कांग्रेस ऐतिहासिक भूलों की भूली बिसरी पार्टी है । आजादी के बाद से हर दशक और हर दौर में इसने कुछ ऐसी ऐतिहासिक भूलें की हैं जिसने खुद कांग्रेस की चूलें हिला दीं है। सत्तर के दशक की इमरजेन्सी हो, अस्सी के दशक का भिंडरावाला हो या फिर वीपी सिंह हों, नब्बे के दशक की ममता बनर्जी हों या फिर शरद पवार हों, सदी के पहले दशक के जगनमोहन रेड्डी। कांग्रेस ऐसे अनगनिनत ऐतिहासिक भूलों से भरी पड़ी है। कड़प्पा के सांसद जगनमोहन रेड्डी की सीबीआई द्वारा जांच और उनकी गिरफ्तारी से वे अगले कुछ हफ्तों या महीनों में उबर जाएंगे लेकिन इस गिरफ्तारी और जांच की आंच से जो दहन पैदा होगी उससे कांग्रेस शायद ही कभी उबर पाये। कांग्रेस की केन्द्र सरकार का वैसे तो इसमें कोई खास रोल नहीं है क्योंकि जगनमोहन रेड्डी की आय से अधिक संपत्तियों का मामला हैदराबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई द्वारा दर्ज किया गया है। लेकिन इस पूरे प्रकरण का कांग्रेस कनेक्शन यह है कि जिस पी शंकर राव की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया है वह कांग्रेस की वर्तमान सरकार में राज्यमंत्री हैं और अब तक कांग्रेस के टिकट पर पांच बार विधायक रह चुके हैं। पी शंकर राव किसी जमाने में जगनमोहन के पिता वाईएसआर के नजदीकी हुआ करते थे लेकिन जिंस कांग्रेस के दबाव में वाईएसआर ने उन्हें पार्टी में किनारे किया आज उसी कांग्रेस को खुश करने के लिए पी शंकर राव जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ राजनीतिक मोर्चेबंदी कर रहे हैं। वैसे तो जगनमोहन रेड्डी को आप उस तरह का राजनीतिज्ञ बिल्कुल नहीं मान सकते जैसा कि नैतिकता के धरातल पर कल्पनाशीलता के बल पर हमारे दिलो दिमाग पर किसी नेता की छवि होती है लेकिन जगनमोहन रेड्डी उतने भी गये गुजरे राजनीतिज्ञ नहीं हैं जितना बताए जा रहे हैं। यह बात सही है कि पिता वाईएसआर के जमाने में जब खुद वाईएसआर राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे थे ठीक उसी वक्त जगनमोहन रेड्डी आर्थिक साम्राज्य बना रहे थे। आंध्र प्रदेश में 2004 में तेलुगुदेशम के शासन का दौर खत्म और कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी। क्योंकि खुद जगनमोहन रेड्डी उसी पीढ़ी की संतान नहीं हैं जो फैशन के लिए विदेश की डिग्री लेने जाते हैं इसलिए बाप की राजनीतिक गतिविधियों से अलग वे 1999 से ही छोटे मोटे व्यापार में लग गये थे। 2004 में जब पिता वाईएसआर मुख्यमंत्री बने तो अपनी व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए जगनमोहन के पास भी पर्याप्त मौका था। और उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया। पत्नी भारती के नाम पर सीमेन्ट कारखाना खोलने से लेकर बेटी साक्षी के नाम पर न्यूज चैनल तक सबकुछ अंजाम देते चले गये। सितंबर 2009 में रहस्यमय परिस्थितियों में वाईएसआर की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। रेड्डी की मौत के बाद स्वाभाविक रूप से जगनमोहन ने राजनीतिक दावा किया जिसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि अभी उनकी उम्र कम है और उन्हें वाईएसआर की राजनीतिक विरासत के तौर पर मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया जा सकता। जगनमोहन के दावे को खारिज करते हुए वाईएसआर की सरकार में वित्तमंत्री के रोसैया को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के बतौर शपथ दिला दी गई और जब रोसैया हटे तो एक बार फिर जगन के दावे को खारिज करके वाईएसआर के करीबी रहे किरण कुमार रेड्डी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई। नवंबर 2010 में जैसे ही किरण कुमार रेड्डी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उसके बाद जगनमोहन के लिए कांग्रेस में बने रहने का कोई तुक नहीं बचा था। नवंबर में ही जगनमोहन और उनकी मां ने पार्टी छोड़ दिया और अगले साल मार्च 2011 में उन्होंने पिता के