भाग 1
DR D K Garg
पौराणिक मान्यता: पौराणिक धर्म शास्त्रों में दो सरस्वती का वर्णन आता है एक ब्रह्मा पत्नी सरस्वती एवं एक ब्रह्मा पुत्री तथा विष्णु पत्नी सरस्वती। ब्रह्मा पत्नी सरस्वती मूल प्रकृति से उत्पन्न सतोगुण महाशक्ति एवं प्रमुख त्रिदेवियो मे से एक है एवं विष्णु की पत्नी सरस्वती ब्रह्मा के जिव्हा से प्रकट होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती है कई शास्त्रों में इन्हें मुरारी वल्लभा (विष्णु पत्नी) कहकर भी संबोधन किया गया है।
एक नदी का नाम भी सरस्वती है। अक्सर विद्यालयों में सरस्वती वन्दना की जाती है।वहाँ एक देवी जो हाथ में वीणा लिए बैठी हैं,उसकी स्तुति करते हैं।लेकिन वास्तव में सरस्वती है क्या?
विश्लेषण: सरस्वती संस्कृत का शब्द है , इस शब्द को कई अर्थो में प्रयोग किया जाता है -एक आध्यात्मिक अर्थ जिसमे ईश्वर के गुणों के आधार पर ईश्वर का एक नाम सरस्वती भी है। दूसरा -भौतिक नदी का नाम सरस्वती -जो की एक नदी का नाम है। वैसे वेद मंत्रो में भी सरस्वती शब्द कई बार आया है जिसका भावार्थ मंत्र के साथ जोड़कर देखन चाहिए।
इसलिए यहाँ हम सरस्वती के आध्यात्मिक स्वरूप पर ही चर्चा करेंगे और दुसरे भाग में वेदो में सरस्वती के अन्य शब्दार्थ पर चर्चा करेंगे।
सरस्वती पूजन का आध्यात्मिक विश्लेषण:
परमेश्वर का नाम ‘सरस्वती:
(सृ गतौ) इस धातु से ‘सरस’ उस से मतुप् और ङीप् प्रत्यय होने से ‘सरस्वती’ शब्द सिद्ध होता है। ‘सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती’ जिस को विविध विज्ञान अर्थात् शब्द, अर्थ, सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सरस्वती’ है।
ऋग्वेद 10/17/4 ईश्वर को सरस्वती नाम से पुकारा गया है।दिव्यज्ञान प्राप्ति की इच्छा वाले अखंड ज्ञान के भण्डार ‘‘सरस्वती‘‘ भगवान से ही ज्ञान की याचना करते है, उन्हीं को पुकारते है। तथा प्रत्येक शुभ कर्म में उनका स्मरण करते हैं। ईश्वर भी प्रार्थना करने की इच्छा पूर्ण करते हैं।
चारों वेदों में सौ से अधिक मन्त्रों में सरस्वती का वर्णन है। वेदों में सरस्वती का चार अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। पहला विद्या, वाणी, विज्ञानदाता, परमेश्वर। दूसरा विदुषी, विज्ञानवती नारी, तीसरा सरस्वती नदी, चैथा वाणी।
यस्ते स्तनः शशयो यो मयोभूर्येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि।
यो रत्नधा वसुविद् यः सुदत्रः सरस्वति तमिह धातवे कः।। ऋ॰१.१६४.४९
हे वेद माता ! हमें अपना स्तन्य पान कराओ, हमारी व्याधियां हरो, स्वास्थ्य प्रदान करो, दक्षता को बढ़ाओ, हमारे योग क्षेम का वहन करो एवं हम शिशुओं को अपना प्यार दो।
हे वेद वाणी! तू सरस्वती है, रस से भरी है।हे वेद माता सरस्वती!तू अपने शब्द रूप स्तन से वेदार्थ रूप दूध का पान कराती है।जैसे शिशु माँ का स्तन पीते-पीते सो जाता है ऐसी ही तूने अपने स्तन से ज्ञानरूप दूध का पान कराकर हम अबोध शिशुओं को पाप-ताप रहित विश्रान्ति की निन्द्रा में सुला देने वाली है। जब हम तन्मय होकर वेदार्थरस का पान करते हैं तब सचमुच समाधि जैसी सुखमयी विश्रान्त-निद्रा की अनुभूति होती है।