बाबा रामदेव ने एक वर्ष पूर्व जब अनशन किया था तो उन्होंने पुलिस बल की कार्यवाही से बचने के लिए औरतों के कपड़े पहनकर भागकर अपनी जान बचायी थी। इस दृश्य के लिए ही उनका पहला अनशन लोगों ने अब तक याद रखा है। उनका यह कृत्य संतत्व की भावना और गरिमा के खिलाफ था। यदि उसके लिए यह कहा जाए कि उस समय की परिस्थितियां ही ऐसी बन गयीं थीं कि इस प्रकार भागना जरूरी हो गया था तो मानना पडेगा कि बाबा रामदेव के आंदोलन के रणनीतिकार कुशल नहीं थे। उनकी अनुभवशून्यता के कारण बाबा की और बाबा के आंदोलन की मिट्टïी उस समय पिटी थी। इसलिए बाबा को यदि फिर अनशन की हठ ने आ घेरा है तो अपने रणनीतिकारों की फौज का सही चयन करना अब उनके लिए आवश्यक हो गया है। दूसरे उन्हें अपने आंदोलन को मीडिया से निकालकर ग्रामोन्मुखी बनाना चाहिए। देश के गांवों के हिस्से का पैसा चंद शहरों ने खा लिया है और इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। इसका मतलब है कि देश का सुनियोजित विकास का सपना केवल सपना ही बनकर रह गया है। यह स्थिति देश में राजनीतिक भ्रष्टïाचार और दूषित चिंतन की देन है। जिस पर बाबा रामदेव को प्रहार करना होगा। चंद लोगों को भाषण के लिए मंच पर बुलवाना और सारी मीडिया को अपनी ओर
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बाबा ने फिर….
आकर्षित कर लेने मात्र से देश का भला नहीं होने वाला। देश की भलाई के लिए कुछ ठोस और रचनात्मक कार्य करने की आवश्यकता है। बाबा के पास ऊर्जा है साधन हैं, उत्साह है पर दिशाहीनता के कारण सही रास्ता नहीं मिल रहा है। इसलिए सही रास्ता पाने की उलझन से बाबा को पहले निकलना पड़ेगा।