भारतीय समाज के लिए यह खुशी की बात है कि बाबा रामदेव और टीम अन्ना भ्रष्टïाचार के खिलाफ चल रही अपनी जंग को मिलकर लडऩे पर सहमत हो गये हैं। लेकिन उनकी सहमति फिर भी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लेकर सामने आयी है। क्योंकि केवल भ्रष्टïाचार मिटाना ही इन दोनों व्यक्तियों का अंतिम उद्देश्य नहीं है। अंतिम उद्देश्य तो व्यवस्था परिवर्तन है और फिर व्यवस्था परिवर्तन के लिए स्वयं को विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना भी बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि राजनीति के प्रति हमारे समाज में जो उदासीनता दीख रही है उसे समझने और पढऩे की आवश्यकता है। लोग एक सक्षम नेतृत्व और सफल नेता की खोज में हैं। उन्हें ऐसा अन्ना नहीं चाहिए जो केवल भ्रष्टïाचार से लड़े और किसी खास राजनीतिक दल को भ्रष्टïाचार की वर्तमान दलदल के लिए दोषी मानकर उसके खिलाफ चुनाव प्रचार करे। जनता चुनाव प्रचार में किसी राजनीति दल की ओर इन लोगों का झुकाव देखना भी नहीं चाहती क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल जनता की नजरों में जंच नहीं रहा है। अंधों के शहर में कानों की बूझ हो रही है। जबकि कानों से भी तो काम नहीं चलने वाला। जनता तो समाज राजनीति दल चाहती है। अब प्रश्न ये है कि क्या टीम अन्ना और रामदेव क्या कोई ऐसा समाज राजनीतिक दल देने की स्थिति में है। अन्ना हजारे अभी तक अपने संगठन को कोई नाम नहीं दे गये हैं। लोगों ने ही उनके संगठन को टीम अन्ना कहना आरंभ कर दिया है और बाबा रामदेव का भारत स्वाभिमान ट्रस्ट अभी राजनीति की एबीसीडी ही सीख रहा है। उसे भी अभी विधिवत एक राजनीतिक दल के रूप में परिवर्तित होकर राष्टï्रव्यापी छवि बनाने और क्रांति मचाकर सत्ता तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करना है। तब तक बाबा और अन्ना की जोड़ी कहां बिछुड़ जाए कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि राजनीति में थोड़ा खाना और प्रतीक्षा करना आजकल किसी के लिए भी वश की बात नहीं रही है। बाबा रामदेव कुछ कुछ भाजपा का अनुकरण कर रहे हैं और गीत मुलायम सिंह यादव जैसों के गा रहे हैं। ऐसे में उनकी सोच है कि भारत स्वाभिमान के नजरिये से देश में सांस्कृतिक राष्टï्रवाद की धूम भाजपा की तरह मचाकर हिंदुत्व को झकझोरा जाए और सत्ता का रास्ता खोजा जाए। लेकिन इसके लिए उनकी सोच है कि मुस्लिम नेताओं की भी मदद ली जाए? मदद लेना तो बुरी बात नहीं है लेकिन मैं आचार्य बालकृष्ण के साथ एक मंच पर स्वयं उपस्थित रहा। मैंने देखा कि मंचासीन 23 लोगों में से 16 मुसलमान थे। अत: बाबा रामदेव का भाजपायी हिंदुत्व मुलायम सिंह यादव की सपा का दूसरा संस्करण हो सकता है। इसे देश की जनता अभी से नकार रही है। इसलिए बाबा को राजनीति से दूर रहने की शिक्षा देने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अन्ना हजारे अपनी टीम की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को शायद अभी समझ नहीं पा रहे हैं। उनकी टीम की सोच भ्रष्टïाचार उन्मूलन को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति का आधार बनाना लगता है। लेकिन इस टीम के पास कोई भी ऐसा चिंतन नहीं लगता है जिससे भारतीय समाज की समस्याओं और आ रही जटिल विसंगतियों का समाधान हो सके। जैसे एक विसंगति जातिवाद है। उत्तर प्रदेश को ही लें। यहां अब एक जाति विशेष के लोगों का शासन प्रशासन पर दबदबा है। वो लोग पांच साल तक प्रदेश को अपनी बपौती मानकर प्रयोग करेंगे। उसी जाति के लोगों का काम वरीयता और प्राथमिकता से होगा। यह स्थिति जातिवादी राजनीतिक भ्रष्टïाचार है। क्या टीम अन्ना के पास ऐसा कोई जनलोकपाल है, या ऐसी कोई विचार धारा है जिसके द्वारा तो इस सामाजिक जटिल विसंगति को उखाड़ फेंकने का दम भर सकती हो? शायद नहीं। हमारा मानना है कि भारत की सामाजिक विसंगतियों के विभिन्न स्वरूपों की पहले जांच पड़ताल हो। टीम अन्ना और बाबा रामदेव इन विसंगतियों की पड़ताल किन्हीं विशेषज्ञों से करायें तथा उन विसंगतियों को दूर करने के लिए और एक स्वस्थ समाज की संरचना के लिए कार्य करने के लिए आगे आया जाए। भ्रष्टïाचार तो रोग का बाहरी लक्षण है। यदि इसी को मुद्दा बनाकर चला गया तो मानना पड़ेगा कि रोगी को सही ढंग से डायग्नोस नहीं किया गया है। राजनीतिक दलों के द्वारा गठबंधन बना बनाकर देश पर राजनीति करना स्वार्थपूर्ति का घटिया और स्वार्थपूर्ण रास्ता है। इसमें संघर्ष से बचने की भावना है। अत: टीम अन्ना और बाबा रामदेव गठबंधन के चक्कर में ना पडें़। इनसे तो जनता का मन भर चुका है। यदि उन्होंने गठबंधन किया तो उनके गठबंधन का टूटना निश्चित हो जाएगा उनसे उम्मीद की जाती है कि वो दोनों एक नेता व एक लक्ष्य के मिशन पर कार्य करें। राष्टï्र उनसे आज यही चाहता है। यदि वह ऐसा करते हैं तो राष्टï्र सचमुच उनका ऋणी होगा।
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