वेद पहले कौनसी लिपि में लिखे गए और कब लिखे गए – महर्षि दयानन्द जी का मन्तव्य •
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महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने पुणे में 25 जुलाई 1875 को इतिहास विषय पर एक व्याख्यान दिया था। इस व्याख्यान में उन्होंने कहा :
“इक्ष्वाकु यह आर्यावर्त में प्रथम राजा हुआ। इक्ष्वाकु की ब्रह्मा से छठी पीढ़ी है। पीढ़ी शब्द का अर्थ बाप से बेटा यही न समझें, एक अधिकारी से दूसरा अधिकारी ऐसा जानें। पहला अधिकारी स्वायम्भुव [मनु ] था। इक्ष्वाकु के समय लोग अक्षर स्याही आदि लिखने की रीति को प्रचार में लाये, ऐसा प्रतीत होता है। कारण, इक्ष्वाकु के समय में वेद को बिलकूल कण्ठस्थ करने की रीति बन्द पड़ने लगी। जिस लिपि में वेद लिखे जाते थे, उस लिपि का नाम ‘देवनागरी’, ऐसा है कारण, देव अर्थात् विद्वान्, इनका जो नगर। ऐसे विद्वान् नागर लोगों ने अक्षर द्वारा अर्थ संकेत उत्पन्न करके ग्रन्थ लिखने का प्रचार प्रथम प्रारम्भ किया।” (उपदेश मंजरी, नवां व्याख्यान)
महर्षि जी की उक्त बात पर सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान् महामहोपाध्याय पण्डित युधिष्ठिर जी मीमांसक ने अपनी टिप्पणी में लिखा है –
“देवनागरी का प्राचीन नाम ब्राह्मी लिपि है। इसका प्रथम निर्माण ब्रह्मदेव ने किया था। लिपिज्ञान का संकेत ऋग्वेद के ‘उत त्वः पश्यन्न ददर्श वाचम्’ (10.71.4) मन्त्र में मिलता है। वाणी का दर्शन (श्रवण के प्रतिपक्ष में) चक्षु से लिपि रूप में ही सम्भव है। इसी आधार पर ब्रह्मा ने ब्राह्मीलिपि का निर्माण किया और उसका कार्य रूप में प्रचार इक्ष्वाकु के समय में हुआ ऐसा समझना चाहिए।”
[स्रोत : ऋषि दयानन्द सरस्वती के शास्त्रार्थ और प्रवचन, पृष्ठ 371, प्रथम संस्करण, प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]