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लेखक आर्य सागर खारी ✍
दीपावली का पर्व आगमन की ओर है…. शहरो अर्ध शहरी गांव कस्बो को छोडकर शेष देश के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में वनवासी पहाड़ी आंचल में गाय के गोबर का चौका लगाया जाता है या लीपन किया जाता है….। घर आंगन को परिमार्जित संस्कारित करने के लिए…।
गोमय या गोबर का ही चौका क्यों लगाया जाता है? इससे पूर्व हमें विचार करना होगा आखिर गाय के शरीर से निकले मल को घर आंगन में स्थान क्यों दिया गया? भैंस के मल को कभी गोबर नहीं कहा जाता बकरी भेड़ आदि जो शाकाहारी जीव है उनके मल को गोबर ने कहा जाता। गाय से उत्पन्न होने कारण ही इसे गोबर कहा जाता है।
गाय के गोबर को पवित्र बनाता है इसका रोगनाशक कीटाणु नाशक द्रव्य गुण कर्म विपाक। गाय का गोबर एक ऑर्गेनिक पेस्ट है…. गाय जंगल या गोचर भूमि पर चुन-चुन कर जड़ी बूटियों वनस्पतियो औषधियों का सेवन करती है…. गाय के पेट में जाकर इन जड़ी-बूटियों का पेस्ट रूप मिश्रण तैयार हो जाता है जिसका सार रूप दुग्ध है तथा शेष असाररूप जड़ी बूटियों का अंश उसके गोबर में शेष रहता है । गोबर गाय के पेट में उत्पन्न होने वाली जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अंतिम उत्पाद है। रसायन शास्त्र औषधि विज्ञान की भाषा में गोबर विविध मेडिसिनल ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल का असमांगी मिश्रण है। गाय के गोबर में एंटीबैक्टीरियल एंटी माइट बहुत से गंदगी नाशक ऑर्गेनिक कंपाउंड पाए जाते हैं।।।। इसीलिए हमारे बुद्धिमान पूर्वजों ने लेपन घर के परिमार्जन के लिए गाय के गोबर का चयन किया यह एक वैज्ञानिक बोध था जो परंपरा से चला आ रहा था ।आज भी अफ्रीकी देशों में अधिकांश जनजातियां गाय के गोबर का लेपन चौका अपने घरों पर लगाती है बहुत से जहरीले कीट ऐसे घरों में प्रवेश नहीं करते। अफ्रीकी समुदाय भी गाय के गोबर को पवित्र मानता है। वैदिक कर्मकांड के ग्रंथों में भी यज्ञ वेदी को गोमय से लिपने का निर्देश मिलता है…. आज शहरी संस्कृति में कच्चा स्थान ढूंढने से भी दिखाई नहीं देता फिर भी सोसाइटी पार्क में ऐसा स्थान आसानी से उपलब्ध हो जाता है वहां दीपावली होली जैसे पर्व पर गाय के गोबर का लेपन करने के पश्चात यज्ञ अनुष्ठान जप प्राणायाम करना चाहिए इससे हमारी संस्कृति जीवित रहेगी… पहले गांवों में महीने के प्रत्येक 15 दिवस के अंतराल पर पूरे घर को गाय के गोबर से लीपा जाता था… माताएं बहने कुशल कलाकार थी हाथों से बहुत सुंदर पैटर्न चित्र चौके में दिखाई देते थे… रोबोटिक आर्म से भी इतना सुंदर पैटर्न नहीं बन सकता जितना वह अपने हाथों से बना देती थी। यही कारण है आयुर्वेद के ग्रंथ सुश्रुत संहिता में महर्षि सुश्रुत ने 100 से अधिक शल्यक्रिया में काम आने वाले यंत्रों का वर्णन प्रयोग विधि के उल्लेख के पश्चात ‘ मानव हाथ’ को सबसे उत्तम प्रधान यंत्र माना है ।मास्टर इन सर्जरी के छात्रों को भी यही पढ़ाया जाता है हाथ को साधने वाला ही शल्य क्रिया का शिक्षार्थी कुशल सर्जन बनता है चाहे कितने ही आधुनिक यंत्रों का प्रयोग कर ले हाथ को नहीं साधा तो कुछ नहीं। लेख का उपसंहार करते हुए विषय पर लौटते हैं गोबर के लेपन से असंख्य संक्रमक बीमारियां घर में प्रवेश नहीं कर पाती थी। आज हमारे पक्के नवीन सीलन से युक्त मकान बैक्टीरिया वायरस फगसं के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गए हैं। पक्के मकानों को गोबर से नहीं लीपा जा सकता लेकिन गाय के सूखे गोबर पर गूगल पीली सरसों गाय के घी की धूनी घर में की जा सकती है….. इससे भी वही लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं…..!
आर्य सागर खारी ✍✍✍