सनातन की सतत साधना और भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम
भारत ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में आदिकाल से संपूर्ण भूमंडलवासियो का नेतृत्व करता आया है। भारत के अनेक ऋषि महात्मा ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक तेज के जागरण के चलते अनेक ऐसे आविष्कार किये जिनके संबंध में आज का कथित सभ्य समाज कल्पना भी नहीं कर सकता। भारत की सतत आध्यात्मिक साधना उसकी तेज की साधना का शाश्वत प्रयास है। आज हम जिस प्रकार चंद्रयान – 3 के माध्यम से एक नया कीर्तिमान स्थापित करने में सफल हुए हैं, उसके पीछे भारत की सनातन की सतत साधना को ही श्रेय दिया जाना चाहिए। अमेरिका और रूस जैसे देश भी भारत की इस आध्यात्मिक चेतना को अर्थात सनातनत्व को समझ नहीं पाए हैं। ईसाई और मुस्लिम देशों ने भरसक प्रयास किया कि भारत को आत्महीनता के भंवरजाल में फंसा कर उसे बार-बार यह आभास कराया जाए कि वह मूर्खों का देश है। इसके उपरांत भी भारत ने यह सिद्ध किया कि वह तेज की उपासना करने वाले ऋषि महर्षियों का देश है। चंद्रयान – 3 की सफलता ने विश्व की इस प्रकार की भारत विरोधी मानसिकता पर पूर्णविराम लगा दिया है। चंद्रमा के दक्षिणी तल पर आज तक कोई भी देश अपना यान उतारने में सफल नहीं हो सका। भारत के वैज्ञानिकों की सतत साधना के पीछे खड़ी भारत की आध्यात्मिक चेतना ने इस सफलता को भारत की झोली में डाल दिया।
भारत की इस सफलता से संपूर्ण विश्व को लाभ होना निश्चित है । चंद्रयान-3 के माध्यम से हम यह पता लगा सकेंगे कि चन्द्रमा पर जीवन के लिए आवश्यक पानी की उपलब्धता है अथवा नहीं, और यह भी कि चन्द्रमा पर किस प्रकार के खनिज पदार्थ (सोना, प्लेटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम, आदि) रासायनिक पदार्थ, प्राकृतिक तत्व, मिट्टी एवं अन्य तत्व पाए जाते हैं ? इस दृष्टिकोण से देखने पर पता चलता है कि भारत की यह उपलब्धि अकेले भारत की नहीं है, अपितु संपूर्ण मानवता की उपलब्धि है। यद्यपि हमारा यह भी मानना है कि ऐसा शायद ही कभी संभव हो सके कि हम चंद्रमा पर मिलने वाले खनिज पदार्थों का उपभोग कर सकें। क्योंकि यदि ऐसी तनिक सी भी संभावना दिखाई दी तो चंद्रमा पर पहुंचने की धरती के देशों में होड़ मच जाएगी। उसके पश्चात उन खनिज पदार्थों पर एकाधिकार करने के लिए वैश्विक शक्तियों में संघर्ष होना भी निश्चित है। तब यह भी संभव है कि चंद्रमा से कुछ खनिज पदार्थों को धरती पर लाने वाले किसी देश के चंद्रयान की दूसरे देश के चंद्रयान से मुठभेड़ हो। तब आकाश में भी डकैती पड़ने, संघर्ष होने, मारकाट मचने की अंधेरी सुरंग में मानवता ना चाहते हुए भी प्रवेश कर जाएगी।
जिन देशों को आज भारत की इस महान उपलब्धि पर जलन हो रही है उसके पीछे भी एक कारण यही है कि भारत ने चंद्रमा के जिस स्थान पर उतरने में सफलता प्राप्त की है, इस पर यदि वह उतरते तो उन्हें निश्चय ही इसके लाभ प्राप्त होते । जब मन में पाप होता है तो सब कुछ पाप पूर्ण ही दिखाई देता है। भारत की पवित्र मानवतावादी सोच के समक्ष अन्य किसी भी देश की विचारधारा इतनी पवित्र और निर्मल नहीं है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में जिस प्रकार अभी तक अमेरिका, रूस, चीन, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों का वर्चस्व रहा है ,भारत की इस उपलब्धि ने उनके इस वर्चस्व को न केवल तोड़ दिया है बल्कि उनके लिए पुनर्जीवित होने के संबंध में एक बहुत बड़ी चुनौती भी खड़ी कर दी है। वह नहीं चाहेंगे कि भविष्य में भारत इस क्षेत्र में कुछ और कीर्तिमान स्थापित करने में सफल हो। उनकी अड़ंगा डालने की नीति भारत के लिए भी स्पष्ट कर रही है कि उसे भी भविष्य में अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। अमेरिका कदापि नहीं चाहेगा कि अंतरिक्ष में उसके वर्चस्व को भारत जैसे देश से चुनौती मिले। जिस देश ने व्यापारी बनकर दुनिया के अब तक के प्रत्येक महायुद्ध में अपने आर्थिक लाभ देखे हों और जब मानवता का जीना कठिन हो गया हो उस समय भी उसने डॉलर कमाने को प्राथमिकता दी हो, वह भारत की उन्नति को भला कैसे पचा सकेगा?
