इस इतिहास में घृणा है , दुश्मनी का भाव है और भारत के प्रति अलगाव है । इसलिए वहाँ सेना तंत्र लोकतन्त्र पर हावी रहा , क्योंकि घृणा, दुश्मनी और अलगाव को लोकतन्त्र सदा ही खतम करना चाहता है, जबकि सेना तंत्र इन्ही नकारात्मक बिन्दुओं को अपना आधार बनाकर चलता है । पाकिस्तान की आवाम झूठे और घृणास्पद इतिहास को पढ़ पढ़कर भारत के प्रति दुश्मनी से भरी रहती है । यह कहना कि दोनों मुल्कों के लोग अमन चाहते हैं, भारत के प्रति तो सच है, पर पाकिस्तान के प्रति सच नहीं है । पाकिस्तान की जनता
की मनोभावनाओं को वहाँ के सेना प्रमुखों ने सदा ही समझा है और यही कारण है कि पाकिस्तान के हर सैनिक तानाशाह ने अपने द्वारा किसी निर्वाचित प्रधान मंत्री के तख्ता पलट के समय भारत से देश को खतरा होने की बात कही है ।
भारत में वर्तमान में ‘चूड़ी राज’ चल रहा है । यहाँ का लोकतन्त्र चूड़ियों पर कुर्बान हो गया है । बड़ी शांति से ‘चूड़ी वालों’ की सत्ता चल रही है उनका आका अमेरीका है । वह जैसे नचाता है मंच पर चूड़ियों की झंकार वैसा ही सुर निकालती है । एफडीआई पर अमेरीका ने देश में क्या गुल खिलाया है? यह किसी से छिपा नहीं है । पाकिस्तान में उसके 20-25 सैनिकों की हत्या करके अमेरीका उससे माफी मांगने का नाटक कर रहा है,
और पाकिस्तान की सेना की पीठ पर वहाँ की सारी आवाम उठ खड़ी हुई है । पाकिस्तानी नेतृत्व के साथ इस समय चीन है, तो जनता के साथ वहाँ के अतिवादी संगठन , कठमुल्ला और सेना हैं । भारत के लिए यह दोनों संयोग ही खतरनाक हैं । यदि वहाँ वर्तमान नेतृत्व सत्तासीन रहता है तो चीन की राह पर वह भारत और अमेरिका के विरूद अब तीखी बातें करेगा, जिसे वहाँ की जनता और सेना का समर्थन मिलेगा, और यदि
पाकिस्तान में तख़्ता पलट होता है तो कठमुल्ले और आतंकवादी भारत के खिलाफ उग्रता पैदा करेंगे । पाकिस्तान के परमाणु हथियार इस समय सर्वाधिक असुरक्षित हैं, जैसा कि वहाँ के एक पूर्व विदेश मंत्री ने भी कहा है। अब यदि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर किसी भी प्रकार से आतंकियों का कब्जा होता है तो क्या होगा?….कल्पना से भी डर लगता है ।
भारत के चूड़ी राज के रंगीले बादशाह सत्ता सुंदरी के मोह जाल में फंसे पड़े हैं और खिसियाते हुए पाकिस्तान
के प्रधान मंत्री को अमन पसंद कह रहे हैं।
इन्हें पता है कि पर्दे के पीछे क्या हो रहा है, और पाकिस्तान किधर जा रहा है? परन्तु ये सच को “सच” के रूप में स्वीकार न करने की भारी भूल कर रहे हैं । अमेरिका ने पहले दोनों विश्व युद्धों में ‘दूर’ बैठकर हथियारों का व्यापार किया था और मुनाफा ही नहीं कमाया था बल्कि अपनी चौधराहट भी कायम की थी । पर अब वक्त बदल गया है। उसे अब युद्ध की मुख्य भूमिका में उसकी नीयति ने ला खड़ा किया है। वक्त के इंसाफ का हथौड़ा उसके सिरपर पड़ चुका है । अब उसे अपने पुराने ‘पापों’ का फल भोगना ही पड़ेगा । उसकी चौधराहट पर वार हो रहा है और वह निरंतर कमजोर होता जा रहा एक राष्ट्र बन चुका है । भारत फिर भी समझ नहीं रहा है । चीन भारत को घेर रहा है और भारत घिरता जा रहा है । यह एक सुलगता सवाल है कि भारत के लिए इतने बड़े “पाप” का आखिर भागी कौन होगा?