भाग 2
Dr DK Garg

सरस्वती नामक काल्पनिक चित्र का आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन:

भारत में सरस्वती पूजा दिवस विद्यालयों में बहुत धूमधाम से मनाते है। सरस्वती की आराधना केवल भारत और नेपाल में ही नहीं, बल्कि इण्डोनेशिया, बर्मा (म्यांमार), चीन, थाइलैण्ड, जापान और अन्य देशों में भी होती है. देवी सरस्वती को बर्मा (म्यांमार) में चीन में , जापान में और थाईलैण्ड में सरस्वती पूजा को किसी ना किसी नाम के नाम से जाना जाता है.प्राचीन ग्रीस में एथेंस शहर की संरक्षक देवी एथेना को ज्ञान, कला, साहस, प्रेरणा, सभ्यता, कानून-न्याय, गणित, जीत की देवी माना गया.जापान की लोकप्रिय देवी बेंजाइतेन को हिंदू देवी सरस्वती का जापानी संस्करण कहा जाता है. इस देवी के नाम पर जापान में कई मंदिर हैं.उपरोक्त से स्पष्ट है की सरस्वती देवी को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है।
शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का – अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती अर्चना की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।

माँ सरस्वती की पूजा की परिभाषा क्या है?

इसका भावार्थ है कि हमे किसी भी प्रकार से, वाणी का दुरुपयोग नहीं करना या स्वार्थ पूर्ण भाषा का प्रयोग नहीं करना। शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी ईश्वर के सरस्वती स्वरूप के पूजन दिवस की परम्परा है। पूजन का भावार्थ धूपबत्ती जलना ,आरती उतरना ,भोग लगाना नहीं बल्कि एक चर्चा दिवस ताकि बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और ज्ञान के अर्जन द्वारा धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने पर अधिक ध्यान दिया जाये। महाशक्ति गायत्री मंत्र उपासना के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है।

सरस्वती का काल्पनिक स्वरूप

सरस्वती के काल्पनिक स्वरूप का कारण विभिन्न वेद मंत्रो में प्रयुक्त सरस्वती शब्द के विभिन्न भावार्थ है। जिनको कलाकार द्वारा अपनी कल्पना की उड़ान द्वारा एक नारी में समस्त गुणों की छवि दिखाने का सफल प्रयास किया है। लेकिन दुर्भाग्य ये है की वास्तविकता समझने के बजाय काल्पनिक कहानिया लिख दी और सरस्वती नमक मूर्ति की पूजा होने लगी।

सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं। इसका भावार्थ चारो वेद का ज्ञान और चारो दिशाओं के विज्ञानं का ज्ञान होने के लिए प्रेरित करता है।
वाहन राजहंस -सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन राजहंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेद और स्फटीक होती है। जो संगीत के माध्यम से वेद मंत्रो के मधुर गायन की प्रेरणा देता है। हंस ज्ञान और अद्भुत का प्रतीत होता है। मां सरस्वती सिर पर मुकुट पहने होती हैं, और बिना को बजाते हुए दिखाई देती हैं, मुकुट उनकी राय सत्ता और शक्ति को प्रतिष्ठित करता है जबकि बिना उनकी कला और संगीत का प्रतीक है।
सरस्वती के वेद मंत्र के अर्थ समझने के लिए हमारे पास प्राचीन ऋषियों के प्रमाण हैं। निघण्टु में वाणी के 57 नाम हैं, उनमें से एक सरस्वती भी है। अर्थात् सरस्वती का अर्थ वेदवाणी है।
शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में माता को प्रथम गुरु कहा है:
मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद:

इसी आलोक में नारी को सरस्वती की संज्ञा से सुशोभित किया गया है,मां बच्चे को बोलना,चलना,खाना पीना सिखाती हैं और नीद के लिए इसको लोरिया सुनाती है।मां को मधुर वाणी से मंत्रमुग्ध बच्चा आनंदमय होकर सो जाया करता है।
ब्राह्मण ग्रंथ वेद व्याख्या के प्राचीनतम ग्रंथ है।वहाँ सरस्वती के अनेक अर्थ बताए गए हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
1- वाक् सरस्वती।। वाणी सरस्वती है। (शतपथ 7/5/1/31)
2- वाग् वै सरस्वती पावीरवी।। ( 3/39) पावीरवी वाग् सरस्वती है।
3- जिह्वा सरस्वती।। (शतपथ 12/9/1/14) जिह्ना को सरस्वती कहते हैं।
4- सरस्वती हि गौः।। वृषा पूषा। (2/5/1/11) गौ सरस्वती है अर्थात् वाणी, रश्मि, पृथिवी, इन्द्रिय आदि। अमावस्या सरस्वती है। स्त्री, आदित्य आदि का नाम सरस्वती है।
5- अथ यत् अक्ष्योः कृष्णं तत् सारस्वतम्।। (12/9/1/12) आंखों का काला अंश सरस्वती का रूप है।
6- अथ यत् स्फूर्जयन् वाचमिव वदन् दहति। ऐतरेय 3/4, अग्नि जब जलता हुआ आवाज करता है, वह अग्नि का सारस्वत रूप है।
7- सरस्वती पुष्टिः, पुष्टिपत्नी। (तै0 2/5/7/4) सरस्वती पुष्टि है और पुष्टि को बढ़ाने वाली है।
8-एषां वै अपां पृष्ठं यत् सरस्वती। (तै0 1/7/5/5) जल का पृष्ठ सरस्वती है।
9-ऋक्सामे वै सारस्वतौ उत्सौ। ऋक् और साम सरस्वती के स्रोत हैं।
10-सरस्वतीति तद् द्वितीयं वज्ररूपम्। (कौ0 12/2) सरस्वती वज्र का दूसरा रूप है।
ऋग्वेद के 6/61 का देवता सरस्वती है। स्वामी दयानन्द ने यहाँ सरस्वती के अर्थ विदुषी, वेगवती नदी, विद्यायुक्त स्त्री, विज्ञानयुक्त वाणी, विज्ञानयुक्ता भार्या आदि किये हैं।

Comment: