भारत ऋषिकाओं की भूमि रही है। प्राचीन काल में जहां गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, गोधा, विश्ववारा, अपाला, अदिति आदि ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना महान् योगदान दिया। वर्तमान समय में भारत की बेटी प्रो. पुष्पिता अवस्थी विगत दो दशकों से भारत भूमि से सुदूर सूरीनाम, मॉरिशस से होते हुए नीदरलैंड में हिंदी साधिका के रूप में हिंदी का प्रचार प्रसार कर रही हैं, बल्कि हिंदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति का भी संवर्धन कर रही हैं। १६६० में कानपुर में जन्मी प्रो. पुष्पिता अवस्थी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वसंत महिला महाविद्यालय में बीस वर्षों तक हिंदी विभागाध्यक्ष रहने के बाद वर्ष 2001 से विदेशी भूमि पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में अपना योगदान दे रही हैं।
एक अध्यापक, कवि, लेखक, संपादक, भाषाविद् एवं संस्कृतिकर्मी के रूप में प्रो. पुष्पिता अवस्थी जी की हिंदी, अंग्रेजी, डच व अन्य भाषाओं में लगभग 80 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके साहित्य का अनुवाद भारत की अनेक भाषाओं सहित अंग्रेजी, जर्मन, डच, फ्रेंच, पुर्तगाली, रुसी, स्पानी आदि विदेशी भाषाओं में हो चुका है। प्रो. पुष्पिता अवस्थी के साहित्य में निहित भारतीय संस्कृति के गुणसूत्रों को देखते हुए उनके साहित्य पर देश विदेश के 37 विश्वविद्यालयों में शोधकार्य किये जा रहे हैं। सूरीनाम स्थित भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव एवं हिंदी प्रोफेसर रहते हुए प्रोफेसर पुष्पिता के कुशल संयोजन में 2003 में सूरीनाम में सातवां विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्न हुआ सूरीनाम देश में उनके हिंदी सेवा के लिए वर्ष 2005 में सूरीनाम हिंदी परिषद् द्वारा प्रो. पुष्पिता अवस्थी को “सूरीनाम हिंदी सेवा सम्मान प्रदान किया गया। वर्ष 2006 से वे हिंदी यूनिवर्स फाउन्डेशन’ नीदरलैंड की संस्थापक निदेशक हैं जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार करना है। वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रसार की दिशा में उनके कार्य को देखते हुए उन्हें वर्ष 2017 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा पद्मभूषण डॉ. मोटरि सत्यनारायण पुरस्कार से सममनित किया गया, साथ ही प्रो. पुष्यिता अवस्थी को देश विदेश के अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से भी विभूषित किया गया है।
प्रो.पुष्पिता अवस्थी हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, डच, फ्रेंच एवं अंग्रेजी में समान अधिकार रखती है। इन्हें इनके भाषाई एवं साहित्यिक ज्ञान के आधार पर ही मॉरिशस, जापान, अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित कई यूरोपियन और कैरिबियई देशों में अकादमिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जा चुका है। इन्होंने विश्व के कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में भारतीय संस्कृति, भारतवंशी संस्कृति तथा वैश्विक मानवीय संस्कृति पर विशेष व्याख्यान दिए हैं। लगातार दो दशक से ये भारतवंशी बहुल देशों गुयाना, सुरीनाम, ट्रिनिडाड, फिजी, दक्षिण अफ्रीका और कैरिबियाई देशों व द्वीपों को अपना कार्य क्षेत्र बनाई हुई हैं।
वैश्चिक स्तर पर हिंदी भाषा के प्रसार के क्षेत्र में भी प्रो. पुचिता अवस्थी ने महत्वपूर्ण कार्य किये है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं विदेश में हिंदी पढ़ रहे विद्यार्थियों के लिए अन्य भाषाविद विद्वानों के साथ देवनागरी से शुरुआत करते हुए छह भाषाओं में विशेष पुस्तकें तैयार करना जिनका भारतवंशी बहुल देशों में मॉरिशस, गुयाना, सुरीनाम आदि में उपयोग हो रहा है तथा हिंदी के विद्यार्थी मानक हिंदी सीख रहे हैं। प्रो. पुष्पिता अवस्थी वैश्विक पटल पर हिंदी भाषा एवं भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए जो कार्य कर रही हैं वे निश्चित रूप से उन्हें प्राचीन भारतीय ऋषिकाओं की श्रेणी में रखते हैं ।
प्रवासी साहित्यकार और हिन्दी यूनिवर्स फाउंडेशन की अध्यक्षा प्रो.पुष्पिता अवस्थी द्वारा सृजित “अहिंसा के स्वर” पुस्तक का लोकार्पण हाल ही में भारत के कई शहरो में हुआ। पहला कार्यक्रम पूना के विश्व का सर्वोच्च शांति गुम्बद, MIT world Peace University के संत ज्ञानेश्वर सभागृह में हुआ।
काशी के कृष्णमूर्ति शिक्षण संस्थान, वसंत कॉलेज, राजघाट, जे.कृष्णमूर्ति के मानद उत्तराधिकारी और उनके दर्शन के विश्व प्रसिद्ध प्रवक्ता प्रो.पद्मनाभ कृष्णा और प्राचार्य प्रो. अलका सिंह, वसंत महिला कालेज के हाथों शिक्षकों, विद्यार्थ्यो के बीच अहिंसा के स्वर पुस्तक का लोकार्पण हुआ। दूसरा कार्यक्रम दिल्ली के विज्ञान भवन में मणिपुर और सिक्कम के गवर्नर और श्री अजय मिश्र, गृह राज्यमंत्री को आमंत्रित विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत रत्न श्री राम धारी सिंह दिनकर जी ११५ जयंती पर लोकार्पित और चर्चित हुआ।
इसके बाद दिल्ली के भारतीय प्रेस क्लब में भारत रत्न कवि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार घोषणा के अवसर पर इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ और पत्रकारों के बीच चर्चित हुआ। अगला कार्यक्रम India International center के सभागृह में साहित्यकार बाल स्वरूप राही, श्री नारायण जी सहित अन्य गणमान्य साहित्यकारों के बीच लोकार्पित और चर्चित साथ ही आज के समय में सबसे जरूरी पुस्तक अनुभव की गई। इस अवसर पर 150 से अधिक पुस्तकें वितरित की गई। हरिजन सेवक संघ, गांधी आश्रम, दिल्ली, स्थापना की ९१ जयंती के अवसर पर आयोजित “सद्भावना पर्व “पर पर प्रो.शंकर कुमार सान्याल और लोकेशमुनी के हाथों देश के५०० गांधी दर्शन के चिंतकों के बीच लोकार्पित और चर्चित रही।