हम सबके लिए यह सुखद आश्चर्य के साथ-साथ गौरव बोध कराने वाली बात भी है कि भारत आज समूचे विश्व को सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम के सम्बंध में भविष्यवाणी और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में अपना नेतृत्व प्रदान करते हुए बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है । अपनी इस महान उपलब्धि को स्थापित कर भारत ने संपूर्ण विश्व को यह दिखाया है कि जब अनेक देश आतंकवाद को बढाकर दुनिया को खत्म करने की तैयारी में लगे हुए थे और जब कुछ देश अन्य देशों का अस्तित्व समाप्त कर अपने अपने मजहब के विस्तार करने में लगे हुए थे, तब भारत शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व की नीति में विश्वास रखते हुए चंद्रयान – 3 की योजनाओं में व्यस्त था। भारत ने संसार को बताया है कि साधना का पथ शांति की शाश्वत खोज की ओर ले जाता है जबकि आतंकवाद की अमंगलकारी सोच मानवमात्र को पतन की ओर ले जाती है। भारत की इस उपलब्धि के बाद आशा करनी चाहिए कि अनेक देशों की सोच बदलेगी और वह समझेंगे कि खोज के लिए अनंत आकाश पड़ा है। पर इससे भी बड़ी खोज जो भारत की सोच में समाविष्ट रही है ,वह है आत्म तत्व की खोज। सनातन में विश्वास रखने वाला प्रत्येक सनातनी वेदों की रोशनी में इस आत्मतत्व की ओर भी बढ़ेगा, अब यह भी विश्वास किया जा सकता है।
भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम जैसे – जैसे आगे बढ़ेगा वैसे – वैसे ही हम अपने महान पूर्वजों के ज्ञान – विज्ञान और उनके अनेक विस्मयकारी आविष्कारों की पुष्टि करते चले जाएंगे। जैसे-जैसे हमारे ऋषियों की मान्यताओं और उनके महान आविष्कारों की पुष्टि होती जाएगी वैसे – वैसे ही सनातन संपूर्ण भूमंडल की दृष्टि में चढ़ता जाएगा। सनातन की विजय ही हमारी परम विजय होगी । उस समय हम उन सांप्रदायिक मान्यताओं को ध्वस्त होते देखेंगे जिन्होंने नालंदा को भूमिसात कर अवैज्ञानिकता को प्रोत्साहित किया और वेद के विज्ञानवाद का बोरिया बिस्तर बांधने का पाप किया था। जो देश आज भारत की सफलता को पचा नहीं पा रहे हैं और भारत के लिए भविष्य में अनेक प्रकार की बाधाऐं खड़ी करने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं, उनकी इस प्रकार की मानसिकता भी एक दिन पराजित होगी। क्योंकि :-
किसके रोके रुका है सवेरा।
दूर होकर रहा है अंधेरा।।
ताजा आंकड़ों के अनुसार “वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार 45,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो आगे आने वाले समय में 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अमेरिका की भागीदारी 56.4 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम की 6.5 प्रतिशत, कनाडा की 5.3 प्रतिशत, चीन की 4.7 प्रतिशत एवं जर्मनी की 4.1 प्रतिशत है। अब भारत भी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी, जो वर्तमान में 2 प्रतिशत से कुछ अधिक (960 करोड़ अमेरिकी डॉलर) है, को तेजी से आगे बढ़ाना चाहता है। एक अनुसंधान रिपोर्ट (आर्थर डी लिटिल) में यह दावा किया गया है कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2040 तक 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। भारत ने इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु 6 मार्च 2019 को न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) को 100 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी के साथ बैंगलोर में इसरो की वाणिज्यिक शाखा के रूप में स्थापित किया है।”
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)