प्रदेश की बिजली व्यवस्था कैसे ठीक हो
देवेंद्र आर्य का विशेष संपादकीय
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश में बिजली की बिगड़ती हुई व्यवस्था पर चिंता प्रकट की है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश सरकार को बसपा सरकार की वजह से 25 हजार करोड़ रूपये का कर्ज चुकता करना है। शिवपाल यादव का कहना है कि ग्यारह हजार करोड़ मेगावाट के सापेक्ष 8140 मेगावाट बिजली प्रदेश के पास है। केन्द्र से 5288 मेगावाट की जगह 3900 मेगावाट बिजली मिल रही है। इसलिए बिजली संकट प्रदेश में बना हुआ है। वास्तव में प्रदेश में बिजली की व्यवस्था बड़ी ही खराब है। आम आदमी का भयंकर गर्मी से जीना मुश्किल हो रहा है। सरकारों की नीतियां यद्यपि गरीब और आम आदमी की दिक्कत को नजर में रखकर बनायी जाती हैं, लेकिन देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ये योजनाएं अधिकांश रूप में क्रियान्वित नहीं हो पातीं। कुछ रही सही कसर को हमारे राजनीतिज्ञ अपने अपने चुनावी घोषणाओं में की गयी घोषणाओं की पूर्ति करने में पूरी कर देते हैं। समाज में कुछ लोगों को उन घोषणाओं से राहत मिलती है तो अधिकांश अपने जीवन को और भी कड़े संघर्ष में डाला गया महसूस करते हैं। बिजली के बिना आज शहरों और कस्बों में ही नहीं गांवों में भी रहना कठिन हो गया है। जब चुनावी घोषणाओं की पूर्ति में खजाना खाली हो जाता है तो फिर बिजली जैसी रोजमर्रा की आवश्यकता पूर्ति कैसे होगी? उसके लिए धन चाहिए और धन खर्च हो गया किसी अन्य मद पर। अब ऐसी परिस्थितियों में क्या किया जाए कि प्रदेश के खाली खजाने के बावजूद कुछ सही कदम उठा लिये जाएं और समस्या का समाधान हो जाए। प्रदेश सरकार को चाहिए कि प्रदेश के ऐसे लोगों को एक विकल्प दिया जाए सो साधन संपन्न हैं और जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है कि वो अगले दस साल का बिजली का बिल एक साथ जमा कर दें, उनको उसमें कुछ छूट दी जाए साथ ही अभी जो बिजली की दरें हैं उनसे उन्हीं दरों पर आगामी दस साल का बिल ले लिया जाए। फिर इस धन से और अधिक बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए काम किया जाए। दूसरे, बिजली की चोरी को रोकने के लिए कुछ ठोस काम किये जाएं। सड़कों और गलियों में स्ट्रीट लाइटें यूं ही दिन में भी जलती रही हैं, उनके लिए ऐसी व्यवस्था की जाए कि वो दिन में कतई भी ना जलने पायें। इसके लिए यदि कुछ लोगों की और भर्ती करानी पड़े तो करायी जाए, लोगों को कम से कम रोजगार तो मिलेगा। इसके अतिरिक्त प्रदेश की नदियों के वर्षा जल को संचित करने के लिए जगह जगह बांध बनाये जाएं उन बांधों से नहरें निकालकर कृषि योग्य भूमि की सिंचाई का प्रबंध कराया जाए। इससे भू गर्भीय जल का संरक्षण तो होगा ही साथ ही जिन क्षेत्रों में बिजली की सप्लाई कर ट्यूबवेलल से भूगर्भीय पेयजल का दोहन हो रहा है वह भी नहीं होगा और बिजली की बचत भी होगी। प्रदेश में गांवों में सौर ऊर्जा के कार्यक्रम को बढ़ाया जाए। इससे बिजली की बचत होती है और कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन का दोहन भी नहीं हो पाता है। बड़े-बड़े उद्योगों में बिजली की चोरी का पुख्ता प्रबंध कर लिया जाता है। इन उद्योगों पर बिजली विभाग का करोड़ों रूपया उधार रहता है। एक शासनादेश जारी कर जितने भर भी मामले न्यायालयों में बिजली के बिलों की बाबत लम्बित हैं उन सबमें किसी एक समय सीमा के अंतर्गत विशेष छूट पर जमा कराने की बात कही जाए। एक मोटी रकम इससे प्रदेश के खजाने में जमा हो सकती है। इससे न्यायालयों पर कार्य की अधिकता तो कम होगी ही साथ ही बिजली विभाग को कुछ अतिरिक्त आय भी होगी। प्रदेश में वर्षा जल को संचित करने हेतु गॉंवों के बड़े-बड़े पोखरों को गहरा खुदवा कर उनमें खेती योग्य भूमि की सिचाई के लिए व्यवस्था की जाए इससे बिजली की बचत होगी।
यदि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हमारे इन सुझावों पर विचार करेंगे तो प्रदेश की बिजली की दुव्र्यव्यस्था को सुधारने में लाभ अवश्य ही मिलेगा।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।