हैं। जिसका अर्थ महान होता है।
यह्व शब्द ऋग्वेद 9 /75 /1, 3/ 1 /12 और 8 / 13 /24 में महान के अर्थ में आया है । जेंद भाषा में यही यह्व शब्द यजु हो गया है।
हजरत मूसा ने इसको जिहोवा शब्द बोला है। ग्रिफिथ ने इसका अर्थ लॉर्ड के अर्थ मे किया है। जुडिया यहूदियों का देश है। इसी में हजरत मूसा और हज़रत ईसा जैसे जगत प्रसिद्ध धर्माचार्य उत्पन्न हुए। बाइबिल में लिखा है कि पश्चिम में आने वालों की एक ही भाषा थी और वह सब पूर्व से ही आए हैं।
And the whole was of one language,one speech.And it came to pass ,as they journeyed from the east.
(Genesis chapter 11th)
उनके विषय में पोकाक नामी विद्वान अपने इंडिया इन ग्रीस नामी ग्रंथ में लिखता है कि युडा (जुडा ) जाति भारत की यदु अर्थात यदुवंशीय क्षत्रिय जाति ही है।
The tribe of yudah is,in fact ,the very Yadu of which considerable notice has been taken in my previous remarks.
(India in Greece)page 22.
तिलक महोदय ने शब्द साम्य के हवाले से दिखलाया है कि यहूदियों का यहोवा शब्द संस्कृत के यहु शब्द का ही अपभ्रंश है।
इस विषय में बाबू उमेश चंद्र विद्या रत्न का कहना है कि ज्यू शब्द संस्कृत का ही है, जो की मेदिनी कोष का यह वचन उद्धृत करते हैं कि “जूराकाशे सरस्वत्याम पिशाचे यवनेअपि च” अर्थात जू शब्द यवन शब्द का ही अपभ्रंश है।
“मानवेर आदि जन्मभूमि” पृष्ठ तीन पर विद्यारत्न जी कहते हैं कि राजा सगर की आज्ञा से यवनों ने जी पल्लीस्थान में निवास किया था ।वही फिलिस्तीन( Pelestine) हो गया और यवन शब्द का ही विकार यवन —जोन और ‘जू’ है।
इस वर्णन से सिद्ध होता है कि यदुवंशी क्षत्रिय राजा सगर के द्वारा यवन करके निकाले गए जो पेलेस्टाइन में बसे। यही बात बाई बिल और पोकाक के वचनों से भी सिद्ध होती है। बाइबिल का नूहू का वर्णन भी मनु के तूफान का ही द्योतक है।
अतः यहूदियों के आर्य होने में कुछ भी संदेह नहीं रह जाता। साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि यह भारत से ही जाकर वहां बसे है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इब्राहिम जैसे उर्दू के शब्द भी संस्कृत के ब्रह्म , ऐ ब्रह्म , ब्राह्मण जैसे शब्दों से ही बना है। पुरुषोत्तम नागेश ओक जी ने इस शब्द के संबंध में अपने साहित्य में बड़ी गंभीर जानकारी दी है।
कुल मिलाकर हमारी मान्यता है कि संपूर्ण विश्व विरासत भारत की मौलिक सांस्कृतिक चेतना है। भारत की इस आध्यात्मिक सांस्कृतिक मौलिक चेतना को जितना अधिक समझ जाएगा उतना ही हमें विश्व इतिहास की जानकारी होती जाएगी और जितना ही हम विश्व इतिहास को जानते जाएंगे उतना ही हम भारत को समझते जाएंगे। बौद्धिक हिजड़ों ने भारत की सांस्कृतिक चेतना के साथ अपघात किया है उनका कुचक्र और षड्यंत्र भी आज उजागर करने की आवश्यकता है। भारत को खड़ा करने के लिए और बड़ा (विश्वगुरु बनाने ) करने के लिए कुछ ‘बड़ा’ तो करना ही पड़ेगा। अपने आप पर सोचना भी पड़ेगा और अपने आप को ही खोजना भी पड़ेगा।
जुडिया जो यहूदियों का देश है जहां हजरत मूसा, हजरत ईसा पैदा हुए थे वह आज का इसराइल है ।यह इजरायल के लोग यदुवंशी हैं। इसलिए भारत के लोगों का यहूदियों के साथ भ्रातृभाव एवं सद्भाव होने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।यदि भारत आज इसराइल के साथ खड़े होकर अप89998ने भ्रातृ धर्म का निर्वहन कर रहा है तो वह श्रेयस्कर ही है।
भारत का यह कदम सर्वथा उचित है कि वह आतंकी संगठन हमास का विरोध करें और इजराइल का समर्थन करें।
हमास का जो समर्थन करने वाले लोग हैं अथवा देश हैं वे आतंक को समर्थन देने वाले कहे जा सकते हैं। आतंक का समर्थन करने वाले स्वयं नंगे हो रहे हैं।
- देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
अध्यक्ष : उगता भारत समाचार पत्र(वैदिक -संपत्ति , लेखक पंडित रघुनंदन शर्मा की पुस्तक के आधार पर)