अकबर भी मान गया था रानी दुर्गावती की वीरता का लोहा
अनन्या मिश्रा
इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में गढ़मंडला की वीर तेजस्वी रानी दुर्गावती का नाम लिखा गया है। क्योंकि पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने राज्य को बहुत अच्छे से संभाला था। उन्होंने कभी भी मुगल शासक अकबर के सामने घुटने नहीं टेके, बल्कि वीरता से उसका सामना किया। रानी दुर्गावती ने तीन बार मुगलों की सेना को पराजित किया था। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 5 अक्टूबर को रानी दुर्गावती का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर रानी दुर्गावती के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
चंदेल राजवंश के कालिंजर किले में प्रसिद्ध राजपूत चंदेल सम्राट कीरत राय के परिवार में 5 अक्टूबर सन 1524 को रानी दुर्गावती का जन्म हुआ। यह वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बांदा जिला हैं। उस दौरान रानी दुर्गावती के पिता चंदेल वंश के सबसे बड़े शासक थे। रानी के पिता ने खजुराहों के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के बिल्डर थे और महमूद गजनी को युद्ध में खदेड़ने वाले शासक थे। दुर्गाष्टमी के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया था। इनके तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता चारो ओर फेमस थी।
रानी दुर्गावती को तीरंदाजी, तलवारबाजी का बहुत शौक था, वह बंदूकों के बारे में अच्छी-खासी जानकारी रखती थीं। रानी दुर्गावती बचपन में ने घुड़सवारी भी सीखी थी और ज्यादा समय अपने पिता के साथ बिताती थीं। जिस कारण वह राज्य के कार्यों को भी संभालना अच्छे से जानती थीं।
विवाह योग्य होने के बाद रानी दुर्गावती के पिता ने उनके लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया। लेकिन रानी दुर्गावती दलपत शाह की वीरता और साहस से बहुत प्रभावित थी, जिस कारण वह उनसे शादी करना चाहती थीं। लेकिन दलपत शाह राजपूत ना होकर गोंढ जाति के थे, जिस कारण रानी के पिता इस शादी के खिलाफ थे। वहीं दलपत शाह के पिता संग्राम शाह थे जोकि गढ़ा मंडला के शासक थे, वह भी रानी दुर्गावती को अपनी बहु बनाना चाहते थे, इसलिए संग्राम शाह ने कालिंजर में युद्ध कर रानी दुर्गावती के पिता को हरा दिया। जिसके बाद राजा कीरत राय ने अपनी पुत्री रानी दुर्गावती का विवाह दलपत शाह से कराया।
दलपत शाह और रानी दुर्गावती का विवाह होने के बाद गोंढ ने बुंदेलखंड के चंदेल राज्य के साथ गठबंधन कर लिया। विवाह के कुछ समय बाद रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। लेकिन उसी दौरान साल 1550 में राजा दलपत शाह की मौत हो गई। उस दौरान वीर नारायण सिर्फ 5 साल के थे। पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने 5 साल के पुत्र को राजगद्दी पर बैठाकर खुद राज्य की शासक बन गईं।
रानी दुर्गावती के गोंडवाना राज्य का शासक बनने के बाद उन्होंने अपनी राजधानी चौरागढ़ किला जोकि वर्तमान में नरसिंहपुर जिले के पास स्थित गाडरवारा में है। वहां स्थानांतरित कर लिया। उनके शासन काल में राज्य की शक्ल ही बदल गई। रानी दुर्गावती ने अपने राज्य में कई मंदिरों, भवनों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया। जिस कारण उस दौरान उनका राज्य सम्रद्ध और संपन्न हो गया। शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद सन 1556 में सुजात खान ने रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला किया। लेकिन रानी दुर्गावती ने उसका बड़ी वीरता से सामना किया और युद्ध में विजय प्राप्त की। इस युद्ध के बाद रानी दुर्गावती की लोकप्रियता में वृद्धी होती गई।
अकबर के एक सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां उर्फ असफ खान की नजर काफी समय से रानी दुर्गावती के राज्य पर थी। उस दौरान रानी दुर्गावती का राज्य मालवा की सीमा को छूने लगा था। वहीं असफ खान और अकबर को पालने वाली महम अंगा का पुत्र अधम खान मुगल बादशाह अकबर को उकसाने लगे। जिसके बाद अकबर भी उनकी बातों में आकर रानी दुर्गावती के राज्य को हड़पने और रानी दुर्गावती को अपने हरम में शामिल करने के ख्वाब देखने लगा। इस दौरान मुगल शासक अकबर ने युद्ध शुरू करने से पहले रानी दुर्गावती को एक पत्र लिखकर उनके प्रिय हाथी सरमन और विश्वासपात्र आधारसिंह को अपने पास भेजने के लिए कहा। रानी द्वारा मांग अस्वीकार करने पर अकबर ने असफ़ खान को मंडला में हमला करने का आदेश दे दिया।
साल 1562 में असफ़ खान ने रानी दुर्गावती के राज्य मंडला में हमला करने का निर्णय किया। लेकिन इस दौरान रानी दुर्गावती ने भी राज्य की रक्षा के उद्देश्य से रणनीति बनानी शुरू की। हांलाकि रानी दुर्गावती को मालूम था कि मुगल सेना के आगे उनकी सेना काफी कमजोर है, लेकिन शर्मनाक जीवन की तुलना में उन्होंने सम्मान की मौत चुनना ज्यादा बेहतर समझा। इसके बाद मुगल सेना और मंडला की सेना में युद्ध छिड़ गया। मुगल सेना से युद्ध करते – करते रानी दुर्गावती बहुत ही बुरी तरह से घायल हो चुकीं थीं।
मुगल सेना का सामना करते हुए 24 जून 1524 को लड़ाई के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान के पास से होकर निकला। इस तीर ने उनके गर्दन को छेद दिया था। वहीं उनका पुत्र वीर नारायण भी बुरी तरह घायल हो गया था और रानी दुर्गावती भी अपने होश खोने लगीं। जब उन्हें यह लगा कि वह यह युद्ध नहीं जीत सकती हैं, तो रानी ने अपने एक सैनिक से उन्हें मारने के लिए कहा। लेकिन सैनिक ने अपनी रानी को मारने से इंकार कर दिया। जिसके बाद रानी दुर्गावती ने अपनी ही तलवार अपने सीने में मारकर खुद को मौत के हवाले कर दिया। मंडला और जबलपुर के बीच स्थित पहाड़ियों में रानी दुर्गावती का शरीर गिरा था। इसलिए मंडला और जबलपुर के बीच स्थित बरेला में रानी दुर्गावती की समाधि बनाई गई। आज भी लोग दूर-दूर से रानी दुर्गावती की समाधि देखने यहां पर पहुंचते हैं।