गुलाब के फूल के संग कांटे हैं। सोना आग में तपकर निखरता है। अंधेरी रात के साथ सुबह का उजाला जुडा है। काली कोयल की मधुर आवाज है। खारी समुद्र रत्नों का भंडार है। कडुवा नीम का वृक्ष औषधि युक्त है। पांच तत्वों का बना यह जड शरीर आत्मा से जुड कर चैतन्य जीव होकर संसार की रचना कर रहा है। कितना विचित्र मेल है।
परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न हों, सत्य का दीपक आंधी तूफान से भी जलता है। कभी भारत ज्ञान विज्ञान तथा आध्यात्म में जगतगुरू रहा था, वहीं भारत गुलाम हुआ और टुकड़ों में भी बंटा रहा। भारत माता की पराधीनता की बेडियां करने के लिए कमल सा कोयल आचरण करने वाल और सुंदर सपनों की उम्र युवावस्था कटार की तीक्ष्ण धार की उत्साह युक्त रही है। भारत माता के क्रांतिकारी पुत्र अलगर परिस्थितियों तथा वातावरण में जन्म लेते रहे हैं। ज्ञान विज्ञान का लाभ जन जन को मिले, सभी प्रेमपूर्वक हिलमिल कर रहें इसी सपने को लेकर आजादी का स्वर निकला था।
शेर मासाहारी है तो उसने सभी जानवरों का खा नहीं लिया। हाथी शाकाहारी है तो वह समाप्त नहीं हो गया। खुले वातावरण में सभी को अपने रग में जीने का अवसर ही स्वतंत्रता है। मछली को यदि दूध में रखा जाए तो वह मर जाएगी लेकिन पानी में वह जीवित रहती है। अधिक खाने वालों की मृत्यु कम खाने वालों से अधिक होती है। तितली फूलों पर मंडराती है। बत्तख पानी में तैरती है। यह समय चक्र है जो सर्दी गरमी और बरसात के रूप में आ जा रहा है। जन्मकाल यौवन, वृद्घ मरण में एकता नहीं, बसंत और पतक्षण में ठहरता नहीं है दिन और रात में छिपना नही है सुबह दोपहर शाम और रात में भी चल रहा है। सृष्टिï प्रलय इसने देखे हैं बर्फ के पहाडों नदियों के मैदानों तटों रेगिस्तान के कंकड पत्थरों तथा बीहड जंगलों में भी जिंदा रहा है।
स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्घ अधिकार है। आंख है लेकिन ज्योति नहीं है, वह अंधा है कान है लेकिन श्रवण शक्ति नहीं है वह बहरा है। जीभ है लेकिन वाणी नहीं है वह गूंगा है आत्मविश्वास हमारे जीवित होने का प्रमाण पत्र है। सामथ्र्य ही जीवन है और दुर्बलता ही मृत्यु स्वाभिमान ही आजादी और जिंदगी का दूसरा नाम है।
भारत की भौगोलिक सीमाओं की तरह मर्यादा की सीमाएं भी हैं। कोयल बसंत में गाती है, लेकिन वर्षा, ऋतु आते ही मैढकों को बादल की गरज के स्वर में स्वागत करने देती है। यहां मूर्ति में भी प्राण प्रतिमा की स्थापना होती है, वह पत्थर नही रहता। हमारा इष्टïदेव हो जाता है। मुसीबत तथा कठिनाईयां जिंदगी की प्रयोगशाला बन जाती है, जिंदगी रंग बिरंगे रंगों में छिटकी छटा है। जहां अनेकता में एकता है। चांद की प्रत्येक कला के रूप में हर तिथि अपना महत्व रखती है। एक के बिना दूसरा अधूरा है एक दूसरे का निर्माण कर रहा है। हमारे राष्टï्र ध्वज तिरंगे झंडे में सहकारी हरियाली को केसरिया संगठन का आधार है जिसके मध्य में श्वेत शांति में विकास का धर्मचक्र स्थित है। यह ध्वज एकता की मजबूत डोर में बंधा आध्यात्म की बांसुरी से ऊंचाईयों के शिखर पर लहराता हुआ अपनी जमीन से जुदा है। विश्व रंग मंच पर अपनी पहचान से दोहरा रहा है। अभिनव भारत जहां योगेश्वर श्री कृष्ण भगवान हैं और जहां गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन हैं। वहीं परश्री विजय विभूति और अचल नीति है ऐसा मेरा मत है।
आज जनआंदोलन और धार्मिक संगठन काठ की हांडी साबित हो रहे हैं। पहले जन आंदोलन के नायक एक लंगोटी में रहकर गोरक्षा के लिए अपने प्राणों की भी आहूति देने के लिए आगे आते थे धार्मिक संगठन शराब बेडी और नशायुक्त भारत की स्थापना के लिए अपना घर परिवार छोडऩे से भी नहीं हिचकते थे। आज मठाधीश बनने की होड मची है। साम्राज्य बदलने वाले चाणक्य राजधानी से बाहर कुटिया में रहते थे। राजपाट घर परिवार छोडकर महावीर, बुद्घ जनकल्याण का मार्ग दिखाते थे स्वामी दयानंद कहते थे हर व्यक्ति को अपनी उन्नति से संतुष्टï नहीं रहना चाहिए बल्कि सबकी उन्नति में अपनी उन्नित समझनी चाहिए।
नेपोलियम बोनापार्ट को शत्रु से इतना डर नहीं लगता था जितना शराब से। कहावत है शैतान जहां नहीं जा सकता वहां शराब को भेज देता है। शराब को लाइसेंस से बिकवाने वालों के कभी इस कहावत की ओर ध्यान नहीं दिया। हमें नशामुक्त और शाकाहारी भारत के पुर्ननिर्माण को व्रत लेना है। मेरा विश्वास है कि गोहत्या बंदी और शराब बंदी लागू न होने में भ्रष्टï विलासता की सोच है।