डी.ए.वी. नाम महात्मा हंसराज ने रखा था।
चपहला डी.ए.वी. स्कूल 1.6.1886 को लाहौर में खुला था। 1947 में यह देश का सबसे बड़ा डी.ए.वी. कालिज था।
चडी.ए.वी. नाम से पहला स्कूल, कालिज पंजाब राज्य में खुला। बाद में अनेकों राज्यों में ऐसे स्कूल, कालिज खुले और चल रहे हैं।
चडी.ए.वी. नाम के अधिकांश स्कूल कालेज सरकारी अनुदान से चलाये जा रहे हैं जहां धर्म शिक्षा नहंी दी जा सकती है।
चडी.ए.वी. खोलने का मुख्य उद्देश्य वेद प्रचार करना था अत: प्रबंधक समितियां को सरकारी अनुदान नहीं लेना चाहिए था ताकि वेद प्रचार के लिए धर्म शिक्षा दी जा सके।
चडी.ए.वी. डिग्री कालेजों में, अनेकों स्थानों पर, सह शिक्षा भी है जबकि यह स्वामी दयानंद के आदर्शों के विरूद्घ है अत: लड़कियों के कालेज अलग करने के प्रयास किये जाएं।
चसभी डी.ए.वी. स्कूल/कालिजों में ईश्वर स्तुति प्रार्थनोपासना के आठों मंत्र प्रार्थना में, बाले जाने चाहिए और दयानंद जयंती तथा हंसराज जयंती अवश्य मनाई जानी चाहिए।
चधन्य है पंजाब की धरती, क्योंकि 22 अक्टूबर 2010 से 73 एकड़ भूमि पर जालंधर पठानकोट मार्ग पर डी.ए.वी. विश्वविद्यालय बनना शुरू हो गया है।
चइसमें रोजगार परक पाठ्यक्रमों के साथ साथ शोध करने वाले छात्रों के लिए वैदिक अध्ययन के अलावा नैतिक शिक्षा का विशेष केन्द्र भ्ी बनाया जाएगा।
चमेरी मांग है कि इसकी बी.ए. तथा एम.ए की कक्षाओं में यह विषय भी पढ़ाए जाएं जैसे ऋग्वेद-यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेद भाष्य भूमिका, गोकरूशा निधि, गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, वैदिक धर्म, आर्य समाज, ओउम, वैदिक पर्व एवं संस्कार, कृष्वंतो विश्वमार्यम-महर्षि दयानंदद तथा महात्मा हंसराज की जीवनी।
इससे विश्वविद्यालय की अलग पहचान बनेगी।
च पंजाब के सभी डी.ए.वी. कालेज, इस विश्वविद्यालय से संबंधित किये जाएं। -इंद्रदेव गुलाटी
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