आचार्य विष्णु हरि
दुनिया में 60 मुस्लिम देश हैं, इसके अलावा भारत, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे कई गैर मुस्लिम देशों की राजनीति, कूटनीति को मुस्लिम आबादी सीधे तौर पर प्रभावित करती है, अपनी मजहबी मानसिकता को संतुष्ट करने के लिए किसी हद तक जाती है, हिंसा और आतंकवाद जैसी प्रक्रियाओं को सीधे या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन-संरक्षण देती हैं। दुनिया में हमास, हिज्जबुल्लाह, तालिबान, अलकायदा, बोकाहरम से लेकर कई अन्य मुस्लिम आतंकवादी संगठन हैं जो अन्य धर्मो को न केवल हिंसक चुनौती देते हैं बल्कि उनके समूल नाश की कसमें खाते हैं, इतना ही नहीं बल्कि हिंसा भी फैलाते हैं, मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं को अंजाम देते हैं, सिर कलम करने से भी हिचकते नहीं हैं और समूहों में खड़ा कर सामूहिक हत्या भी कर देते हैं।
अभी-अभी हमास की हिंसा कतनी भयानक रही है, कितनी डरावनी रही है, कितनी मानवता को शर्मसार करने वाली रही है, महिलाओं के साथ बलात्कार करने, शवों के साथ हिंसा करने के साथ ही साथ अबोध बच्चों की हत्याएं तक हमास की करतूत रही है। इसके अलावा दुनिया में टॉप स्तर के सैकड़ों बुद्धिजीवी हैं, मानवाधिकार संगठन हैं जो दिन-रात मुस्लिम देशों की यूनियनबाजी को आगे बढाते हैं, उनका समर्थन करते हैं, आतंकवादी संगइनों की हिंसा व आतंकवाद को किंतु-परंतु के नाम पर सही ठहराते हैं, सही ठहराने के लिए जनमत भी बनाते हैं, भूख और गरीबी के नाम पर दुनिया भर से पैसे जमा कर मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के लिए भेजते हैं, इन पैसों से आतंकवादी संगठन हथियार खरीदते हैं और खून बहाते हैं।
उपर्युक्त सभी तथ्यों के बाद भी मुस्लिम दुनिया की कौन प्रंचड शक्ति बनी हैं, मुस्लिम दुनिया क्या इजरायल को परास्त करने की शक्ति और क्षमता हासिल कर ली है? क्या मुस्लिम दुनिया अमेरिका से भी बडी शक्ति बन गयी ? क्या मुस्लिम दुनिया यूरोप से भी बडी शक्ति बन गयी? चीन के सामने मुस्लिम दुनिया क्या मुंह खोलने की स्थिति में कभी खडी हो पायी? मुस्लिम दुनिया यह कह सकती है कि हमारे हमास ने इजरायल को थर्रा कर रख दिया, हमास ने सैकडों लोगों की हत्या कर डाली। यह सही है कि अलकायदा और तालिबान ने कभी अमेरिका के वर्ल्ड टेड सेंटर पर हमला कर पांच हजार लोगों को मौत का घाट उतार दिया था। रूस के चैचन्या में मुस्लिम आतंकवादियों ने विखंडन के लिए रूस के सैनिकों के साथ हिंसा की चुनौती दी, सैकडों स्कूली बच्चों को मौत का घाट उतार दिया, मुस्लिम आतंकवादियों ने भारत के मुब्रई शहर पर हमला कर सैकडों लोगों को मौत का घाट उतार दिया, कश्मीर में मुस्लिम हिंसा अनवरत जारी है, पाकिस्तान परस्त आतंकवाद कश्मीर में वर्र्षाे से हिंसा फैला रही है, चीन में अलग मुस्लिम देश के लिए आतंकवाद जारी है।
लेकिन मुस्लिम दुनिया को इसकी कितनी बडी कीमत चुकानी पडी है, इसकी कितनी बडी क्षति उठानी पडी है, उनके मजहब के लिए कितनी बडी क्षति हुई है, उनके विकास और उत्थान को कितना बडी चोट पहुंची है? इसका अध्ययन-चिंतन मुस्लिम दुनिया क्यों नहीं करना चाहती है? कश्मीर को छीनने के लिए उनकी कोशिश आगे भी सफल नहीं होगी, चीन के विखंडन की कोशिश उनकी आगे भी सफल नहीं होगी, रूस के भीतर चैचन्या मुस्लिम देश बनाने आदि के प्रयास उनके शायद ही सफल होगे?
लेकिन क्षति कितनी हुई, यह देख लीजिये। अमेरिका ने प्रतिक्रिया में अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन, जवाहिरी आदि को मार गिराया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में लाखों मुसलमानांें को कत्ल कर दिया, भारत में आतंकवाद फैलाते-फैलाते पाकिस्तान कंगाल हो गया, कटौरा लेकर पाकिस्तान घूम रहा है पर दुनिया भीख देने के लिए तैयार नहीं है, हिंसक देश को भीख देकर कौन मानवता को संकट में डालेगा? रूस ने चैचन्या में मुस्लिम आतंकवाद के समर्थक मुस्लिम आबादी को कानून का पाठ पढा दिया, चीन ने अपने यहां की मस्जिदों को टॉयलेट हाउस बना दिया, विखंडन के समर्थक लोगों को जेलों में डाल दिया। सीरिया, लेबनान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नाइजीरिया, सोमालिया, ईरान, इराक आदि दर्जनों देशों में मुस्लिम आतंकवादी अपने बीच में ही हिंसा की तलवारे लहरा रहे हैं और अपने-अपने इस्लाम को सर्वश्रेष्ठ बताने और स्थापित करने के लिए खूनी हिंसा की आग लहरा रहे हैं। क्या ऐसी सभी संकटों और प्रक्रियाओं पर मुस्लिम दुनिया की यूनियन बाजी कोई वीरता दिखयी, कोई कामयाबी पायी?
