न तो सत्य को समाप्त किया जा सकता है, और न ही झूठ को
संसार में सत्य और झूठ, अच्छाई और बुराई सदा से चलते आए हैं, और आगे भी सदा चलते रहेंगे। "न तो सत्य को समाप्त किया जा सकता है, और न ही झूठ को।" "क्योंकि जिस वस्तु से यह संसार बना है, उसमें मूल रूप से 3 प्रकार के सूक्ष्मतम परमाणु होते हैं। जिनका नाम है सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण। इन्हीं 3 प्रकार के परमाणुओं के सामूहिक रूप का नाम प्रकृति है।"
"इन तीनों में से सत्त्वगुण अच्छा है। वह आत्मा को अच्छे काम करने की प्रेरणा देता है। रजोगुण थोड़ा खराब है। वह चंचलता और स्वार्थ को उत्पन्न करता है। तमोगुण तो और भी अधिक खराब है। वह तो चोरी डकैती लूट मार हत्याएं अपहरण आदि जघन्य अपराधों को करने की प्रेरणा देता है।" इस प्रकृति से ही यह सारा संसार बना है। और इसी से शरीर मन इंद्रियां बुद्धि आदि पदार्थ भी बने हैं। "आत्मा जब शरीर मन आदि पदार्थों को धारण करता है, तब इन तीनों सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण के संपर्क में रहता है। इसलिए इन तीनों का प्रभाव भी आत्मा पर सदा ही पड़ता रहता है।"
हां, इतना हो सकता है, कि आत्मा सत्त्वगुण के प्रभाव को उभार कर और रजोगुण तमोगुण के प्रभाव को दबा कर अच्छाई की ओर चले। "इस स्थिति में जब सत्त्वगुण का प्रभाव उभरता है, तब वह आत्मा को अच्छी प्रेरणा देता है। तब आत्मा में शांति होती है। आनन्द उत्साह और निर्भयता होती है।" "जब रजोगुण और तमोगुण का प्रभाव उभरता है, तब आत्मा में अशांति झूठ छल कपट चोरी बेईमानी इत्यादि बुरे कर्मो में रुचि होती है, तथा उसे अपने अंदर भय शंका लज्जा आदि की भी अनुभूति होती है।"
"रजोगुण और तमोगुण के प्रभाव से व्यक्ति स्वयं को धोखा देता रहता है, और झूठ छल कपट धोखाधड़ी बेईमानी आदि को ही अच्छा मानकर उसी में अपना जीवन जीता रहता है।" "परन्तु जब सत्त्वगुण का प्रभाव बढ़ता है, तब कभी कोई सत्य अचानक सामने आ जाता है, उस समय व्यक्ति चाहे, या न चाहे, तब सत्य उसको हिला कर रख देता है। उसे जोरदार झटका लगता है। तब व्यक्ति अविद्या की निद्रा से जागता है। और यदि वह पूर्व जन्म के अच्छे संस्कार वाला हो, तो वह उस सत्य को स्वीकार कर लेता है, जिससे उसकी उन्नति होती है, और उसका सुख बढ़ता है।"
"जो व्यक्ति फिर भी सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह सदा अविद्या में ही जीता रहता है, और बुरे काम कर कर के सदा दुखी रहता है। ईश्वर उसे अगले जन्मों में पशु पक्षी आदि योनियों में डालकर भयंकर दंड देता है।"
"इसलिए सबको सदा सावधान रहना चाहिए। रजोगुण और तमोगुण के प्रभाव को दबा कर रखना चाहिए। सत्त्वगुण के प्रभाव को उभार कर रखना चाहिए। जिससे कि सब लोग अच्छे काम करें, तथा बुराइयों से बचें। अचानक सत्य के सामने आने पर झटके न लगें, और अच्छे काम करते हुए सदा आनन्द में रहें।"
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”