नर्इ दिल्ली। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एफडीआर्इ पर अकेले पड़ गये है। उनके साथ खड़े होने के लिए उन्हें हाथ ढूंढने पड़ रहे हैं।
लगता है ‘कांग्रेस का हाथ उनका साथ छोड़ गया है। राजनीति में ऐसा ही होता भी है। जब कोर्इ जहाज डूबने लगता है तो उस पर बैठना अपनी जान को जोखिम में डालना हो जाता है। कांग्रेस अपने ‘मुखिया के साथ डूबना नहीं चाहती। वह उसे अकेला छोड़कर स्वयं किनारे पर पहुंचने के उपाय खोज रही है। पर्दे के पीछे चिंतन इसी बात का है कि किस तरह से मनमोहन सिंह से पल्ला छाड़कर अपना भला कर लिया जाये। ऐसा कभी नहीं कहा जा सकता कि जो कुछ आज हो रहा है। उसका मूल कहीं आज में ही छिपा हो। हमें जो आज मिल रहा है, उसके लिए जिम्मेदार बीता हुआ कल होता है। मनमोहन सिंह जिस फजीहत में आज फंसते हैं उसके लिए केवल एफडीआर्इ प्रकरण ही जिम्मेदार नहीं है बलिक उनके कुशासन का पूरा काल ही जिम्मेदार है।
शरद पवार उनकी सरकार में रहकर गलतियों कर रहे थे-तब वह चुप थे। सुरेश कल्माड़ी जैसे लोग खुली लूट मचा रहे थे-तब वह चुप थे। ए. राजा जैसे लोग देश के सम्मान को कचोट-कचोट कर खा रहे थे- तब भी मनमोहन सिंह चुप थे। चिदंबरम देश में ‘भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों को गढ़-गढ़कर राजनीति में नये-नये शिगूफे छोड़ रहे थे-तब भी वह चुप थे। कनिमोझी स्वयं को बड़ें बाप की बेटी समझकर संविधान की धजिजयां उड़ा रही थी-तब भी वह चुप थे। हां, वह बोल रहे थे तो अमरीका के समर्थन में बोल रहे थे, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी को ‘शांति पुरुष कहकर बोल रहे थे। जिससे राष्ट्र की आत्मा को कष्ट हो रहा था। वह स्वयं को कभी सक्षम प्रधानमंत्री साबित नहीं कर पाये। उन्होनें परमाणु करार पर अपनी सरकार की प्रतिष्ठा को दांव …पर लगाया और वह परमाणु करार को अपनी शर्तों पर पास कराने में सफल हो गये। उससे उनका मनोबल इतना बढ़ गया कि अब एफडीआर्इ पर देश को बेचने के लिए तैयार बैठे हैं। अब कांग्रेस के भीतर से ही आवाज आने लगी है कि मनमोहन सिंह यदि प्रधानमंत्री रहते हैं तो उनके रहते 2014 के चुनावों की वैतरणी को पार करना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। इसलिए जल्दी से जल्दी मनमोहन सिंह को हटाना कांग्रेसियों के लिए अब जरूरी जरूरत हो गर्इ है।
अभी तक मनमोहन सिंह के साथ सानिया गांधी का आशिर्वाद था। इसलिए मनमोहन सिंह को ढोना कांग्रेसियों की मजबूरी थी। परंतु अब सोनिया गांधी का मन कांग्रेस पढ़ रहे हैं इसलिए नये प्रधानमंत्री की तलाश चल गयी है। अभी नहीं लगता कि कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जल्दबाजी करेगी। बहुत उम्मीद है कि अगले चुनावों तक कांग्रेस कोर्इ अन्य प्रधानमंत्री तलाश करने का प्रयास करेगी जो पार्टी की गिरती साख को उठा सके। यदि चुनाव में फिर भी सफलता नहीं मिली तो कम से कम गांधी परिवार को उस शर्मनाक सिथति से यह कहकर बचा लिया जायेगा कि यदि गांधी परिवार से कोर्इ प्रधानमंत्री होता तो शायद ऐसी सिथति न आती। इसलिए सोनिया राहुल से अलग किसी अपने ‘खास को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तलाश करेंगी।
इतना तो तय है कि मनमोहन सिंह की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है। यह उल्टी गिनती तब तक जारी रहेगी जब तक कि गांधी परिवार को कोर्इ अपना विश्वसनीय ‘खास आदमी मनमोहन सिंह का स्थान लेने के लिए नहीं मिल जाता है। चिदंबरम और मनमोहन सिंह दोनों ही कांग्रेस की लुटिया को डुबो रहे हैं। चिदंबरम एक ‘बोगस गृहमंत्री साबित हो चुके हैं तो मनमोहन सिंह एक ‘बोगस प्रधानमंत्री साबित हो चुके हैं। देखते हैं कि ‘बोगस को हटाकर किस काबिल और सक्षम व्यकित पर फोकस जाकर टिकता है।