देवी पूजा रहस्य* भाग-१
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डॉ डी के गर्ग
ये सीरीज १० भागो में है ,कृपया स्वयं ध्यान से पढ़े ,शेयर करें और मार्गदर्शन करें।
हिन्दू धर्म में तीन प्रमुख देवियों की चर्चा का वास्तविक भावार्थ :
पौराणिक लोग मुख्य रूप से तीन देवियो की पूजा करते है ,वैसे तो देश मे पूजने वाले देवियो की संख्या हजारो में है और प्रमुख रूप से उत्तराखंड ,मध्यप्रदेश ,हिमाचल और राजस्थान आदि प्रदेशो में इन देवियो का दबदबा है। इन देवियो में कौन सी ज्यादा प्रभावशाली है इसमें भी मतभेद है। एक देवी मांसाहारी है तो दूसरी के आगे पुलिस कर्मी रोजाना गार्ड आफ ऑनर देते है। कोई देवी धन दौलत देती है तो कोई बुद्धि और ज्ञान। जैसे की लक्ष्मी धन-धान्य या संपत्ति की देवी मानी जाती हैं। सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, तो दुर्गा शक्ति की देवी मानी जाती हैं।
दुखः इस बात का है की हम आँख बंद रखते है और इस अंधविस्वास को समझना भी नहीं चाहते।
वेद मंत्रो में तीन देवियों की चर्चा ?
इळा,सरस्वती और मही इन तीनो देवियों की चर्चा वेद मंत्रो में कई स्थलों पर आती है। कहीं-कहीं मही के स्थान पर तीसरी देवी भारती है। एवं मही (महिला )और भारती पर्यायवाची हैं।यह तीनों देवियां राष्ट्रयज्ञ में आसीन होनी चाहिएं, तभी राष्ट्र उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच सकता है।
१ ‘इळा‘ संपदा की प्रतीक है। ‘इळा‘ शब्द वैदिक कोष निघंटु में भूमि, अन्न और गाय का वाचक है।भूमि, अन्न, और गाय तीनों विभिन्न संप्रदायों के ही रूप हैं। राष्ट्रीय के पास पर्याप्त भूमि होनी चाहिए, भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्नों के भंडार भी भरे होने चाहिए, और गायें एवं दूध दही माखन आदि भी राष्ट्र वासियों को यथेष्ट उपलब्ध होने चाहिएं।
२ दूसरी देवी सरस्वती है,जो विद्या की प्रतीक है।सरस्वती के लिए वेद में कहा गया है कि वह ज्ञान की बाढ़ लाती है, सूनृताओं को प्रेरित करती है और सुमतियों को जागृत करती है। ‘सरस्‘का अर्थ है मधुर ज्ञानधारा। एवं सरस्वती प्रशस्त ज्ञान धारावाली है। राष्ट्रीय में ज्ञान-विज्ञान की धार सदा बहती रहनी चाहिए। इसके लिए राजा और प्रजा दोनों का सतर्क रहना अनिवार्य है।
(सृ गतौ) इस धातु से ‘सरस्’ उस से मतुप् और ङीप् प्रत्यय होने से ‘सरस्वती’ शब्द सिद्ध होता है। ‘सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चितौ सा सरस्वती’ जिस को विविध विज्ञान अर्थात् शब्द, अर्थ, सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सरस्वती’ है।
३ तीसरी देवी ‘मही‘ या ‘भारती‘ है, जो संस्कृति की प्रतीक है।‘मही‘का योगार्थ है पूजित या पूजा की साधन भूत और भारती का योगार्थ है भरने वाली। उच्च संस्कृति से ही कोई राष्ट्रीय पूजित या सम्मानास्पद होता है। संस्कृति भरने का कार्य करती है। कोई राष्ट्र बाहर शरीर से कितना ही विकसित क्यों ना हो जाए श्लाघ्य संस्कृति के बिना खोखला रहता है।
यह तीनों प्रकाशमयी, प्रकाशदात्री एवं दिव्य गुणों से युक्त होने के कारण देवियां कहलाती हें। उक्त तीनों देवियां मयोभुवः‘ हैं, राष्ट्रीय में सुख चैन को उत्पन्न करने वाली हैं।इन्हें ‘अस्त्रिधः‘होकर राष्ट्र में निरंतर विद्यमान रहना है।
‘इळा‘वह स्थूल वाणी है, जिसका सम्बन्ध हमारे जिह्वा आदि उच्चारण अवयवों से होता है। इसे ‘वैखरी‘ वाणी कहते हैं। सरस्वती मन में रहने वाली विचारात्मक वाणी है, जो ‘मध्यमा‘ वाक् कहलाती है।
‘मही‘आत्मा में प्रतिष्ठित वाक् है,जो ‘परा‘ और ‘पश्यन्ती‘ दो रूपों में रहती है। अपनी इन तीनों वाणियों को हम प्रशस्त एवं सुखदात्री बनाकर अपने आध्यात्मिक विकास को भी सम्पन्न करना है।
आओ, इळा,सरस्वती और मही इन तीनों देवियों को हम अपने व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय जीवनयज्ञ का अंग बना कर चैमुखी विकास प्राप्त करें।
मन्त्र
इळा सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुवः।
बहिर्ः सीदन्त्वस्त्रिधः।। ऋ॰१.१३.९
ईश्वर की लिए प्रयुक्त विभिन्न शब्द जो देवी की श्रेणी में आते है:
जितने ‘देव’ शब्द के अर्थ लिखे हैं उतने ही ‘देवी’ शब्द के भी हैं। परमेश्वर के तीनों लिंगों में नाम हैं। जैसे-‘ब्रह्म चितिरीश्वरश्चेति’। जब ईश्वर का विशेषण होगा तब ‘देव’ जब चिति का होगा तब ‘देवी’, इससे ईश्वर का नाम ‘देवी’ है।