नई दिल्ली। आंतरिक सुरक्षा और प्रस्तावित आतंकवाद विरोधी केन्द्र (एनसीटीसी) को लेकर मनमोहन सरकार और गैर कांग्रेसी राज्यों के बीच मतभेद उभरकर सामने आये हैं। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता ने आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित राष्टï्रीय सम्मेलन में साफ बोलते हुए कह दिया है कि भारत के संघीय ढांचे की मजबूती ऐसी नीतियों के चलते कायम नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि केन्द्र राज्य सरकारों को नगर पालिका में तब्दील कर देना चाहता है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना था कि केन्द्र सरकार ऐसे सम्मेलनों में राज्यों के मुख्यमंत्रियों के द्वारा दिये गये सुझावों का संज्ञान तक नहीं लेती। जबकि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का मानना है कि बिना राज्य सरकारों की सहभागिता के कैसे आंतरिक सुरक्षा की जा सकी है। हमारे संविधान निर्माताओं के सामने देश के लंबे राजनीतिक इतिहास का अनुभव था। उन्हें यह भली प्रकार ज्ञात था कि केन्द्र की मजबूती के अभाव में राष्टï्रीय एकता व अखण्डता कभी भी सुनिश्चित नही रह सकती। अतीत में जब जब भी केन्द्र कमजोर हुआ है तब तब ही हमें राष्टï्रीय शर्म का सामना करना पड़ा है। इसलिए भारत में संघीय स्वरूप देने का अर्थ किसी राज्य को अपना अलग निशान, अलग प्रधान और अलग विधान बनाने का प्राविधान नहीं रखना था। जम्मू कश्मीर में अलग निशान अलग प्रधान और अलग विधान बनाने का विरोध श्यामप्रसाद मुखर्जी ने इसीलिए किया था कि उन्हें इतिहास भारत के भूगोल और राजनीति की गहरी समझ थी। अलग दिशा का परिणाम वह जानते थे कि अलग देश के रूप में नही निकलकर आता है। इसलिए उनकी बात का आशय भी साफ था कि भारत में केन्द्र को मजबूत रखा जाए।
भारत के राज्यों की स्थिति ऐसे सहभागी राज्यों की नहीं है, जिन्होंने स्वेच्छा से अपनी संप्रभुता को भारतीय संघ की संप्रभुता के साथ विलीन किया हो, बल्कि भारतीय राज्यों का अस्तित्व प्रशासनिक सुविधा के लिए तथा देश के विभिन्न आंचलों का संतुलित और समग्र विकास करने के दृष्टिïगत है। इसलिए किसी भी राज्य को केन्द्र की मजबूत स्थिति को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। राष्टï्रहित में उचित यही है कि केन्द्र की सत्ता को मजबूत रखा जाए। लेकिन केन्द्र अपनी मजबूत स्थिति का फायदा किसी राज्य सरकार को अनावश्यक उपेक्षित करके या उसके विकास पर समुचित ध्यान न देकर उठाये। आंतरिक सुरक्षा एक गंभीर विषय है। इस विषय पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच जो मतभेद उभरे हैं वो कुछ सीमा तक मनन करने योग्य हैं। केन्द्र सरकार की नीतियों में ऐसा कुछ कभी कभी लगता है कि गैर कांग्रेसी सरकारों को अनावश्यक उत्पीडऩ और उपेक्षा का शिकार बनना पड़ता है। उन्हें विकास कार्यों के लिए उतनी धनराशि नहीं दी जाती जितनी कि उन्हें अपेक्षा होती है।
यह स्थिति निराशाजनक है। हमारे राजनीतिज्ञों का दृष्टिकोण दलगत भावनाओं में उलझा भटका सा लगता है। उसमें राजधर्म के समुचित निर्वाह की भावना का अभाव सा है। इसलिए मुख्यमंत्रियों का विरोध आ रहा है लेकिन यह विरोध बगावत में न बदल जाए इसलिए उचित होगा कि राष्टï्रहित में संविधान की मूल भावना का सम्मान करते हुए राजधर्म का निर्वाह केन्द्र पक्षपात शून्य होकर करे तथा राज्य केन्द्र का समुचित सम्मान करना सीखें।
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