हमास, इजरायल, भारत और विश्व समुदाय
हमास अर्थात हरकत अल मुकम्मल अल इस्लामिया नामक आतंकवादी संगठन का जन्म इसराइल जैसे मजबूत इच्छा शक्ति वाले देश को समाप्त कर यहूदियों को मिटा देना है। इसकी सोच है कि यहूदी और यहूदियों का देश दुनिया में कहीं पर भी ना रहे। जब 21वीं सदी में विश्व स्वाधीनता की नई परिभाषाओं को गढ़कर चर्चा करता हुआ दिखाई देता है और अनेक अंतरराष्ट्रीय संधियों , समझौतों या संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों या मंचों के माध्यम से बार-बार यह कहा जाता रहा हो कि प्रत्येक राष्ट्र को अपना सम्मान और स्वाधीनता सुरक्षित रखने का नैसर्गिक अधिकार है, तब एक देश के प्रति इतना दुराग्रही होना किसी आतंकवादी संगठन की सोच का ही परिणाम हो सकता है। इस प्रकार की आतंकवादी सोच और गतिविधियों का 21वीं सदी के प्रत्येक गंभीर और जिम्मेदार देश को विरोध करना चाहिए। आज के परिवेश में वैश्विक सरकार अर्थात संयुक्त राष्ट्र को इतनी मजबूती दी जानी अपेक्षित है कि वह संसार भर के प्रत्येक वर्ग, संप्रदाय, समुदाय यहां तक कि व्यक्ति व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखने की पूर्ण जिम्मेदारी ले। किसी भी आतंकवादी संगठन या देश या देशों के समुदाय को किसी भी वर्ग या किसी देश के पूर्ण विनाश की अनुमति नहीं दी जा सकती और यदि ऐसा हो रहा है तो यह निश्चित रूप से मानवता के माथे पर सबसे बड़ा कलंक है।
अपनी भूमि तलाशने और अपने नाम का एक अलग देश बनाने के लिए इसराइल के यहूदी लोगों ने सदियों का दीर्घकालिक संघर्ष किया है। उन्होंने यदि अपने इसराइल नाम के देश को पाने में सफलता प्राप्त की है तो इसके पीछे उनका बहुत बड़ा पुरुषार्थ और देश प्रेम बोलता है। किसी भी जाति ,समुदाय या देश के भूभाग को यदि आप कब्जा लेते हैं तो वह सैकड़ो वर्ष पश्चात भी आपका नहीं हो सकता , विशेष रूप से तब जब उस भू-भाग को अपना कहने वाले लोग जीवित हों। यही कारण है कि हमास जैसे आतंकवादी संगठन ने जब पिछले 7 अक्टूबर को इसराइल पर ताबड़तोड़ हमला किया तो विश्व के अधिसंख्य देशों ने इस हमले का विरोध किया। भारत ने इस हमले को सर्वाधिक मुखर होकर अनुचित और अवैधानिक करार दिया।
माना कि इस समय इसराइल कई प्रकार के अमानवीय अत्याचारों को गाजा पट्टी में पूर्ण कर रहा है। पर उसके इस प्रकार के अत्याचारों से पूर्व सारी दुनिया को इस बात पर सोचने की आवश्यकता है कि इसराइल को ऐसा करने के लिए आखिर विवश किसने किया है? यदि इसराइल केवल अपनी दादागिरी दिखाने के लिए ही ऐसा कर रहा होता तो वह इस प्रकार के कार्यों को 7 अक्टूबर से पहले करता। पर उस समय इसराइल ने ऐसा कुछ नहीं किया। स्पष्ट है कि आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और अस्तित्व की लड़ाई लड़ते समय भी वह गाजा पट्टी के लोगों से बार-बार अपील करता है कि आप अपने घर बार छोड़कर यहां से चले जाओ, क्योंकि आपके घर छोड़ने के पश्चात हम इस पर हमला करेंगे।
इसके विपरीत हमास क्या कर रहा है ? उसके अमानवीय अत्याचारों के रोंगटे खड़े करने वाले मामले सामने आ रहे हैं। मासूम बच्चियों से भी बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं । माता-पिता, भाई – बहन के दिल पर उस समय क्या गुजरती होगी जब उनके सामने किसी मासूम बच्ची के साथ ऐसी दर्दनाक घटना हो रही होगी ? संसार के बहुत बड़े जन समुदाय के लिए ऐसी घटनाएं इसलिए कोई मायने नहीं रखती हैं कि उन्हें करने वाले उनके अपने समुदाय के लोग हैं, तो दूसरे संप्रदायों के लिए ये घटनाएं इसलिए नगण्य हो जाती हैं कि जो कुछ हो रहा है वह विश्व के एक मिटते हुए संप्रदाय अर्थात यहूदी लोगों के साथ हो रहा है। 21वीं शताब्दी की दुनिया इतनी अधिक निर्मम और भाव शून्य होगी, यह देखकर भी कष्ट होता है। सारे वैश्विक मंच और मानवाधिकार वादी संगठन भी कुछ करते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं, लोगों को मरने के लिए उन्हें दुर्भाग्य के हाथों में सौंप दिया गया है।
