यज्ञ से बायोफोर्टीफाइड फसलें*
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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️
आज हमें भोजन से केवल ऊर्जा मिल रही है लेकिन पोषण नहीं मिल रहा है बुजुर्ग अक्सर कहते हुए मिलते हैं कि अब खाने पीने की किसी चीज में पहले जैसा स्वाद नहीं रहा |यह समस्या हमारे देश के बुजुर्गों की नहीं है यह जलवायु परिवर्तन की तरह एक वैश्विक समस्या बन गई है| विश्व की 2 अरब से अधिक आबादी कुपोषित है भोजन होते हुए भी…. कृषि वैज्ञानिकों पर्यावरणविदों के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है… हर सामग्री स्वादहीन पोषण हीन होती जा रही है जिस पौधे फल फूल अन्न को खाकर हम अपना पोषण लेते हैं वही कुपोषित हो गए हैं…. अमेरिकी सहित दुनिया के विशेषज्ञों ने इस समस्या का समाधान निकाला है जो खर्चीला शोषण परक है बायोफोर्टीफाइड क्रॉप्स के रूप में… वह मक्का ज्वार बाजरा शकरकंदी आलू में ऐसे जीन डाल रहे हैं जो उन में उच्च पोषक तत्व को बनाएं… इस खर्चीली प्रक्रिया में मिट्टी के प्रदूषण पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है| लोगों को अलग से फूड सप्लीमेंट लेने की जरूरत नहीं पड़े जिनका शरीर पर नुकसान पड़ता आहार से ही कुपोषण दूर हो जाए…।
किसी अनाज या दूध को फोर्टीफाइड करने की प्रक्रिया काफी खर्चीली है… लेकिन यज्ञ के माध्यम से बहुत कम लागत से फसलों को फोर्टीफाइड किया जा सकता है हमारे पूर्वजों ने ऐसा किया भी है लाखों वर्षों से करते आ रहे थे…. यज्ञ से प्रदूषण का नाश ही नहीं होता जैव जगत का पोषण पुष्टिकरण भी होता है टर्मिनोलॉजी बदल गई है हमने यज्ञ से नहीं समझा लेकिन अब हमारी समझ में आने लगा है…. ईश्वर की व्यवस्थाएं रूपांतरित नहीं होती सूर्य चंद्र सृष्टि की आदि में रचे गए लेकिन वह आज भी प्रसांगिक प्रभावशील हैं ऐसे ही यज्ञ है पर्यावरण पोषण मानव स्वास्थ्य से जुड़ी जितनी भी टेक्नोलॉजी इजाद होंगी यज्ञ का कोई ना कोई आयाम स्वतः ही जुड़ जाएगा |
अमेरिका जैसे देश अरबों डॉलर खर्च कर कुछ ही फसलों को बायोफोर्टीफाइड कर पाए हैं वेदों में परम पिता ने मनुष्य मात्र को यज्ञ करने की आज्ञा दी है.. यज्ञ कर्मकांड ही नहीं ठोस वैज्ञानिक क्रिया भी है…. बड़े-बड़े यज्ञों के माध्यम से हमारे पूर्वज फसलों को बायोफोर्टीफाइड जैव पुष्टिकरत करते थे…. इसे ऐसे समझना होगा आज हम जो रासायनिक खाद डालते हैं उससे पौधे की वृद्धि होती है पौधे का जो फल बीज होता है वह पुष्ट नहीं होता….. लेकिन यज्ञ अग्नि में जो सामग्री डाली जाती है रोग नाशक, पुष्टि कारक ,सुगंधीकारक मिष्ठगुण युक्त( बादाम छुहारा मुनक्का इंद्र जौ गिलोय कालमेघ जावित्री जायफल छबीला अगर तगर केसर लॉन्ग) वह ऑक्सीकरत होकर परिवेश में घुल मिल जाती है फसलों की जड़ों तनों में पहुंचकर पौधे की क्रियाशीलता जीवनी शक्ति में आशातीत वृद्धि कर देते हैं…. ऐसी फसल कभी कुपोषित हो ही नहीं सकती!
ऋग्वेदआदि भाष्य भूमिका में ऋषि दयानंद लिखते हैं….!
“केसर कस्तूरी आदि सुगंध दुग्ध घी आदि पुष्ट गुड मिस्ठ और सोमलता आदि रोगनाशक जो यह चार प्रकार के बुद्धि वृद्धि शूरता धीरता बल और आरोग्य करने वाले गुणों से युक्त पदार्थ हैं उनका हवन करने से पवन और वर्षा जल की शुद्धि करके शुद्ध पवन और जल के योग से पृथ्वी के सब पदार्थों की जो अत्यंत उत्तमता होती है उससे सब जीवो को परमसुख होता है इस कारण उस अग्निहोत्र कर्म करने वाले मनुष्य को भी जीवो के उपकार करने से अत्यंत सुख का लाभ होता है तथा ईश्वर भी उन मनुष्यों पर प्रसन्न होता है।
ऐसे ऐसे प्रयोजनों के अर्थ अग्निहोत्र आदि का करना अत्यंत उचित है ”
ऋषि दयानंद ने जलवायु परिवर्तन के संकट को 19वी सदी मे ही भाप लिया था…!
आज विश्व में 15 करोड़ बच्चे बोने है अर्थात उनकी शारीरिक वृद्धि नहीं हो पा रही है कुपोषण के कारण भारत में 50 फ़ीसदी से अधिक माताओं बहनों में खून की कमी है… कारण यही है पोषण देने वाली फसलें ही कुपोषित हो गई है ! अमेरिका जैसे मौकापरस्त देशों ने फोर्टीफाइड क्रॉप व मिल्क के नाम पर billion dollar का मार्केट खड़ा कर दिया है गरीब व्यक्ति ऐसे अनाज दूध उनको नहीं खरीद सकता…!
आप दैनिक यज्ञ नहीं कर सकते मासिक यज्ञ अपने घर में करा सकते हैं बिना पुरोहित के भी यज्ञ हो सकता यदि आपको यज्ञ विधि मालूम नहीं है गायत्री मंत्र से न्यूनतम 21 अधिकतम कितनी भी आहुति डाली जा सकती हैं देश काल परिस्थिति को देखते हुए ऋषियों ने छूट दी है |होली दीपावली जैसे त्योहारों पर सामूहिक रूप से बड़े-बड़े यज्ञ करें और कराएं आप कुपोषण जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध इस लड़ाई में निर्णायक योद्धा बन सकते हैं ! आपका तथा आपकी आने वाली नस्लों का यह लोक तथा परलोक दोनों सुधर जाएगा.. वेद में कहा भी गया है “स्वर्गकामो यजेत “अर्थात सुख के अभिलाषी को यज्ञ करना चाहिए….!
वेदों में यज्ञ को भुवन की नाभि बताया गया है अर्थात परोपकार युक्त कार्यों का केंद्र यज्ञ ही होता है उपनिषदों में इसे श्रेष्ठ नहीं श्रेष्ठतम कर्म कहा गया है |
आर्य सागर ✍️✍️✍️