हुक्का शान नहीं विनाश है धूम्रपान ने बर्बाद कर दिया भारतीय योद्धा समाज की नस्ल डीएनए को*


🚭🚭🚭🚭🚭🚭
लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

जब किसी समाज या जन्मना जाति आधारित व्यवस्था में हुक्का धूम्रपान जैसी बुराई को उस समाज की शान समझ लिया जाता है, तो उस समाज को विनाश से कोई नहीं बचा सकता| 15 वीं शताब्दी में अकबर के दरबार से चली धूम्रपान की बुराई आज उत्तर पश्चिम दक्षिण भारत में प्रमुखता से व्याप्त है| उत्तर भारत के प्रमुख योद्धा समाज व बहादुर कौम के स्वास्थ्य को यह हुक्का रूपी राक्षस खा गया है| सृष्टि की आदि से लेकर 15 वीं शताब्दी तक भारत में हुक्का तंबाकू का नामोनिशान तक नहीं था| हमारे पूर्वज प्रातः शाम शुद्ध वायु का सेवन करते थे |शुद्ध पदार्थ खाते पीते थे लेकिन जब से हमारे समाज में हुक्का जैसी बुराई को शान समझकर अपनाया गया यह सामुहिक प्रचलन में आया तब से ही कैंसर तपेदिक ,आंतों में घाव मसूड़ों में सूजन अपपचन ह्रदय रोग खुजली जैसी बीमारियां चल पड़ी जिनके भयंकर परिणामों से आप भली भांति परिचित हैं यह पंचो का नहीं जहर का प्याला है |

इसके सेवन से बुद्धि का नाश होता दिमाग इस के धुए💨 से रच जाता है | | हुक्के ने भारतीय समाज को विखंडित किया है लोगों को आलसी, कामचोर बनाया है| गाय आदि पशु तो दूर गधे भी तंबाकू के खेत में नहीं घुसते |सभी समाज के लोग हुक्का धूम्रपान को अपनी अपनी बिरादरी की शान समझते हैं बिरादरी शब्द बारहदरी शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है |

अरब के रेगिस्तान में बारहदरी अरब के बद्दू लोग बिछाते थे |उन पर बैठकर रात दिन धूम्रपान करते थे| कबीले का कोई व्यक्ति भटक ना जाए ,हुक्का तंबाकू का सेवन अरब के लोगों की मजबूरी थी नाक गले से धूल धक्कड़ को खांसी लेकर खास कर निकालना पड़ता था सामूहिक एकता बनी रहती थी वहां तारों की छांव में प्राकृतिक परिवेश उपलब्ध नहीं हो पाता था| हमारे किसी धर्म ग्रंथ व ऐतिहासिक ग्रंथ रामायण महाभारत गीता आदि में हुक्का का जिक्र तक नहीं है ना ही हमारे किसी वैदिक शब्दकोश में हुक्के के लिए कोई शब्द उपलब्ध है कुछ नशेड़ी तो अपनी बुराई को अच्छाई सिद्ध करने के लिए आदि आदि योगी शिवजी महाराज जो पशुपतिअस्त्र आदि शस्त्रों के अनुसंधानकर्ता थे ज्ञान के आनंद में लीन रहते थे उन्हें धूम्रपानप्रेमी बताते हैं अपने महापुरुषों को बदनाम करते हैं जैसे इनके बाप दादों ने शिवजी महाराज को चिलम भर कर दी हो | यह बुराई करोड़ों वर्ष पुरानी वैदिक संस्कृति में मात्र 500- 600 वर्ष पहले स्थान पाई है|

15वीं 16 वी सताब्दी में अकबर ,जहांगीर पुर्तगालियों ने इस बुराई को भारत में फैलाया|
लेकिन भारत जैसे स्वर्ग सुंदर देश विश्व के सिरमौर देश में जहां लोग ऋषि महर्षियो के आश्रमों, गांव की चौपालों पर बैठकर आध्यात्मिक चर्चा व शारीरिक मानसिक 💪💪💪 उन्नति के विभिन्न क्रियाकलापों में लगे रहते थे वहां आज हुक्का व धूम्रपान सुल्फा जैसे स्वास्थ्यनाशक लकड़ी के खूटे को मुंह में देखकर जीवन व अमूल्य स्वास्थ्य को नशे के धुए में उड़ा कर अपनी झूठी शान में मस्त रहते हैं |

मैं देखता हूं सब समाज के युवक हुक्का धूम्रपान करते हुए अपनी फोटो को सोशल मीडिया पर डालते हैं इसमें अपनी शान समझते हैं ।राम व कृष्ण के वंशजों शान देश की एकता ,अखंडता, समृद्धि में योगदान देने में है ना कि अपने स्वास्थ्य व जीवन के अमूल्य समय को धूम्रपान जैसी बुराइयों में गंवाने में है| आजकल के युवकों के होंठ गुलाबी नहीं काले ,नीले दिखाई देते हैं| मुंह से दुर्गंध आती है जो बुराई की गिरफ्त में हमारे बुजुर्ग युवक आए है हमारा फर्ज बनता है सच्चाई में जाकर हुक्का धूम्रपान रूपी राक्षस से समाज को मुक्ति दिलाना| आशा करता हूं आप देश ,समाज ,जाति के हित में राष्ट्रहित में इस पर विचार जरूर करेंगे| धूम्रपान से उत्पन्न होने वाली बीमारियों, दुष्प्रभावों से तो आप सभी परिचित हैं आशा करता हूं आप इस बुराई से अपने जीवन व अन्य व्यक्तियों को मुक्त करेंगे शुद्ध पवित्र परमात्मा को साक्षी मानकर आज ही बुराइयों से मुक्त जीवन का शुभ संकल्प लें।

आप सभी बंधुओं को सादर नमस्ते!

आर्य सागर खारी✒✒✒

Comment: