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राम मोहन राय की सहनशीलता

ब्रिटिश भारत के महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा की समाप्ति और विधवा विवाह के समर्थन में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। जऱा सोचें, आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व के भारत में इन सुधारों की बात करना कितना क्रन्तिकारी कदम था। उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसका उद्देश्य था समस्त सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार करना और मानव मात्र की सेवा करना।
एक बार उनके दो मित्रों ने यह विचार किया कि यदि राजा राम मोहन राय वास्तव में ब्रह्मज्ञानी हैं तो उनपर किसी भी प्रकार के मोह-माया के बंधनों का असर नहीं पड़ेगा। इसकी परीक्षा लेने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। एक व्यक्ति को डाकिया बनाकर राजा राम मोहन राय को एक पत्र भिजवाया गया। पत्र में लिखा था कि आपके बड़े पुत्र का दुर्घटना में निधन हो गया है। योजना के अनुसार वे दोनों मित्र भी उस समय वहां मौजूद थे जब डाकिये ने वह पत्र राजा राम मोहन राय को दिया। राजा राम मोहन राय ने पत्र पढ़ा तो उनके चेहरे पर स्वाभाविक रूप से कुछ परिवर्तन आ गया। पुत्रशोक की वेदना उनके चेहरे पर उभर आई। कुछ क्षणों तक वे कुछ न बोले और निश्चल बैठे रहे। फिऱ वह जिस काम में लगे हुए थे उसी काम को करने लगे। कुछ ही समय में उन्होंने अपने आप को संभाल लिया और इतने बड़े शोक को सहने की शक्ति जुटा ली। दोनों मित्रों ने वास्तविकता बताकर उनसे अपने इस कृत्य के लिए क्षमा मांगी। राजा राम मोहन राय को उनके कृत्य पर जऱा भी क्रोध नहीं आया और वे पूर्ववत अपना काम करने में लगे रहे। ऐसे महान सपूत को पाकर मां भारती धन्य हो गयी। ऐसे महापुरूषों की जन्मस्थली भारत माता अपने इस तेजस्वी सपूत को उसकी जयंती पर नमन कर रही है।
उगता भारत की ओर से भी उन्हें नमस्कार

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