एक और दूसरा उदाहरण यह है कि किसी के घर में आग लग गयी, तब घर वाले सबसे पहले अपने बच्चों को बाहर निकालेंगे, फिर अपने पशुओं को फिर अपने कीमती जेवरों को और फिर बर्तन व कपडों को निकालेंगे। यही प्रक्रिया पशु पक्षियों की रक्षा पर भी लागू होती है। सबसे पहले हम सबसे अधिक उपयोगी और लाभकारी पशु गाय को काटने से बचाएंगे। उसके बाद अन्य पशु पक्षियों का नंबर आएगा। उद्देश्य हमारा भी सभी को बचाने का है। पर यदि हम आरंभ से ही सभी को बचाने की कहेंगे तो किसी को भी नहीं बचा सकेंगे।
अब प्रश्न उठता है कि गाय की सबसे अधिक उपयोगी और लाभदायक पशु कैसे है। इसका उपयुक्त उत्तर यही है कि गाय एक सीधा साधा मनुष्य के स्वभाव से मिलता जुलता अहिंसक पशु है और इसके शरीर की प्रत्येक वस्तु तथा इसकी संतान भी मनुष्य के अन्य पशुओं से अधिक काम आती है। गाय, स्त्री की भांति ही नौ महीनों में बच्चा देती है और बच्चा पैदा होने की प्रक्रिया भी समान है और उसका दूध भी बालक के लिए मां का दूध छोडकर बाकी सभी पशुओं से अच्छा होता है। इसीलिए किसी बच्चे की मां के दूध कम होता है या मर जाती है तो उसे गाय का दूध ही पिलाते हैं। कारण गाय का दूध हल्का, मीठा और निरोग होता है। इस प्रकार गाय का मनुष्य से सबसे अधिक नजदीक का संबंध है। ईश्वर की बनाई सृष्टिï में मनुष्य सबसे उत्तम, श्रेष्ठ व अंतिम कृति है। मनुष्य योनि पाकर ही जीव अपने अंतिम लक्ष्य, मोझ को प्राप्त कर सकता है। अन्य योनियों में नहीं। इसलिए मनुष्य योनि मोक्ष प्राप्ति का द्वार है। मेरा मानना तो यह है कि ईश्वर ने मनुष्य से नीचे की योनि गाय की ही बनाई है। बाकी सभी पशु पक्षी पेड पौधे आदि गऊ से पहले ही बना दिये थे। यह भी गाय का मनुष्य से दूसरा नजदीक का संबंध है। वैसे तो ईश्वर ने पूरी सृष्टिï ही मानव के उपयोग व सहयोग के लिए बनाई है, परंतु गाय पशुओं में सबसे उत्तम योनि है इसलिए यह मनुष्य के लिए सबसे अधिक उपयोगी और सहयोगी तो है ही, साथ ही गाय मनुष्य के लिए ईश्वर की तरफ से एक विशेष उपहार भी है। उपहार को सावधानी से रखा जाता है और उसका सदउपयोग किया जाता है, उसको मारकर खाना उचित नहीं।
गाय की उपयोगिता देखने से ज्ञात होता है कि गाय परिवार राष्टï्र व विश्व की आधारशिला है जिसके ऊपर सारा संसार टिका है। इसके अमृत के समान दूध, दही, घी, छाछ से अनेकों किस्म की मिठाईयां तथा व्यंजन बनते हैं जिनको खाते-खाते मनुष्य नहीं अघाता। इसके गोबर से मूत्र से खाद तथा गैस तो बनती ही है साथ ही इनसे अनेक किस्म का सामान जैसे साबुन, शैंपू, अगरबत्ती, फिनाईल, धूप, दंत मंजन आदि बनते हैं। इसके गोबर और मूत्र से अनेक किस्म की दवाईयां भी बनती हैं जो काफी कारगर सिद्घ हुई हैं। नित्य गोमूत्र सेवन करने से कैंसर तक भी ठीक होता है। गाय के घी से ही हवन होता है जिससे हवा का प्रदूषण नष्टï होकर वातावरण शुद्घ बनता है। प्रसन्नता की बात है कि कुछ गो भक्तों का ध्यान हवन में लकडिय़ों को समिधा के रूप में न जलाकर गोबर के उपलों का प्रयोग करने