लेखक आर्य सागर खारी 🖋️
दीपावली के पर्व के आसपास दिल्ली-एनसीआर सहित मुंबई कोलकाता बेंगलुरु जैसे महानगरों में उल्लू की तस्करी बढ़ जाती है… 20000 से लेकर 1 लाखों रुपए तक 1 उल्लू की खरीद-फरोख्त होती है दीपावली पर तांत्रिक क्रियाओं बलि देने के लिए… पौराणिक मान्यताओं में धन की देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू माना जाता है…. यह सोचकर उल्लू को मार दिया जाता है जब दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मी घर में आएंगी तथा जब वह घर से बाहर जाने की सोचेंगी लेकिन अपने वाहन को ना पाकर वह घर से बाहर नहीं जा पाएंगी अक्ल के अंधो न क्या युक्ति लगाई है ? इस अंधविश्वास पाखंड के चलते इकोसिस्टम के शानदार पक्षी उल्लू को मार दिया जाता है…. उल्लू लक्ष्मी( समृद्धि कृषि उपज) का वाहन है इसमें कोई संशय नहीं है एक उल्लू 1 वर्ष में 1000 से अधिक चूहों को खा जाता है जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं…. उल्लू ही एकमात्र परिंदा है जो बिना गर्दन घुमाए पीछे भी देख सकता है पक्षियों में नीले रंग को पहचान सकता है थ्री डाइमेंशनल देख सकता है… उल्लू की उम्र 30 वर्ष होती है… परमात्मा ने हानिकारक कीटों जंतुओं से किसान की उपज को बचाने के लिए उल्लू को बनाया है…. लेकिन अंधविश्वासी मूढ मनुष्य उल्लू को मारकर जैव जगत के लिए संकट उत्पन्न कर रहा है | आप सोचिए लाखों रुपए में दीपावली के आसपास उल्लू की बलि देने के लिए उनको खरीदने वाला कोई साधारण वर्ग तो है नहीं यह वह एलीट वर्ग है सो कॉल्ड संभ्रांत वर्ग है जो पहले से ही करोड़ों अरबों की चल अचल संपत्ति का स्वामी है… महंगे आलीशान अपार्टमेंट में रहने वाला लग्जरी गाड़ियों से चलने वाला |
100 करोड़ से 1000 करोड़ बनाने की ख्वाहिश करने वाला… दूसरा वह मध्यम वर्गीय वर्ग है जो दुनिया जहां की संपत्ति को पाना चाहता है..। एक शानदार परिंदे को मारकर कैसे जीवन में समृद्धि आ सकती है समृद्धि तो दूर समृद्धि का आभास भी नहीं हो सकता…! यह कुरीति हमारे समाज में कैसे आई जानकार बताते हैं मुगल जब इस देश में आए तो उल्लू की बलि उन्होंने ही चलाई… गंडा ताबीज मौलवी की पर्ची जैसे अंधविश्वास पाखंड मुगलों ने ही बहुसंख्यक हिंदू समाज में प्रचारित किए…. ओर कुछ मूर्ख हिंदुओं ने झूठी कहानियां गढ़ गढ़ कर उन्हें प्रचारित किया जो आज भी जारी है….|
संसार की प्राचीन पुस्तक ईश्वर की अजर अमर वाणी वेद कहती है यदि समृद्धि चाहते हो तो कर्म करो पुरुषार्थ करो…. आलसी व्यक्ति का कोई काम सिद्ध नहीं होता | हमने वेद की आज्ञा को ठुकरा कर पाखंड अंधविश्वास को गले से लगा लिया है नतीजा अधिकांश जनता दुखी है | आज उल्लू ढूंढने से भी दिखाई नहीं देते उल्लू चिड़ियाघर तक सिमट कर रह गए हैं… अभी यदि हम जागरूक सतर्क नहीं हुए तो उल्लू चिड़ियाघरों में भी दिखाई नहीं देंगे उल्लू के केवल जीवाश्म दिखाई देंगे पुरातात्विक संग्रहालय में | आप एक उल्लू को मारते या मरवाते हैं तो आप उस अन्नदाता किसान के भी गुनहगार हैं जिस को आर्थिक नुकसान हुआ है कीटों के कारण फसल चौपट होने से|
अंत में इतना ही कहना चाहूंगा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत उल्लू को पकड़ना उसकी तस्करी करना दंडनीय अपराध है 3 वर्ष की सजा है कोई तांत्रिक व्यक्ति शिकारी उल्लू के साथ आपको दिखे तो नजदीकी पुलिस थाने अथवा क्षेत्रीय वन अधिकारी को सूचित करें |
यह पोस्ट समर्पित है उन गधों के लिए जो पाखंड अंधविश्वास से ग्रस्त होकर उल्लू जैसे लाभकारी परिंदे को मरवाते हैं |
आर्य सागर खारी ✍️✍️✍️