महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जन्मजयंती पर विशेष…
• क्यों मुझे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के प्रति आदर-सम्मान के भाव हैं?
केवल इसलिए नहीं कि उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, अपितु इसलिए कि उन्हीं ब्रह्मचारी योगी दयानन्द ने –
- असत्य के साथ कभी समझौता नहीं किया।
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स्त्रियों एवं शूद्रों को उनके मौलिक अधिकार दिलाए।
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भारत की अस्मिता और स्वाभिमान को जगाया।
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सोए हुए भारत की आत्मा को झिंझोड़ा और उसे नवजागरण, समाज सुधार के मार्ग पर चलना सिखाया।
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आर्यसमाज की 1875 में स्थापना करने से पहले स्वदेशी एवं स्वभाषा का पाठ पढ़ाया एवं विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन चलाया।
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सर्वप्रथम संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी में वेदों के विशुद्ध भाष्य किए।
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सर्वप्रथम फिरोजपुर में अनाथालय खोला।
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सर्वप्रथम हरियाणा के रिवाड़ी में गौशाला खोली तथा गाय आदि पशु-पक्षियों तथा शाकाहार का महत्त्व बताने के लिए ‘गोकरुणानिधि’ पुस्तक लिखी।
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सर्वप्रथम आर्यसमाज प्रवर्तित कर उसमें प्रजातान्त्रिक प्रणाली का सूत्रपात किया।
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सर्वप्रथम अपनी आत्मकथा हिन्दी में लिखी।
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1882 में गौवध बन्द कराने के लिये दो करोड़ हस्ताक्षर युक्त एक विज्ञापन महारानी विक्टोरिया को देने का देशव्यापी अभियान चलाया।
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भारत में औद्योगिक तथा तकनीकी विकास के लिए 1880 में सर्वप्रथम जर्मनी के एक विशेषज्ञ प्रोफेसर जी० वाइज के साथ पत्रव्यवहार किया ताकि भारतीय विद्यार्थियों को कला-हुन्नर के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।
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सत्य के प्रचार के लिए अगणित अपमान सहन किए, विषपान तक किया, परंतु अपने विरोधियों का कभी अनिष्ट नहीं सोचा।
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सत्यार्थ प्रकाश जैसा अमूल्य ग्रंथ लिखा, जिसे पढ़कर हमें सत्य-असत्य का विवेक प्राप्त होता है।
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स्वदेश-भक्ति, देशाभिमान का सूत्रपात किया, जिससे राष्ट्रीय जागरण हुआ और देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करनेवाले अनेक क्रांतिकारी पैदा हुए।
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संस्कारविधि जैसा ग्रंथ लिखकर पुरातन वैदिक षोडश संस्कारों की पुनित परंपरा को पुनर्जीवित किया।
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वेदोक्त ईश्वर का सत्य स्वरूप प्रकाशित किया और उसे पाने – उसका साक्षात्कार करने के लिए संध्योपासन, योगाभ्यास आदि को व्याख्यायित किया।
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ईश्वर-जीव-प्रकृति – ये तीन अनादि तत्त्व आधारित वैदिक दर्शन (त्रैतवाद) का प्रमाण पुरस्सर एवं तार्किक प्रतिपादन किया।
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देश में व्याप्त अंधविश्वासों, पाखंडों, कुरीतियों, अवैज्ञानिक चिंतन आदि के विरुद्ध मृत्यु पर्यन्त संघर्ष किया।
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और अन्त में ‘हे ईश्वर ! तेरी इच्छा पूर्ण हो’ ऐसा कहकर अपने आपको उस अनन्त ब्रह्म के आगे समर्पित कर दिया।
साभार : Bhavesh Merja
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