का होने लगा है। हमें इस भावना को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि गाय की उपयोगिता बढे। यदि सभी गो भक्त और आर्य समाजी गाय के गोबर से बने उपलों से हवन करना आरंभ कर देवें तो गोबर की कीमत काफी बढ जाएगी जिससे बूढी गाय और बूढे बैलों को कोई भी कसाईयों को नहीं बेचेगा। कारण ये जितना खाएंगे उससे कही अधिक इनके गोवर और मूत्र से मालिक को लाभ होने लगेगा। इसलिए मेरा इस लेख के माध्यम से सभी यज्ञ प्रेमियों से निवेदन है कि वे गाय के गोबर से बने उपलों का प्रयोग अपने हवन में समिधा के रूप में करें। यह गाय की एक सच्ची सेवा होगी।
गोबर की जैविक खाद यूरिया (कैमिकल) की खाद से कही अच्छी होती है। यूरिया खाद से जमीन की उर्वरा शक्ति धीरे धीरे नष्टï हो जाती है और कुछ वर्षों के बाद जमीन बंजर बन जाती है। गाय के गोबर की खाद से जमीन की उर्वरा शक्ति हर साल बढती जाती है। इससे पैदा हुआ अनाज यूरिया खाद से पैदा हुए अनाज से कही अच्छा होता है। गाय के बछडे हल जोतने व गाडी चलाने के काम आते हैं। छोटे किसान के लिए हल जोतने में टै्रक्टर की बनिस्बत बैल ही अधिक उपयुक्त है कारण टै्रक्टर को घुमाने के लिए अधिक जमीन चाहिए जब कि बैल थोडी जमीन में घूम जाते हैं। बैलों से जुताई भी अच्छी होती है। उनका गोबर व मूत्र जो हल जोतते समय करते हैं। वह खाद के काम आ जाता है। जबकि टै्रक्टर का तेल व धुआं खेती को नुकसान पहुंचाता है। सबसे बडी बात तो यह है कि गाय के रोम रोम से ऑक्सीजन प्राण-वायु निकलती रहती है जो प्राणी मात्र को जीवन प्रदान करती है। इसकी चमडी में सूर्य की किरणों से एक प्रकार की ऊर्जा खींचने की शक्ति है जो इसके दूध में मिलकर दूध की शक्ति बढाती है और गाय के घी में जो सोना जैसा पीला पन झलकता है वह सूर्य की किरणों से खींचा हुआ स्वर्णिम तत्व ही है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि का गाय से दामन-चोली का संबंध है। किसान खेत में जो अनाज पैदा करता है। वह अनाज तो किसान अपने परिवार में प्रयोग कर लेता है या बेच कर अपना सामान खरीद लेता है। अनाज का जोतना जिसको पूली या भूसी कहते हैं, वह गाय या बैल के खाने के काम आ जाती है। उनका गोबर या मूत्र या तो बिक्री हो जाता है, नहीं तो खाद बनकर खेत में काम आ जाताा है। इस प्रकार किसान को गाय रखने में कम खर्च पडता है और उसका परिवार भी स्वस्थ रहता है। भारत की जलवायु भी समशीतोष्ण है जो गाय के अनुकूल है इसलिए भारत में गाय की उपयोगिता अन्य देशों से अधिक है। गाय के दूध में सबसे अधिक विटामिन (प्राण-तत्व) होता है, इसलिए इसको पूर्ण आहार परफेक्ट फूट कहा गया है। वेदों में गाय के दूध को विश्व की माता कहा है। तथा गावो यत्र तत: सुखम जहां गाय है वही सुख है कहा है, इसलिए हिंदू इसे माता का दर्जा देता है। इसके पीछे कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य एवं वास्तविकता है।
यह बात निश्चित है कि जब कि गो माता का खून बहता रहेगा तब तक देश में खुशहाली नहीं आ सकती और न ही हिंदू मुस्लिम एकता, परस्पर की सदभावना और न ही पारस्परिक प्रेम ही बन सकता है। इनके न होने से राष्टï्र की उन्नति व समृद्घि होनी भी असंभव है। ये सब बातें होना गो हत्या बंदी से ही संभव है गोहत्या बंदी तभी हो सकती है जब केन्द्रीय सरकार अपनी तुष्टिïकरण की नीति छोड देवे और अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत बना लेवे तो यह कार्य कोई कठिन नहीं। गुजरात छत्तीसगढ उत्तराखंड व राजस्थान आदि प्रांतों में जहां गो-हत्या नहीं हो रही है, क्या वहां मुसलमान भाई नहीं रहते। कुरान शरीफ के अनुसार भी बकरीद पर गऊ की बलि देना कोई जरूरी धार्मिक कृत्य नहीं, वे अन्य पशु की बलि भी दे सकते हैं। कुरान शरीफ में तो यहां तक लिखा है कि किसी दूसरे का दिल दुखाकर किसी प्रकार की कुर्बानी नहीं करनी चाहिए। इसलिए मैं अपने मुस्लिम भाईयों से निवेदन करता हूं कि वे गोकशी पर ही क्यों अडे हैं जब कि गोहत्या से आपके हिंदू भाईयों को तकलीफ होती है। अत: उनकी भावना का आदर करते हुए गो-हत्या नहीं करनी चाहिए ताकि हिंदू मुस्लिम एकता को बल मिले एवं हमारे देश के अच्छे भविष्य की कल्पना पूरी हो सके। मैं अपने मुस्लिम भाईयों से पूंछना चाहता हूं कि यदि यह आपका धार्मिक कृत ही होता तो बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां के राज्यों में गो-हत्या बंदी क्यों थी? जब भी कई मुस्लम देशों में गो-हत्या बंद है, इसलिए मेरी प्रार्थना पर हिंदू मुसलमानों को एक स्वर में गो-हत्या बंदी की आवाज उठानी चाहिए। तभी हम दोनों का तथा देश का हित है।
हमें प्रसन्नता है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने 13 सितंबर तथा 2 अक्टूबर के फेेसले में यह निर्णय लिया था कि इस बार 7 अक्टूबर 2011 की बकरीद पर गो-हत्या नहीं हो सकती, इससे पहले सन 1994 में सुप्रीम कोर्ट देहली ने भी गो-हत्या बंदी का आदेश दिया था, पर बंगाल में इसका पालन नहीं हो रहा था, अब कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश होने से आर्य प्रतिनिधि सभा बंगाल के नेतृत्व में कलकत्ता के सभी को गोभक्तों ने गो रक्षा के लिए काफी जी-जान लगाकर प्रयास किया। कुछ आंशिक सफलता भी मिली। फल स्वरूप इस बार बकरीद के समय कुछ गऊओं को मरने से बचाया जा सका। बंगाल पुलिस ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए गो-भक्तों का काफी सहयोग किया। इस सुकृत के लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं।
मैं आशा करता हूं कि खुदा, मुसलमान भाईयों को सदबुद्घि देगा और केन्द्र सरकार भी इस समस्या को हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए कुछ कडे कदम उठाएगी जिससे हमारे देश पर लगा गो-हत्या का कलंक निश्चित की मिट जाएगा और मेरे प्यारे देश में पुन: दूध की नदियां बहने लगेंगी और एक सशक्त भारत बनकर उभरेगा जिससे भारत पुन: सोने की चिडिय़ा तथाा विश्वगुरू कहलाने का अधिकारी बन सकेगा।
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