महर्षि दयानंद सरस्वती का अमर बलिदान
लेखक – स्वामी भीष्म जी महाराज घरोंडा वाले
अंतिम करने लगे उपदेश महर्षि दयानंद दण्डी!! टेक
प्रकृति परिवर्तनशील इस चक्कर में आना नहीं।
वेद की शिक्षा को याद राखना भुलाना नहीं,
ज्ञान से हो मुक्ति ओर रास्ता अपनाना नहीं,
मुक्ति के बिन जीव का ये मिटे आना जाना नहीं,
आठंगो का पालन करो भूल कर बिसराना नहीं,
जड़ पूजा है अन्धकार, समय को गंवाना नहीं
अज्ञान है कठिन क्लेश जिसे पाते हैं पाखंडी!! 1!!
है मेरी नजरो के आगे काम एक जरुरी आज,
दो वेदों का भाष्य बाकी, इच्छाएं अधुरी आज,
जीवन की लीला तो पुरी होने वाली आज,
सबसे पहले आप जगत में वेदों का प्रचार करना,
विधवाओं की रक्षा करना अनाथो से प्यार करना,
मरती है हजारों गऊवें इनका भी उद्धार करना,
करते दुराचार हमेश लाखों हिजड़े ओर रण्डी!!2!!
आर्य वही जो जीव मात्र की भलाई करे,
प्रेम का प्रचार करे झगड़ा ना लड़ाई करे,
शिखा सूत्र संध्या हवन कर्म ये सुखदाई करे,
आर्य कहावे मिले जब भी रस्ते में नमस्ते करे,
जो भुले भटके शुद्ध करके सीधे रस्ते करे,
वेदों को छपवावे ओर मुल्य में भी सस्ते करे,
ये है कर्म विशेष मिटे दुराचार की मण्डी!! 3!!
अच्छा ना विदेशी राजा बस अपना ही राज रहे,
वेद वेत्ता राजा होवे जिसके सिर पै ताज होवे
मनु की नीती हो जग में ऋषियों का समाज रहे,
इतनी कहकर ऋषि देव ओ३म् ओ३म् गाने लगे,
नेत्र बन्द हो गये और श्वास रुक रुक आने लगे,
आर्य पुरुष जितने थे आंसुवे बहाने लगे,
भीष्म घटना कर पेश ना झुकै ओ३म् की झण्डी!! 4!!
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