उपनयन संस्कार के समय ली गई प्रतिज्ञा से ही होता है राष्ट्र का निर्माण : स्वामी सुमेधानंद जी महाराज
ग्रेटर नोएडा ( अमन कुमार आर्य ) यहां पर श्री गजेंद्र सिंह आर्य के निवास पर उनके पौत्र अक्षय और आदित्य के उपनयन संस्कार के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे आर्य समाज के मूर्धन्य विद्वान और राजस्थान के सीकर लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा सदस्य स्वामी सुमेधानंद जी महाराज ने कहा कि यज्ञोपवीत संस्कार में आचार्य व शिष्य एक वेद मन्त्र बोलकर परस्पर प्रतिज्ञा करते व कराते हैं। मन्त्र है ‘ओ३म् मम व्रते ते हृदयं दधामि मम चित्तमनुचित्तं ते अस्तु। मम वाचमेकमना जुषस्व बृहस्पतिष्ट्वा नियुनक्तु महयम्।।’ इस मन्त्र में आचार्य प्रतिज्ञा करते हुए शिष्य को कहता है कि ‘हे शिष्य बालक ! तेरे हृदय को मैं अपने अधीन करता हूं। तेरा चित्त मेरे चित्त के अनुकूल सदा रहे और तू मेरी वाणी को एकाग्र मन हो प्रीति से सुनकर उसके अर्थ का सेवन किया कर और आज से तेरी प्रतिज्ञा के अनुकूल बृहस्पति परमात्मा तुझको मुझसे युक्त करे।’ इस मन्त्र की भावना के अनुरूप शिष्य भी प्रतिज्ञा करते हुए कहता है कि ‘हे आचार्य ! आपके हृदय को मैं अपनी उत्तम शिक्षा और विद्या की उन्नति में धारण करता हूं। मेरे चित्त के अनुकूल आपका चित्त सदा रहे। आप मेरी वाणी को एकाग्र होके सुनिए और परमात्मा मेरे लिए आपको सदा नियुक्त रक्खे।’ स्वामी जी महाराज ने कहा कि आचार्य और शिष्य की यह प्रतिज्ञायें विद्या प्राप्ति का मुख्य सिद्धान्त है। जहां आचार्य और शिष्य द्वारा इन प्रतिज्ञाओं का पालन होता है वहां शिष्य श्रेष्ठ शिष्य बनते हैं और जहां किसी कारण ऐसा नहीं होता वहां शिष्यों की बुद्धि का समुचित विकास नहीं होता। बुद्धि का विकास न होने से शिष्य सदाचारी व वेदाचारी भी कम ही बनते हैं। उन्होंने कहा कि उपनयन संस्कार का हमारे जीवन में विशेष अर्थ है। इस समय ली गई प्रतिज्ञाएं राष्ट्र निर्माण में सहायक होती हैं।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे आर्य समाज के मूर्धन्य विद्वान और बागपत लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ सत्य सिंह ने कहा कि आज हमें वैदिक संस्कारों को घर-घर में पहुंचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत की वैदिक संस्कृति के 16 संस्कार ही मानव मन में स्थाई शांति ला सकते हैं। क्योंकि संस्कारों से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। संस्कारों की प्रबलता बने रहने से जीवन निर्मल होता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज भारत के योग का समस्त संसार में डंका बज रहा है जो इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत की वैदिक संस्कृति विस्तार प्राप्त कर रही है। उन्होंने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब वैदिक ऋषियों के चिंतन से समस्त संसार लाभान्वित होगा और भारत विश्व गुरु बनेगा। इसके लिए हमें लगन से कार्य करने की आवश्यकता है और बच्चों के इसी प्रकार के उपनयन संस्कार कराकर उनके भीतर वैदिक संस्कारों को स्थापित करने की आवश्यकता है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉक्टर राकेश कुमार आर्य ने इस अवसर पर कहा कि भारत के अनेक वीर वीरांगनाओं ने भारत की वैदिक संस्कृति अर्थात चोटी और जनेऊ की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। यह संस्कारों का ही परिणाम था कि उन वीर योद्धाओं ने मरने से पहले तनिक भी यह नहीं सोचा कि वह ऐसा कार्य क्यों कर रहे हैं ? इसका कारण केवल एक था कि उनके भीतर उत्सर्ग का वह पवित्र भाव 16 संस्कारों की वैदिक संस्कृति ने भरा , जिसके कारण वह अपने धर्म के लिए बलिदान हो गए। आज भी हमें ऐसे ही बलिदानी वीर वीरांगनाओं की आवश्यकता है। क्योंकि बलिदानी वीर वीरांगनाओं से ही राष्ट्र की संस्कृति का संरक्षण होना संभव है। डॉ आर्य ने कहा कि राष्ट्र पर समर्पित होकर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वीर वीरांगनाओं का निर्माण संस्कारों से ही होता है।
इस अवसर पर आर्य समाज के मूर्धन्य विद्वान ज्योतिष आचार्य लोकेश दार्शनेय ने भी अपने विचार व्यक्त किये और भारत की प्रचलित कैलेंडर प्रणाली में आ रहे गंभीर दोष की ओर संकेत किया। उन्होंने भी इस बात पर बल दिया कि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए हमें सनातन की परंपराओं के प्रति पूर्ण निष्ठा से जुड़ना होगा। बहन अलका आर्य ने इस अवसर पर भजनों के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन किया और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए लोगों को आगे आने का आवाहन किया। अंत में पूर्व प्राचार्य रहे और आर्य समाज के लिए जीवन भर समर्पित होकर काम करने वाले श्री गजेंद्र सिंह आर्य ने अपने पुत्र राघवेंद्र सोलंकी व अन्य परिजनों की ओर से सभी आगंतुकों का धन्यवाद किया।