ग्रेटर नोएडा विगत 21 सितंबर से 24 सितंबर तक चला आर्य समाज सूरजपुर का वार्षिक सम्मेलन धूमधाम से संपन्न हो गया। इस अवसर पर आर्य जगत के अनेक विद्वानों ने आकर उपस्थित जन – गण का मार्गदर्शन किया। इस संबंध में जानकारी देते हुए आर्य समाज सूरजपुर के प्रधान मूलचंद शर्मा ने हमें बताया कि इन चारों दिनों में वैदिक सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर अनेक विद्वानों ने अपने विचारों से लोगों को लाभान्वित किया। उन्होंने बताया कि चारों दिन वैदिक मंत्रों से यज्ञ हवन का सुंदर संचालन उनकी स्वयं की देखरेख में संपन्न हुआ । जिसके ब्रह्मा स्वामी अखिलानंद जी महाराज रहे। स्वामी जी महाराज ने लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि वेद की यज्ञ की संस्कृति से ही संसार का कल्याण संभव है । स्वामी अखिलानंद जी महाराज ने लोगों को वेद के साथ जुड़कर चलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जिसके जीवन से यज्ञ गायब हो जाता है उसका जीवन निरर्थक हो जाता है।
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध भजनोदेशक संदीप आर्य ने अपने ओजस्वी वक्तव्य से लोगों के दिमाग में हलचल पैदा कर दी। उन्होंने प्रत्येक सत्र में अपनी ओजस्विता की निराली छाप छोड़ी। इसी प्रकार संगीता आर्या मैं भी लोगों का ओजस्वी मार्गदर्शन किया। उगता भारत के अध्यक्ष श्री देवेंद्र सिंह आर्य ने कहा कि राधा जन्माष्टमी के बारे में वैदिक और वैज्ञानिक जानकारी दी कि राधा नाम का एक काल्पनिक चरित्र बनाया गया है। जिसका कृष्ण जी से कोई संबंध नहीं है और कृष्ण जी की केवल एक पत्नी थी जिनका नाम था रुक्मणी । उन्होंने भी अपने विवाह के पश्चात 12 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का तप किया। उसके बाद एक पुत्र प्रद्युम्न पैदा किया था ।
इसके अलावा श्री आर्य ने योग दर्शन के चौथे अध्याय कैवल्य पाद के प्रथम सूत्र का भी प्रतिपादन एवं प्रस्तुतीकरण किया। जिसमें पांच प्रकार की समाधियां होती हैं। पहली समाधि जन्मजा, दूसरी औषधिजा, तीसरी मंत्रजा, चौथी तपोजा, पांचवी समाधिजा । इसी प्रकार श्री आर्य ने महर्षि दयानंद की एक छोटी सी पुस्तक आर्योद्देश्यरत्नमाला के आधार पर आर्य की परिभाषा, वैदिक संपत्ति नामक पुस्तक रघुनंदन शर्मा की लिखी गई के आधार पर भागवत पुराण की वास्तविकता, सांख्य दर्शन में मन बुद्धि और अहंकार अंतकरण तीन की बात आदि विषयों पर अपने विचार रखे।
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य करण सिंह ने भी स्वामी दयानंद जी महाराज के वैदिक चिंतन और आदर्श जीवन पर अपना वक्तव्य रखा। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज की दृष्टि बड़ी विशाल थी और उनका चिंतन एवं दृष्टिकोण भी बहुत व्यापक था। उनके चिंतन और व्यापक दृष्टिकोण को अपनाकर आज का नेतृत्व भारत को विश्व गुरु बनाने में सफल हो सकता है। इसी प्रकार सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि 1857 की क्रांति के समय स्वामी दयानंद जी महाराज को स्वामी बृजानंद जी, स्वामी पूर्णानंद जी और स्वामी आत्मानंद जी जैसे महान व्यक्तित्वों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था। जिनमें से स्वामी आत्मानंद जी का जन्म 1697 ईस्वी में अर्थात औरंगजेब के जमाने में हुआ था। इस प्रकार पिछली डेढ शताब्दी का इतिहास उन्हें किसी पुस्तक से पढ़ने को नहीं मिला बल्कि अपने इन परम तपस्वी गुरुओं के माध्यम से सीधा प्राप्त हो गया। इसी के दृष्टिगत उन्होंने भारत को स्वाधीन करने का सपना संजोया । उनके इस सपने के चलते ही आर्य समाज नाम की पवित्र और महान क्रांतिकारी संस्था ने भारत को आजाद करने की ओर तेजी से बढ़ना आरंभ किया और अंत में एक दिन देश आजाद हुआ।
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य उमेश चंद्र कल श्रेष्ठ ने चारों दिन अमृत वर्षा की और लोगों को वैदिक मार्ग को अपनाकर अपने जीवन का कल्याण करने की प्रेरणा दी। आचार्य श्री ने कहा कि स्वामी दयानंद जी महाराज ने लोक कल्याण के लिए अपने जीवन को संघर्षों के पथ पर चलाया था। उन्होंने संघर्षों की परवाह किए बिना निरंतर आगे बढ़ने का उद्यम किया। मानवता के कल्याण को लेकर स्वामी दयानंद जी आगे बढ़े और सारे संसार को आर्य बनाने का संकल्प व्यक्त करते हुए संसार के अनेक लोगों को वैदिक धर्म के प्रति आस्थावान बनाया। उन्होंने कहा कि स्वामी जी के ऋण को हैं कभी भी कभी चुका नहीं सकते। स्वामी दयानंद जी महाराज ने अनेक लोगों को धर्म के प्रति आस्थावान बनाकर महाभारत की के गुलामी के बंदों को काटने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने राजाओं को प्रेरित किया और सोए हुए भारत को जगा कर भारत को आजाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने राजाओं को झकझोर कर रख दिया था और उन्हें उनका राजधर्म याद दिलाकर भारत माता के गुलामी के बंधन काटने की शिक्षा दी थी। इन चारों दिनों में अन्य वक्ताओं में आर्य जगत के तपस्वी देव मुनि जी महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किया और पांच महायज्ञों के साथ जुड़कर लोगों को व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। ओम मुनि जी महाराज, गिरीश मुनि जी महाराज और अन्य अनेक साधु संतों ने भी इस अवसर पर रहकर लोगों को वैदिक धर्म के साथ जुड़कर चलने की प्रेरणा दी।