जो व्यक्ति खुलेआम घोषणा करता है, कि "मैं नास्तिक हूं। मैं ईश्वर को नहीं मानता।" तो लोग उससे सावधान हो जाते हैं, और उसके साथ संभलकर व्यवहार करते हैं। क्योंकि उसके विषय में लोग ऐसा सोचते हैं कि "यह नास्तिक है। ईश्वर को तो मानता नहीं। कर्म फल को भी नहीं मानता। इसे ईश्वर के दंड का भय तो है नहीं। इसलिए यह हमारे साथ व्यवहार में कुछ गड़बड़ भी कर सकता है। अतः इसके साथ सावधानी से व्यवहार करना चाहिए।"
परंतु कुछ लोग कहते हैं, कि "हम आस्तिक हैं।" वे लोग कहने को तो कहते हैं कि "हम आस्तिक हैं." परंतु वास्तव में असली ईश्वर को वे लोग भी नहीं जानते, और भ्रांतियों में जी रहे हैं। "ईश्वर है कुछ और प्रकार का। तथा वे समझ रहे हैं कुछ और प्रकार का।"
ऐसे लोग ईश्वर को ठीक प्रकार से नहीं जानते और अपनी अज्ञानता के कारण, नकली आस्तिकता की आड़ में, वे भी संसार को लूटते रहते हैं। उनमें से अधिकांश लोग ऐसा मानते हैं, कि "ईश्वर बड़ा दयालु है. वह हमारे पापों को/अपराधों को माफ कर देगा." ऐसा सोचकर वे अपराध करते रहते हैं। "दिन भर झूठ छल कपट धोखा बेईमानी आदि सब पाप कर्म करते रहते हैं, और अगले दिन सुबह सुबह उठकर वे अपने भगवान से माफी मांग लेते हैं।" और ऐसा मान लेते हैं कि "अब हमारे पाप माफ हो गए। अब हम और पाप भी कर सकते हैं।" "इस प्रकार से पाप कर्म करने में उनकी निर्भयता बढ़ती जाती है, और वे कभी भी बुरे कामों से नहीं छूट पाते।"
यद्यपि ईश्वर उनके अपराध या पाप माफ नहीं करता। परंतु फिर भी वे भ्रांतिवश ऐसा मान लेते हैं कि "अब तो ईश्वर ने हमको माफ़ कर दिया है। अब कोई डर नहीं है।"
ऐसा मान कर अगले दिन वे फिर अपराध करते हैं। इसी प्रकार से वे जीवन भर भ्रांति में रहते हैं और अपराध करते जाते हैं। वे यह नहीं जानते, कि "इन सारे अपराधों का दंड ईश्वर उनको अवश्य देगा, माफ बिल्कुल नहीं करेगा।"
ऐसे लोग बहुत कुछ अड़ियल स्वभाव के भी होते हैं। यदि उनको कोई बुद्धिमान विद्वान व्यक्ति ऐसा समझाए, कि "ईश्वर ऐसा नहीं है, जैसा आप समझ रहे हैं। ईश्वर किसी के पाप माफ नहीं करता। आपके भी नहीं करेगा। आपको भी पशु पक्षी आदि योनियों में भयंकर दंड देगा। इसलिए आप पाप कर्म न करें और अच्छे काम करें।" तो वे सुनने को ही तैयार नहीं होते। इतने अंधविश्वासी होते हैं, और कहते हैं कि "हम जो मानते हैं, वही ठीक है। हमें किसी की सलाह की जरूरत नहीं है।" ऐसे नकली आस्तिक लोगों को समझाना बहुत कठिन है।
"इसलिए नास्तिक और नकली आस्तिक, इन दोनों प्रकार के लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है। यदि आप दोनों से सावधान रहेंगे, और संभलकर व्यवहार करेंगे, तो ही इनके आक्रमण से बहुत सीमा तक बच पाएंगे। और अधिक से अधिक सुखपूर्वक जीवन जी सकेंगे।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़ गुजरात।”