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आओ कुछ जाने

भूत बनता, भारत का भविष्य*

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लेखक आर्य सागर खारी ✍

आज भारत के अधिकांश स्कूलों में ‘ हेलोवीन- डे ,बनाया गया जिसे भूतिया त्यौहार भी कहते हैं। इसे त्यौहार कहना त्यौहार शब्द का अपमान है क्योंकि भारत के परिपेक्ष में प्रत्येक त्यौहार के पीछे सार्थकता वैज्ञानिकता उत्साह उमंग छिपा होता है। यूरोप, अमेरिका आदि में यह 31 अक्टूबर को प्रतिवर्ष मनाया जाता है अब भारत में भी मनने लगा है । मध्यकालीन यूरोप में विशेष तौर पर इंग्लैंड आयरलैंड आदि में निवास करने वाले आज के अंग्रेजों के पूर्वज एंग्लो सेक्शन केलटेक जनजाति के जंगली लोग इस दिन अपनी कद्दू की फसल जलाया करते थे। उनका मानना था इस दिन उनके मृत पूर्वज उनके घर आते हैं भूत बनकर ।ऐसे में उनसे उन्हें नुकसान ना हो तो वह तरह-तरह के टोने टोटके करते भूतिया परिधान पहनते थे उल्टे अपने मृत पूर्वजों के कथित भूत को डराने के लिए।

आज भारत में कुछ भी भारतीय नहीं है शिक्षा पद्धति पूरी तरह मध्यकालीन युरोप की मान्यताओं नीतियों से संचालित है। सीबीएसई व आसीएससी बोर्ड द्वारा संचालित अधिकांश फाइव स्टार स्कूलों में आज देश के नोनीहाल भविष्य बच्चों को भूतिया वेशभूषा पहनाकर क्या संदेश इन अक्ल के अंधो ने दिया है। आखिर पश्चिमी अजीबोग़रीब मान्यताओं का आंख मूँदकर इतना अंधानुकरण क्यों?

भारतीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति में 5 वर्ष की आयु से ही बालक को अक्षर ज्ञान का अभ्यास अन्य देशीय भाषाओं का अभ्यास कराया जाता था। माता-पिता बच्चों को सभा व परिवार में कैसे व्यवहार करना चाहिए सीखाते थे। अन्य श्रेष्ठ बातें बच्चा आचार्य के कुल में सीखता था।
आर्य समाज के संस्थापक महान समाज सुधारक क्रांतिकारी सन्यासी महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपने अमर कालजयी ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश के दूसरे से समुल्लास में माता-पिता संतानों को कैसे-कैसे उत्तम उत्तम उपदेश करें कैसे-कैसे उन्हें भूत प्रेत आदि मिथ्या बातों से परिचित कराये संतानों को भय और शंका रूप भूत प्रेत के जाल से कैसे निकाले इसका बहुत सुंदर वर्णन उपदेश महर्षि दयानन्द ने किया है

दुर्भाग्य हमारा अपने ऋषियों के ग्रंथ सुधारवादी साहित्य को हम पढ़ते नहीं यूरोप के जंगली कबीलों की मान्यताओं का पालन हम मॉडर्न अभिभावक के तौर पर कर रहे हैं तरस आता है ऐसे अभिभावकों की बुद्धि पर।

वैदिक शिक्षा पद्धति प्रत्येक मानव मात्र को तर्कशील चिंतनशील बनाती है वैज्ञानिक दर्शन प्रदान करती है । इंडिया का नामकरण भले ही भारत कर दिया हो लेकिन जब तक भारतीय शिक्षा पद्धति को लागू पुनर्स्थापित नहीं किया जाता भारत के भविष्य के साथ यह कथित आधुनिक स्कूल ऐसे ही खिलवाड़ करते रहेंगे।

आर्य सागर खारी ✍

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