इसके अलावा भी दुष्परिणाम और भी भयानक हें? विकास में मुस्लिम दुनिया पिछड गयी। मुस्लिम दुनिया के पास पैसा है, संसाधन है, इतने खनिज संपदा है जिनके माध्यम से दर्जनों मुस्लिम देश अमेरिका और यूरोप से भी बडी अर्थव्यवस्था खडी कर कर सकते हैं, अमेरिका और यूरोप से बडी आर्थिक और सामरिक शक्ति खडी कर सकते हैं। चीन और रूस से बडा दबदबा कायम कर सकते हैं। ईरान, सउदी अरब, दुबई और कतर जैसे देश बडे समृद्ध हैं पर इनकी वैश्विक शक्ति बहुत ही कमजोर है। इनके पास टेक्नालॉजी और वैश्विक दर्शन बहुत ही कमजोर है। आज टेक्नोलॉजी का युग हैं, टेक्नॉलौजी के क्षेत्र में जो आगे हैं वही समृद्ध हो सकता है, शक्तिशाली हो सकता है, सामरिक रूप से बलवान हो सकता है। अमेरिका दुनिया का चौधरी इसलिए बना बैठा है कि उसके पास सर्वश्रेष्ठ टेक्नौलॉजी है, सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी के माध्यम से ही अमेरिका अपने लिए सम्मान और समृद्धि अर्जित करता है। अमेरिका के पास नाशा जैसे वैज्ञानिक शक्ति है। किस मुस्लिम देश के पास नाशा जैसी शक्ति और टेक्नोलॉजी है? इजरायल का ही उदाहरण लीजिये। इजरायल के लोग धार्मिक रूप से कट्टर हो सकते हैं पर उन्होंने वैज्ञानिक खोज और ज्ञान दर्शन के क्षेत्र में अग्रनी भूमिका निीाायी है। फ्रंास जैसे देश राफेल फाइटर प्लेन बनाते हैं जो उनकी रक्षा और समृद्धि के लिए ढाल बन जाते है। कितने मुस्लिम देश हैं जो राफेल जैसे फाइटर प्लेन बनाते हैं?
दुनिया में ईसाई, हिन्दू और बौद्ध यूनियनबाजी के लिए कोई समूह नही है। क्या आपने ईसाई देशों की यूनियनबाजी देखी है, क्या आपने बौद्ध देशों की यूनियनबाजी देखी है? क्या आपने ईसाई और बौद्ध देशों को धर्म के नाम पर हिंसा और आतंकवाद को समर्थन देने और उसे खाद-पानी देते देखा है? दुनिया में कोई हिन्दू देश नहीं है पर दुनिया में ईसाई और बहुलता वाले देश हैं पर उनकी कोई यूनियनबाजी नहीं है और उनकी मजहबी-धार्मिक हिसा भी वैसी नहीं है जैसी मुस्लिम देशों की है। बौद्ध और ईसाई बहुलता वाले देशों में लोकतंत्र भी है और अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित होते हैं, अल्पसंख्यकों को अपने धर्म और मजहब की मान्यताओं को सुरक्षित रखने का अधिकार होता है, सामान्य विकास के अवसर उपलब्ध होते हैं, ईसाई बहुलता वाले यूरोप और अमेरिका में यही मुस्लिम आबादी सामान्य अवसर और अल्प्सख्यक अधिकार के बल पर समृद्धि पायी है। लेकिन मुस्लिम देशों में लोकतंत्र और अल्पसंख्यक अधिकार की कल्पना कर सकते हैं क्या, मुस्लिम देशों का लोकतंत्र इस्लाम आधारित होता है, मुस्लिम देशों के लोकतंत्र या तानाशाही में अल्पसंख्यक अधिकार सुरक्षित नहीं होते हैं, ईरान, सउदी अरब और कतर आदि मुस्लिम देशो में गैर मुसलमानों के लिए मानवता झूठी होती है। पाकिस्तान में हिन्दुओं को कत्लेआम कर सफाया कर दिया गया। ईरान मे पारसियों को खदेड कर मुस्लिम देश बना दिया गया।
तुर्की, ईरान और सउदी अरब जैसे देश आज आगबबुला हैं, मुस्लिम देशों का संगठन आज शाब्दिक हिंसा में लगा हुआ है। ये सभी इजरायल के हाथ बांधने के लिए संयुक्त राष्ट संघ से फरियाद कर रहे हैं, हिंसा और युद्ध में शामिल होने की पैरबी कर रहे हैं। लेकिन ये सभी दुनिया की जनमत की शक्ति को पहचानते नहीं हैं। दुनिया अभी हमास जैसी हिंसक और अमानवीय शक्ति का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं है। इजरायल अकेले सभी मुस्लिम देशों पर भारी है। इजरायल को प्रतिकार कर अधिकार है। हमास के संहार के लिए इजरायल को कौन रोकेगा? इसलिए मुस्लिम दुनिया को फिलिस्तीन आदि की समस्या को मजहबी नहीं बल्कि मानवीय स्तर पर देखने और सक्रिय होने की जरूरत है। हमास जैसी कार्रवाइयो का समर्थन करने से मुस्लिम दुनिया नुकसान ही अपनी करेगी।
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