- लेख संख्या 18*
लेखक आर्य सागर खारी 🖋️।
महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 200 लेखों की लेखमाला के क्रम में आर्य जनों के अवलोकनार्थ लेख संख्या 18।
गुरु के पास से विदा होने के समय स्वामी दयानंद के पास यह वस्तुएं थी।1) उनके पास संस्कृत व्याकरण दर्शनों का पांडित्य था। 2)अखंड ब्रह्मचर्य उत्साह व्याख्यान शक्ति 3)विद्वानों साधुओं की दशा देखकर निश्चय हो चुका था कि धर्म की दशा बिगड़ी हुई है।
गुरु के पास से विदा होने के उपरांत 3 वर्ष महर्षि दयानंद ने उत्तर भारत के सभी स्थानों का सघन दौरा किया विभिन्न मठ मंदिर तीर्थ पर उन्होंने जाकर यह निष्कर्ष निकाला पाखंडियों ने अपने स्वार्थ के लिए भोली भाली जनता को बहका रखा है धर्म के नाम पर अवैदिक कर्मों को कराया जाता है आमजन का तो कहना ही क्या वर्ण व्यवस्था में शिक्षा व सदुपदेश का दायित्व जिसके ऊपर है ब्राह्मण भी संध्या यज्ञ जनेऊ से अपरिचित है। 3 वर्षों में महर्षि दयानंद ने अपने सुधारवादी कार्यों का भावी कार्य योजना का खाका खींच लिया था। चौथे वर्ष में महर्षि दयानंद ने 12 मार्च सन 1867 को हरिद्वार में कुंभ के मेले के अवसर पर पाखंड खण्डिनी पताका गाड़ी ।
उधर मथुरा में अंधे गुरु को शिष्य के उनके संकल्प की सिद्धि में किये जा रहे प्रत्येक प्रयास की खबर जैसे ही विभिन्न स्रोतों से मिलती थी तो उनके हर्ष की कोई सीमा नहीं रहती थी।
एक घटना इस प्रकार है स्वामी दयानन्द जी के साथ मथुरा में पढ़े उनके सहपाठी पंडित जुगल किशोर सौरो कासगंज में आए हुये थे । उन दिनों स्वामी दयानंद जी से व्याकरण पढ़ रहे उनके शिष्य अंगदराम शास्त्री ने स्वामी दयानन्द जी से कहा कि आप उपदेश करते हैं शालिग्राम मत पूजो, कंठी मत पहनो, तिलक मत लगाओ परंतु आपका सहपाठी यह सब करता हैं स्वामी जी ने कहा यह मथुरा के रहने वाले हैं उनकी इनका पोपलीला से जीवन चलता है ,इसलिए ऐसा करते हैं । यह सुनकर वह (जुगलकिशोर ) बहुत कुपित हुआ मथुरा में आकर दंडी स्वामी जी के पास गया बोला गंगा स्नान को गया था वहां स्वामी दयानंद जी मुझे मिले आजकल शोरो में है। बड़ा अधर्म कर रहे हैं कंठी, तिलक ,पुराण शालिग्राम का खंडन करते हैं ।स्वामी विरजानन्द सुनकर बोले हे जुगलकिशोर शालिग्राम क्या होता है? शाली वृक्ष का ग्राम या चावल (चावल को संस्कृत में शालि भी कहते हैं) के समूह से शालिग्राम प्रेरित है इसकी पूजा क्या निष्फल नहीं है। जबकि यह शब्द ही अशुद्ध है। फिर जुगल किशोर ने कहा है वह तो कंठी तिलक का भी खंडन करते हैं फिर विरजानन्द जी बोले तुम ही प्रमाण दो ऐसा करना कहां लिखा है। उसने कहा कि जो प्रमाण नहीं है तो यह लो यह कह कर झट अपनी कंठी आदि तोड़ डाली।
गुरु को दयानंद की अंतिम भेंट
जब स्वामी दयानंद हरिद्वार में थे तो वहां उन्होंने गुरु की सेवा में भेंट स्वरूप एक महाभाष्य की पुस्तक, एक मलमल का थान ₹35 रूपये अपने गुरु की सेवा में मथुरा पहुंचाये थे। यह संदेश भी उन्होंने अपने गुरु के लिए भेजा था कि जब तक उनकी अभिलाषा पूर्ण ना हो वह संस्कृत भाषण करते रहेंगे गंगा तट पर विचरते रहेंगे।
दयानंद को गुरु के निधन की सूचना
प्रज्ञा चक्षु दांडी जी का निधन क्वार बदी 13 संवत 1925 को हुआ था। गुरु के निधन की सूचना स्वामी दयानंद को तीन दिन पश्चात पंडित अयोध्या प्रसाद गिरधारी लाल वैश्य से मिली थी उन दिनों स्वामी जी शाहबाजपुर ग्राम में ठहरे हुए थे।अवधूत स्वामी दयानंद को जब यह सूचना मिली तो वह कुछ देर मौन रहे फिर उन्होंने कहा आज व्याकरण का सूर्य अस्त हो गया
उस समय महर्षि दयानंद की चित् पर वैराग्य और शोक भी आ गया था।उस घटना के प्रत्यक्षदर्शीयो ने महर्षि दयानंद की जीवनीकार पंडित लेखराम को ऐसा ही बतलाया।
दंडी स्वामी जी का निधन सन 1868 में 90 वर्ष की आयु में हुआ अंग्रेजी तिथि के अनुसार उसे दिन 14 सितंबर था। 14 सितंबर को दंडी स्वामी जी की पुण्यतिथि मनाई जाती है आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर व्याकरण के उस सूर्य को शत-शत भावभीनी श्रद्धांजलि जिसने दयानंद जैसे अविद्या रूपी तिमिरनाशक आदित्य ब्रह्मचारी को अपने आचार्य रूपी गर्भ में धारण किया फिर उचित समय पर मां भारती की दीन हीन पाखंडो की चक्की दासता में पिस रही प्रजा के सेवार्थ उसका प्रसव कर दिया।
शेष अगले अंक में