ममता बैनर्जी ने देश की जनता के उस निर्णय को समझा है जिसे वह मनमोहन सरकार के खिलाफ ले चुकी थी। एफडीआई पर सरकारी नीति पर देश की पूरी जनता आसमत है, पर मनमोहन सिंह की विनम्रता कठोर तानाशाह की भांति देश की जनता की भावनाओं को कुचलती जा रही थी। वह बिलकुल लापरवाह होकर देश की हुकूमत की गाड़ी को चला रहे है। दुख की बात है कि उनकी गाड़ी की अधिकांश सवारियाँ भी नींद मे झटके ले रही हैं और एक दो मंत्रियो के अलावा कोई भी ‘जाग’ नहीं रहा है।
देश के जनमत की उपेक्षा लोकतंत्र को कलंकित करती है, और उसके संचलकों के लिए कब्र खोदने का काम किया करती है। मनमोहन सिंह इस सच को जानते हैं, पर वो यह भी जानते हैं कि सोनिया जी के आशीर्वाद से उन्होनें देश पर बहुत हुकूमत कर ली। फिर भी देश की जनता ने उन्हें ‘केयरटेकर’ से अधिक कुछ नहीं माना। अतः ऐसी जनता पर उन्हें गुस्सा आने लगा है। इसलिए वह हठी होकर शासन करने केई अपना “साहस’ मानने लगे हैं। जबकि यह साहस नहीं दुस्साहस है। दुस्साहसी लोग अभी भी जनप्रिय नहीं हो पते हैं। जनप्रिय वही लोग होते है जिनके जोश के साथ होश जुड़ा होता है। जोश और जिद्द का कोई रिश्ता नहीं है, जोश और विवेक का रिश्ता जरूर है। क्योकि विवेक व्यक्ति की दूरदर्शित से और ‘कर्तव्य बोध’ को स्पष्ट करता है। यदि मनमोहन की विनम्रता देश के लिए बेठेगी है। इसलिए लोग उन्हें पसंद नहीं कर रहे हैं। वह केयरटेकर इसलिए है कि वो किसी और के लिए काम कर रहे हैं, अपने लिए काम करने की तो उन्होनें कभी नहीं सोची। एफ॰डी॰आई पर आम सहमति बनाने की गलती भी वह न करें, अपितु जनमत का सम्मान करें। ममता दी ने उनकी लगाम मे झटका देकर शायद उन्हें यही ‘पैगाम’ दिया है इसके लिए ममता दी को धन्यवाद दिया ही जाना चाहिए।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।