तैमूर लंग , बाबर , नादिरशाह, अब्दाली जैसे अनेक क्रूर और निर्मम पिशाचों के अत्याचारों के बारे में सुना है । यदि आज भी वही दोहराया जा रहा है तो समझ लीजिए कि संसार ने अपने बीते हुए कल से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की है।
यदि हमास के अत्याचारों को पूर्णतया अन्याय पूर्ण कहा जा सकता है तो इसराइल के उन अत्याचारों की भी पैरवी नहीं की जा सकती जिन्हें वह अस्पतालों आदि पर करके दिखा रहा है।
मासूम बच्चों को भी जल्लादों की भांति मारा जा रहा है। जिससे लगता है कि संसार से मानवता मर चुकी है और दानवता उसके स्थान पर कब्जा कर चुकी है। लगता है सारे संसार से क्षत्रियपन समाप्त हो चुका है । कायरता उसके स्थान पर अपने पांव पसार चुकी है। यदि संसार के लोगों के भीतर क्षत्रियपन होता तो किसी भी असहाय और मासूम को चीखना चिल्लाना नहीं पड़ता। महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण जी ने अर्जुन से कहा था कि अर्जुन ! ये क्षत्रिय लोग तेरे सामने खड़े हुए अवश्य दिखाई दे रहे हैं पर वास्तव में ये मर चुके हैं । क्योंकि इन्होंने सही समय पर दुर्योधन के अत्याचारों का विरोध नहीं किया। इसके अतिरिक्त श्री कृष्ण जी के मस्तिष्क में यह बात भी थी कि क्षत्रिय लोगों ने उस कंस का भी विरोध नहीं किया जिसने उनके सात बहन भाइयों की अब से पूर्व में हत्या कर दी थी । जब क्षत्रिय लोग अपने धर्म को पहचानने से मना कर देते हैं और वह युद्ध के स्थान पर चुप रहना उचित मानने लगते हैं तो महाभारत हो ही जाता है। यदि आज का समाज भी महाभारत कालीन इस चुप्पी दिखाने वाली कायरता को अंगीकार कर रहा है तो निश्चित रूप से यह दुनिया के लिए भारी अपशकुन है। वैश्विक नेतृत्व को समय रहते अन्याय और अत्याचार का विरोध करना पड़ेगा अन्यथा उनकी चुप रहने की यह प्रवृत्ति संसार के लिए बहुत भारी पड़ सकती है।
जहां तक भारत की बात है तो भारत के भीतर वोटो की राजनीति करते हुए राहुल गांधी जैसे सेकुलर राजनीतिज्ञ जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं उसे देश हित में की जाने वाली राजनीति कदापि नहीं कहा जा सकता। देश के हितों से सौदा करना देश की आत्मा के साथ खिलवाड़ करने जैसा होता है। भारत ने अन्याय का प्रतिकार करते हुए सदा न्याय, नियम और नीति का पालन किया है और उसी का पक्ष लिया है। आज के भारत के लिए भी समय की यही आवश्यकता है कि वह न्याय, नीति और नियम के साथ अपने आप को मजबूती से खड़ा हुआ दिखाए। यदि भारत के इतिहास का निष्पक्षता से अवलोकन करें तो पता चलता है कि यहां पर ऐसे अत्याचारों की एक दीर्घकालिक परंपरा है जो हमास के आज के अत्याचारों से पूरी तरह मेल खाती है । यदि भारत ने अपने आप को बचाने के लिए कदम नहीं उठाये तो जो कुछ आज यहूदी लोगों के साथ हो रहा है वह भारत में भी दोहराया जाएगा।
जब दानव आपके घर में छुपा बैठा हो तब तैयारी को कई प्रकार से पूर्ण करने की आवश्यकता होती है। निश्चित रूप से दानव को हम किसी भी वर्ग, समुदाय या संप्रदाय के साथ जोड़कर नहीं देख सकते, पर सदा उपद्रवी , उन्मादी और राष्ट्र विरोधी लोगों का साथ देने वाले किसी समुदाय या संप्रदाय की उपेक्षा भी नहीं कर सकते।
जब हम मध्यकालीन भारत में बाहर से आने वाले विदेशी आक्रमणकारियों को देखा करते थे उस समय भी कई लोगों के लिए अरब ,इराक या ईरान की ओर से आने वाले विदेशी आक्रमणकारी बहुत दूर के हुआ करते थे । यदि समय रहते हम दूर के आतंकवादियों को एक साथ मिटाने और भगाने का संकल्प लेते तो आज इतिहास दूसरा होता। कहने का अभिप्राय है कि हमास भी आज हमारे लिए दूर का हो सकता है पर इसके परिणाम हमारे लिए भी भयानक हो सकते हैं। ऐसे में भारत को अपनी विदेश नीति के क्षेत्र में तो संभल संभल कर चलना ही होगा, राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भीतर के शत्रुओं को भी पहचानने की भी आवश्यकता है। नई सोच , नए इरादे नई नीति और नए उद्देश्यों को सामने रखकर आगे बढ़ना समय की आवश्यकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है।)
मुख्य संपादक, उगता भारत