सनातन धर्म को खत्म करने की महत्वाकांक्षा!

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे एम करुणानिधि के पोते और वर्तमान मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने 2 सितंबर को कहा था कि सनातन धर्म मलेरिया और डेंगू की तरह है और इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए, न कि केवल इसका विरोध किया जाना चाहिए।
उन्होंने सवालिया लहज़े में पूछा कि “सनातन ​​क्या है? सनातन ​​नाम संस्कृत से आया है। सनातन ​​समानता और सामाजिक न्याय के खिलाफ है। डीएमके सांसद ए राजा ने कहा, ”सनातन पर उदयनिधि का रुख नरम था। सनातन की तुलना एचआईवी और कुष्ठ रोग जैसे सामाजिक कलंक वाली बीमारियों से की जानी चाहिए। इन घृणास्पद बातों का प्रभाव उत्तर तक पहुंच गया। इधर बिहार में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल RJD के नेता जगदानंद ने कहा कि तिलक लगाकर घूमने वालों ने भारत को गुलाम बनाया है। उन्होंने कहा, देश में मंदिर बनाने से काम नहीं चलेगा। भारतीय राजनीतिक इतिहास में देखा जाए तो बीते कुछ वर्षों में ऐसी बातों का जनप्रतिनिधियों द्वारा कहा जाना बढ़ा है। सवाल है ऐसा क्यों हो रहा है? न्यायालय द्वारा हेट स्पीच पर कठोर प्रतिक्रिया आने के बावजूद हिंदु धर्म, हिंदु समाज और सनातन संस्कृति के खिलाफ हेट स्पीच रुक नहीं रहे। न्यायालय भी इसके खिलाफ कोई स्वतः संज्ञान नहीं ले रहा। जैसा कि वह इस्लाम और ईसाइयत के मामलों में दिखता है। ऐसे में जब शासन प्रशासन और न्यायपालिका भी एक खास रंग में रंगी नजर आए तो इसके पीछे के षड्यंत्र और उसकी गहराई को समझना आवश्यक हो जाता है।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का षड्यंत्र सनातन ने कभी देखा न हो। लेकिन हिंदुओं की समस्या यह है कि जिस क्षेत्र में ऐसा हुआ उसकी या तो उन्हे जानकारी नहीं है या फिर उन्होंने इसे याद रखना उचित नहीं समझा। यदि उन प्राचीन सभ्यताओं के इतिहास की ओर निगाह डाली जाए जो अब समाप्त हो चुकी हैं। जिनका स्थान अब ईसाइयत या इस्लामियत ने ले लिया है, तो हम इस प्रकार के षड्यंत्र को भली भांति समझ सकते हैं। इतना ही नहीं यदि हम गोवा जो कभी एक हिंदू बाहुल्य राज्य था, का किस प्रकार ईसाईकरण हुआ यह जानेंगे तो भी बहुत चीजे स्पष्ट हो जाएंगी।
आज ऐसे ही एक षड्यंत्र के विषय में हम जानेंगे। बात करते हैं, 391 ई. की जब ग्रीक रोमन साम्राज्य में बहुदेववाद के पतन और मिस्र और मध्य पूर्व के इसाईकरण की प्रक्रिया चल रही थी। इसी विषय पर वर्ष 2009 में अंग्रजी भाषी एक स्पेनिश फिल्म भी बन चुकी है, नाम था अगोरा।
इसमें दिखाया गया था कि एलेक्जेंड्रिया जो तब रोमन साम्राज्य का भाग था, में एक महिला दार्शनिक हाईपिशिया अपने पिता के साथ रहती है। वह मूर्ति पूजक है, देवी- देवताओं में विश्वास करती है और अंतरिक्ष में ग्रहों की स्थिति पर काम कर रही होती है। लेकिन कुछ लोग उसके काम से खुश नहीं होते। क्योंकि उसके सिद्धांत बाइबिल के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। जिसमें कहा गया है कि सूर्य, पृथ्वी का चक्कर लगाता है। जबकि हाईपिशिया का कहना है कि सूर्य स्थिर है। ये नए ईसाई बने लोग धीरे- धीरे पहले उसका, उसके द्वारा खोजे गए सिद्धांतों का मजाक उड़ाते हैं, फिर उस समाज की धार्मिक भावनाओं का और देवी- देवताओं का मजाक उड़ाते हैं। बाद में उन्हे गालियां भी देने लगते हैं, और उस धर्म की मान्यताओं और उसे समाप्त करने की न सिर्फ बात करने लगते हैं बल्कि लोगों से लड़ने- झगड़ने भी लगते हैं। कुछ समय बाद यह व्यवहार इतना बढ़ जाता है कि हाईपिशिया और उसके समाज को आमने- सामने की लड़ाई के लिए निर्णय लेना पड़ता है।