नाम पर एक और कांग्रेस का गठन कर लिया। पिता की मौत के बाद दावेदारी खारिज होने के बाद जगनमोहन रेड्डी सोनिया दरबार में हाजिरी लगाने की बजाय जनता दरबार में हाजिरी लगाने पहुंच गये। पिता की छत्रछाया में विशुद्ध व्यापारी किस्म की छविवाले नौजवान जगनमोहन से ऐसी उम्मीद शायद ही किसी को रही हो। जगनमोहन द्वारा जनता दरबार में हाजिरी लगाना अगर उनकी मजबूती बना तो यही कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो गया। अब बौखलाहट में कांग्रेस जिस तरह से जगनमोहन को निपटाने की कोशिश कर रही है उससे हो न हो आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ही खत्म हो जाए। दूरगामी परिणाम क्या होंगे इसका अंदाजा 12 जून को होनेवाले उपचुनाव से लग जाएगा जब राज्य की 18 विधानसभा और एक लोकसभा सीट के लिए मतदान करवाया जाएगा। वाईएसआर के नाम पर राजनीतिक दल का गठन अगर जगनमोहन के लिए एकमात्र रास्ता था तो कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती। वाईएसआर राज्य में जो राजनीतिक जमीन तैयार करके गये थे उसमें कांग्रेस का झंडा कम, वाईएसआर की मेहनत ज्यादा थी। अस्सी के दशक में एनटीआर ने तेलुगु राजनीति के जो समीकरण बदले थे उसे दोबारा कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए किसी वाईएसआर जैसे करिश्माई नेतृत्व की ही जरूरत थी जिसे उन्होंने पूरा किया। वाईएसआर का प्रभाव राज्य के लोगों के मानस में कितना गहरे धंस चुका था कि उनकी मौत की खबर सुनने के बाद 122 लोगों ने आत्मदाह कर लिया था। जगनमोहन रेड्डी के लिए यह राजनीतिक विरासत जाया करना घाटे का सौदा था। लेकिन कांग्रेस उस जमीन पर जगन को पांव भी नहीं रखने देना चाहती थी जो वाईएसआर तैयार करके गये थे। यहीं से विवाद शुरू हुआ जो एक दूसरे को शह मात के खेल में तब्दील हो गया। ेकांग्रेस ने जगन को परास्त करने के सारे रास्ते अख्तियार करने शुरू कर दिये तो जगन ने दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने की बजाय जनता दरबार में जाने का निश्चय कर लिया। संभवत उन्होंने अपने पिता की 1400 किलोमीटर की उस यात्रा से प्रेरणा ली थी जो उन्होंने राज्य में कांग्रेस के पुनर्जीवन के लिए की थी। जगन के बारे में कहा जाता है कि वे समय पर और सटीक निर्णय लेते हैं। क्योंकि जगन का परिवार खानदारी व्यापारी रहा है इसलिए संभवत: नफे नुकसान को लेकर वे सटीक आंकलन करते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। यह जगनमोहन रेड्डी ही थे कि उन्होंने किसी भी बात की परवाह न करते हुए राज्य में किसानों के बीच सद्भावना यात्रा शुरू कर दी। कांग्रेस की ओर से उनकी यात्रा को रोकने की हजार कोशिशें हुई और उनके ऊपर गंभीर दबाव डाले गये लेकिन जगनमोहन को मूलमंत्र मिल चुका था इसलिए वे वापस नहीं लौटे। इसके बाद 2011 में कडप्पा के लोकसभा उपचुनाव में उनकी ऐतिहासिक पांच लाख से अधिक मतों से विजय कांग्रेस के लिए खतरे की एक और घंटी थी। इधर जगनमहोन रेड्डी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करते रहे तो उधर कांग्रेस के रणनीतिकार जगनमोहन को जमीन में गाडऩे की साजिशें तैयार करते रहे। हालांकि आज भी कांग्रेस में जगन के प्रति सद्भावना रखनेवालों का एक बड़ा वर्ग है लेकिन संभवत: शीर्ष पर बैठी सोनिया गांधी जगन से अपनी अदावत जारी रखना चाहती हैं। सोनिया गांधी को कभी यह मंजूर नहीं हो सकता कि कांग्रेस में किसी दूसरे परिवार को वह महत्व मिले जो नेहरू घांदी परिवार को मिला हुआ है। क्षेत्रीय स्तर पर ही सही अगर ऐसा होता है तो वहां नेहरू घांदी परिवार का महत्व कम होता है। इसलिए केन्द्र की अनगिनत एजंसियां जगन के करीब चार हजार करोड़ के व्यावसायिक साम्राज्य का नापजोख करने निकल पड़ीं। सीबीआई की तीन दिन की पूछताछ के बाद आखिरकार रविवार की शाम उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
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