इतिहास साक्षी है कि न्यायधर्म व मानवता को छोडकर विद्वेषपूर्ण शत्रुता की भावना से बनाई गयी कुटनीति कुछ काल के पश्चात चलाने वालों की भी मौत का कारण बनती है। दूसरों का धन, मान, जीवन, चरित्र तथा संस्थाओं के हत्यारे एक दिन एक दूसरे के ही सुख शांति तथा संपदा के हत्यारे बन जाते हैं। ईराक, ईरान, इजराइल, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के जीवित उदाहरण हमारे समक्ष हैं। यदि थोड़ा और पीछे ऐतिहासिक सत्य को देखें तो क्रूर हत्यारे एवं लुटेरे तैमूरलंग ने कुरआन से काफिरों (जो सातवें आसमानी अल्लाह, मुहम्मद साहब और कुरआन को नही मानते) की हत्या तथा लूट के उद्देश्य से बिना किसी कारण भारत पर हमले करके मंदिरों को लूटा, औरतों को जबरन मुसलमान बना निकाह किया, बच्चों को छोडकर मुसलमान न बनने वाले युवाओं व वृद्घों को मौत के घाट उतार दिया। उनकी गर्दनों को धड़ से अलग करके मीनारें बनाई, एवं अपनी आगवानी की शोभा हेतु सिरों की डोरी में पिरोकर हार बनाये। जब तक तैमूर लंग यह अत्याचार आर्यखालसा हिंदुओं के साथ करता रहा तब तक किसी मुसलमान ने विरोध न किया। उसी तैमूरलंग ने इसी खूनी परंपरा को वापिस लौट कर अरब के मुसलमानों पर यह कहकर चलाया कि तुम मुसलमान तो हो परंतु कुरआन के अनुसार सच्चे नहीं। उसने वहां भी अनेक स्थानों पर हिंदुओं के ही समान मुसलमानों के भी लाखों सिर काटकर मीनारें बनाईं। इस घटना को प्रसिद्घ मुस्लिम लेखक अनवर शेख ने अपनी इंटरनेट पर प्राप्त पुस्तक इस्लाम, सैक्स एण्ड वायलेंस में लिखा है। वर्तमान में वोट शासन की लोभी विदेशी कांग्रेस सरकार दूरदृष्टिï को छोड शीघ्र सत्ता सुख पाने की आशा में सत्य, न्याय, व मानवता को छोडकर मुस्लिम आरक्षण तथा न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने के मोहपाश से बचे। बताया जाता है कि पूर्वकाल में इनके ही समान एक ऐसा मूर्ख गवरगण्ड राजा था जिसके यहां टके सेर भाजी व टके सेर का खाना था।
वह न्याय सत्य व वास्तविकता को छोड मनमानी करता था। वह फांसी उसे नहीं देता था जिसने पाप किया हो अपितु उसे जिस का गला उस फांसी के फंदे के साईज का होता था। एक दिन जब कोई और न मिला तो परंपरा की पूर्णता हेतु उसके अधिकारियों ने उसे ही फांसी पर चढा दिया क्योंकि उसकी गर्दन फंदे के नाप की थी। ढांचा तोडने पर दण्ड किंतु कश्मीर में 108 मंदिर तोडने पर कोई कार्रवाई नहीं। विश्व सम्राट विश्वगुरू व सोने की चिडिया कहलाने वाले भारत में जहां 1947 तक रूपया डालर व पाउंड के बराबर था, आज इतिहास की सबसे गंदी भ्रष्टïाचार व पक्षपात पूर्ण सरकार राज कर रही है। तथाकथित स्वतंत्रता के 64 वर्ष पश्चात भी अनेक आर्यखालसा हिंदू क्र ांतिकारियों द्वारा गोरों को निकालने के पश्चात भी स्वराज, स्वदेशी राजा अधिकारी तथा स्वदेशी कानून नहीं प्राप्त हुई। भ्रष्टïाचार इस सीमा तक है कि उच्चतम न्यायालय को भी प्रभावित किया जाता है। गत दिनों उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय कोई भी साधारण बुद्घिमान उचित नहीं मान सकता।
फिर मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के मंदिर को तोडकर विदेशी हमलावर द्वारा रह गये ढांचे में जहां अनेक वर्षों से नमाज भी न होती थी तथा शरीयत कानून से वह मस्जिद न थी, उसे आर्यों द्वारा तोडकर अपने धर्मस्थान को पवित्र कर के अधिकार में लेना क्यों अपराध माना गया? जबकि यूरोशलम में ईसाई भूमि पर कब्जा कर मस्जिद तोडना अपराध नहीं। स्वयं सउदी अरब द्वारा इस्लामिकों की मस्जिद तोड स्थान खाली करवाना अपराध नहीं?
(ख) भारतमाता लक्ष्मी सरस्वती तथा सीता आदि देवियों के चित्रों को नग्न अपमानित करके बनाने को मुहम्मद हुसैन का अपराध माना गया है। क्या जज व उच्च न्यायाधीश अपनी मां बहन व बेटी के ऐसे चित्र बनाना भी अपराध कार्य से बाहर रखेंगे?
(ग) अल्लाह जो कि हदीस कुदसी प्रसिद्घ ग्रंथ प्रमाण 16:14 में सातवें आसमान के हीरों के तख्त पर बैठा है, को अन्याय द्वारा सर्वव्यापक कहना कहां तक उचित है? (छ) गत दिनों योगगुरू श्री स्वामी रामदेवजी द्वारा भारत की उन्नति हेतु यहां के नेता आदि द्वारा विदेश में भेजे गये 400 लाख करोड को वापिस लाने हेतु दिल्ली के रामलीला मैदान में सत्याग्रह हेतु स्वीकृति ली थी। महाभ्रष्टï कांग्रेस सरकार के प्रलोभन में जब स्वामी जी न फंसे, क्योंकि वे ऋषि दयानंद क्रांतिकारी के भक्त हैं। तब सरकार ने अपने प्रमुख नेता सोनिया, राहुल आदि को बचाने हेतु बिना किसी नोटिस तथा धारा 144 के रात्रि एक बजे सोते बच्चों, वृद्घों व माताओं पर लाठी चार्ज करा दिया। उच्च न्यायालय ने विवाद के निर्णय में कहा कि सरकार भी गलत है एवं रामदेव जी भी गलत हैं। इस निर्णय ने भारत में रहने वाले बुद्घिजीवी धार्मिक व शांति प्रिय लोगों को झकझोर कर रख दिया। शांति पूर्वक आंदोलन की गलती मुख्य न्यायालय यह बता रहा है कि रामदेव जी व उनके भक्तों को पुलिस के कहते ही रात्रि एक बजे पांडाल छोड देना चाहिए था।
क्या भारत में कोई कानून नहीं? गवरगाण्ड मूर्ख मनमाना राज है? सरकार पर दबदबा बनाकर सत्य मनवाना, जनता का अधिकार है कि ग्रहमंत्रालय या सरकार को पूर्णत: गलत न कहकर सरकार व न्यायालय सावधान हो। अत्याचार सहने की सीमा पर होने पर नेताओं को बचाना कठिन होगा। शाहबानो की तरह स्वामी रामदेव निर्णय पर संसद में बहस हो। राष्टï्र हितैषी स्वामी रामदेव जी व उनकी जनहितैषी को ही दोषी बताना व उन पर 25 प्रतिशत दण्ड लगाना क्या उचित है?