सहभोज का आनंद लेते हैं। वर्तमान में मंदिर के श्रीमहंत रामानंद गिरि जी महाराज हैं। जो श्रद्घा भाव से लोगों का मार्ग दर्शन करते हैं और लोगों की धर्म और अध्यात्म की प्यास मिटाते हैं। उनका कहना है कि जीवात्मा कितने ही शुभ कर्मों के पश्चात मानव जन्म को प्राप्त होती है। इसलिए इस मानव देह में आकर जीवात्मा के लिए शुभ कार्य करना परम आवश्यक हो जाता है। यदि मानव जन्म पाकर भी मानव शुभ कार्यों में अपना ध्यान नहीं लगा पाया तो पता नहीं फिर कितने जन्मों के लिए भटकना पड़ जाएगा। महाराज श्री ने इस बार के भंडारे में उपस्थित लोगों को प्रवचन करते हुए कहा कि अपनी पुण्य की कमाई में से नित्य थोड़ा बहुत दान अवश्य किया करो हमारे पूर्वजों ने भंडारों का आयोजन इसलिए ही कराने की परंपरा डाली थी कि लोग अपने द्वारा किये गये दान से असहाय लोगों को भोजन खिला सकें और उनके किसी भी प्रकार से काम आ सकें। भंडारे में हिंदू महासभा के प्रांतीय मंत्री नीर पाल भाटी, महंत महादेव गिरि, बुद्घ गिरि, धर्मेन्द्र गिरि, नारायण गिरि, त्रिवेणी गिरि, प्रेमवत्स, मनोज वत्स, योगेन्द्र भाटी, अजय आर्य, सुंदरलाल शर्मा, अनिल गोयल आदि सहित हजारों लोग मौजूद थे।