पहली दिल्ली : महाभारत से पूर्व ओर महाभारत के युद्ध के कुछ काल पश्चात तक दिल्ली को इंद्रप्रस्थ कहा जाता था। यह राजा इन्द्र की राजधानी थी राजा इन्द्र का स्वर्ग यहीं पर विधमान था तो युधिष्ठर का ‘धर्मराज’ भी यही से चला था। बाद में उनकी पीढियों ने भी यही से शासन किया। सम्राट विक्रमादित्य तक शासको ने यही से शासन किया बाद में इसे अशुभ समझकर छोड़ दिया गया।
दूसरी दिल्ली : राजा अनंगपाल ने दूसरी दिल्ली की स्थापना की। उनके द्वारा जो राजधानी बसाई गयी वह गाँव अनगपुर में थी। उस समय इस राजधानी को अनंगपुर के नाम से ही पुकारा गया था। जिस इंद्रप्रस्थ को अशुभ समझकर छोड़ा गया था। उससे थोड़ा सा अन्यत्र खिसकाकर अब अनंगपुर कहा जाने लगा।
तीसरी दिल्ली: बाद में अनगपुर से अलग (लगभग साढ़े छह किमी दूर) लालकोट नामक नगर बसाया गया इसे ही नई राजधानी का स्वरूप दिया गया। इसका प्रमाण कुतुबमीनार के पास लौह स्तम्भ पर लिखे शब्द व तांबे के सिक्के आदि हैं जो यहां पर की गई खुदाई से मिले है।
चौथी दिल्ली : चौथी दिल्ली राजा पृथ्वीराज चौहान के द्वारा बसायी गयी। उसके किले को आज तक भी पिथोरागढ़ के किले के नाम से जाना जाता है। उसकी राजधानी मे लालकोट और अनंगपुर का क्षेत्र भी सम्मिलित था।
पाँचवी दिल्ली : राजा पृथ्वीराज चौहान के पश्चात मुस्लिम शासक कुटुबुददीन ऐबक मंदिरों को तुड़वाकर एक मीनार बनवाई तथा वहाँ बहुत सी मस्जिदें खड़ी की। पिथौरागढ़ के नजदीक इसके काल में एक नया नगर बस गया। इसे तुर्को की पहली दिल्ली कहा गया।
छठी दिल्ली : खिलजी वंश के काल में सोरी नामक गाँव के पास अलाऊददीन खिलजी ने एक किला बनवाया जिसमे आज कल शाहपुर जाट नामल गाँव बसा है। तब इस किले से अलाऊददीन ने शासन किया।
सातवी दिल्ली : तुगलकवंश में राजधानी तुगलकाबाद के लिए स्थानान्तरित कर दी गई। इसका निमर्ण गायसुद्दीन तुगलक ने (1320-25) में कराया। इसी का थोड़ा सा स्वरूप बदल कर फिरोज तुगलक ने दिया उसने फिरोजाबाद नाम दिया। फिरोज़शाह कोटला इसी के नाम से जाना जाता है। इसी दिल्ली को शेरशाह सूरी ने थोड़ी देर के लिया प्रयोग किया उसने इसी सलीमगढ़ या नूरगढ़ का नाम देना चाहा पर वह चल नहीं पाया।
आठवीं दिल्ली : बादशाह शाहजहाँ ने आगरा से हटाकर अपनी राजधानी दिल्ली को बनाया। 1639 में उसने यहाँ नया नगर बसाया ओर उसे शाहजहाँनाबाद नाम दिया। 1857 तक दिल्ली पर मुगलवंश ने शासन किया।
नौवी दिल्ली : 1911 में अंग्रेगो ने कोलकत्ता से हटाकर अपनी राजधानी दिल्ली मे स्थानान्तरित की। उन्होने नौवी दिल्ली (जिसे नई दिल्ली गलती से कहा जाता है) रायसीना गाँव और मालचा गाँव के किसानों को जबरन उजाड़कर बसाई। 1912 से उन्होनें इसे अपना मुख्यालय घोषित किया। उस समय रायसीना और मालचा जैसे कुल नौ गाँव की साथ हजार एकड़ जमीन को अधिगृहीत (जबरन) किया गया। उस समय ये गाँव पंजाब प्रांत के सोनीपत जिले के गाँव थे। जिनकी तहसील देहली थी। ‘देहली ‘ शब्द रिकॉर्ड मे पहले से ही चला आ रहा था। जोकि पांडवों के काल में पांडवों की देहली से रूढ हो गया था। अंग्रेजों ने देहली को ही इंग्लिश मे डिल्ही कहा।
देहली की स्पेलिंग Dehli होनी चाहिए थी लेकिन उनके उच्चारण दोष के कारण Delhi हो गयी जिसे हम आज तक ज्यों का त्यों ढो रहे है।