उसके और उसके समाज के लिए असली समस्या सामने तब आती है, जब वे यह देखते हैं कि वो जिस ईसाई मजहब को अप्रभावशाली, अल्पसंख्यक समझ रहे थे, दरअसल, उनका अधिकांश समाज ईसाई बन चुका है। ऐसे में उनके पास अपनी जान बचाने के लिए भाग कर छुपने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचता। क्योंकि इस लड़ाई में बहुत लोग मार डाले जा चुके होते हैं। शेष कुछ ईसाई मजहब अपना लेते हैं। हाईपिशिया भी अपने सिद्धांतों से समझौता न करने और ईसाई मजहब स्वीकार न करने के कारण सार्वजनिक रूप से नग्न कर पत्थरों द्वारा मार डाली जाती है। लेकिन कथित शांति और करुणा वाले ईसाई इतने से संतुष्ट नहीं होते और उसकी आंखे नोंच कर निकाल ली जाती है, अंग- प्रत्यंग क्षत विक्षित कर दिए जाते हैं।
क्या भारत में ईसाई मिशनरियां प्राचीन रोम, ग्रीस, यूरोप और अफ्रीका की ईसाइयत से पूर्व की ऐसी ही परिस्थितियां खड़ी नहीं कर रही? जिसमें एक चरणबद्ध तरीके से ईसाइयत पूर्व की बहुदेववादी मूर्तिपूजक धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं, संस्कृति की खिल्ली उड़ाई जाती थी, उसे भेदभावपरक, समाज के लिए आधुनिक होने के रास्ते का रोड़ा इत्यादि बता कर समाज के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। जो काम तब के शासक वर्ग, पुजारी वर्ग ने किया वैसा ही काम आज के कुछ राजनेता और भगवा वस्त्र धारी छद्म ईसाई कर रहे हैं। जो खुल कर सनातन धर्म के विरोध में ऊल- जलूल बयान देते रहते हैं। या फिर यह महज़ एक इत्तेफ़ाक है?
वास्तव में यह नेता जो कर रहे हैं वो यह जांचने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत में कितने प्रतिशत हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख छद्म ईसाई (जिसे क्रिप्टो क्रिश्चियन कहा जाता है) बन चुके हैं। ताकि यदि वे सक्षमशील स्थिति पहुंच गए है तो हिंदुओं और सनातन धर्म को समूल समाप्त किया जा सके। और वे ऐसा इसलिए भी चाहते हैं क्योंकि जब सन् 1999 में पोप जॉन पॉल द्वितीय भारत आए थे, तो उन्होंने भारत को एशिया में ईसाईयत को फैलाने के लिए सबसे उपजाऊ जमीन बताया था। इस प्रकार उन्होंने 21वीं सदी में भारत को ईसाई देश बनाने का लक्ष्य दे दिया था। इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए वर्षों से भारत में “जोशुआ प्रोजेक्ट” चलाया जा रहा है।
वास्तव में भारत ईसाइयत और इस्लाम के लिए अपने फैलाव का अंतिम चरण है। यूरोप और अफ्रीका पहले ही इनके अधीन आ चुके हैं। अब जिसने भी भारत को अपने अधीन कर लिया संपूर्ण एशिया में उसका ही कब्जा होगा। यह तय है। इसलिए दोनों शक्तियां भारत के बाहर भले ही एक दूसरे के शत्रु हों, किंतु भारत में ये एक होकर अपने अविजित, अभी तक अपराजेय प्रतिद्वंदी हिंदुत्व या सनातन धर्म को समाप्त करने में लगी हैं।
और इस बार इनका हथियार है, अल्पसंख्यक, गरीब – पिछड़े, मानवाधिकार, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी आदि की रक्षा जैसे मूल्यपरक शब्द। क्योंकि हिंदू जो मूलतः मानवतावादी, सहनशील, संवेदनशील है इन झांसों में आ कर इन्हे सत्ता सौंप देने से गुरेज़ नहीं करता। परिणामतः साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक-2011 जैसे विधेयक लाए जाते हैं जिसमें हर स्थिति में हिंदुओं को ही दोषी सिद्ध करने का कुत्सित प्रयास होता है। ये लोग “हिंदू आतंकवाद” की काल्पनिक बात जोर – शोर से उठाते हैं, किंतु बहुदेववाद और मूर्ति पूजकों के खिलाफ लक्षित हिंसा रूपी “जिहाद” के किताबी आदेश को उचित ठहराने का बेशर्म प्रयास करते हैं।
ऐसे में हिंदुओं के पास अपने अस्तित्व, अपने धर्म, संस्कृति और सभ्यता को बचाने का एकमात्र विकल्प है हिंदुत्व की डोर को कस कर पकड़े रहना और अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा देना। यदि विकल्प भी चुनना पड़े तो हिंदुत्ववादी विचार को ही चुने। क्योंकि यदि हिंदू धर्म, संस्कृति और सभ्यता बचती है, तो ही सम्पूर्ण विश्व की संस्कृति, सभ्यता और शांति बची रह सकती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने के लिए हमें अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। कभी भारत के ही अंग रहे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश को देख सकते हैं।

युवराज पल्लव
8791166480

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