कलाम के इस कलाम को सलाम
–राकेश कुमार आर्य
नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक अप्रतिम प्रतिभा के धनी और नितांत मानवतावादी विचारों के देशभक्त व्यक्ति हैं। सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री न बनने की सलाह उन्होंने बड़े ही विनम्र शब्दों में दी थी, ऐसी शालीनता उनमें है कि सोनिया को अपने द्वारा दी गयी सलाह की डींग उन्होंने न तो राष्ट्रपति पद पर रहते हुए मारी और ना ही पदमुक्त होने के बाद ही मारी। नेकी कर दरिया में डाल वाली कहावत को चरितार्थ करता उनका व्यक्तित्व गीता की कर्मयोग की मिट्टी से बना है। जिसे नापना हर किसी के वश की बात नहीं है। उन्होंने कार्य किये हैं, और ऐसे-ऐसे कार्य किये हैं कि जिन्हें देश युगों तक याद रखेगा। लेकिन सारे काम अपना फर्ज समझकर किये हैं। उनका स्वभाव करके भूल जाना है। वह सीढिय़ां नहीं गिनते कि कितनी सीढिय़ां तय कर लीं, वे शांतमना रहकर केवल मंजिल पर नजर रखते हैं। इसलिए उनके व्यक्तित्व की भाषा कहती रहती है कि अभी रूकना नहीं है चलते रहना है क्योंकि मंजिल अभी दूर है। राष्ट्रपति का पद और भारत रत्न की प्राप्ति के महान पड़ाव उनके जीवन में आये और चले गये। पर वह नही रूके। ये दोनों चीजें आज इतिहास बन गयी हैं, लेकिन कलाम को इतिहास नहीं रोक पाया। वह आज भी चल रहे हैं और इतिहास उनके पीछे-पीछे कलम लिये दौड़ रहा है।उन्होंने सचमुच इतिहास को छकाया है। ममता बनर्जी और आडवाणी ने उन्हें 2012 के राष्ट्रपति पद के चुनावों के लिए अपना प्रत्याशी बनाने का प्रयास किया। कुछ देर के लिए लोगों की नजरें रूकीं। उनके पीछे पीछे दौड़ता इतिहास भी क्षण भर के लिए ठिठक कर खड़ा हो गया। उसे लगा कि कलाम के जीवन का कोई उल्टा अध्याय संभवत: लिखा जाएगा। कलाम ने इतिहास की नजरों की शरारत को समझ लिया, इसलिए किसी के झांसे में नही आये और चल दिये, एक साधु की भांति अपना कमंडल उठाकर। इतिहास उनकी स्थितप्रज्ञता पर मुस्कराकर रह गया। उसने समझ लिया कि धोखे में आना कलाम के लिए संभव नहीं है। इसलिए इतिहास ने कलाम को बड़ी नजदीकी से सलाम ठोंका और आगे चल दिया।
तनिक देखिये, कलाम की देशभक्ति का कमाल कि उन्होंने क्या-क्या हमें दिया है? इस महामानव के उपकारों का बदला हम क्या चुकाएंगे। उन्होंने भारत को दिया भारत का प्रथम राकेट नाइट अपाचा, प्रक्षेपण 21 नवंबर 1963। भारत की रोहिणी 75 रॉकेट, प्रक्षेपण 20 नवंबर 1967। प्रो. साराभाई के सदाप्रयत्नों को साकार रूप देकर राटो प्रणाली निर्माण का प्रसार, करोड़ों रूपये की बचत और सुखोई 18 पर बरेली में सफल परीक्षण। भारत के एस.एल वी 3 का सफल प्रक्षेपण 18 जुलाई 1980। भारत के एस.एल.वी. द्वितीय का सफल परीक्षण 31 मई 1981। भारत आई.जी.एच.डी.पी. का प्रक्षेपण 27 जुलाई 1983। भारत की डेविल मिसाइल का प्रक्षेपण 2 जून 1984। भारत की त्रिशूल मिसाइल का प्रक्षेपण 16 सितंबर 1985। उनके प्रयासों से ही भारत की पृथ्वी मिसाइल का प्रक्षेपण किया गया। पोखरण द्वितीय भी उनका ही यशोगान गा रहा है। इसलिए देश ने उन्हें मिसाइल मैन का सम्मान दिया। जिसने सारी मिसालों को छोटा कर दिया और अपनी आभा से एक ऐसी मशाल जलाई कि जिसका कोई सानी नही है।
डा. कलाम को देश की लगभग ढाई दर्जन यूनिवर्सिटीज मानद उपाधियां दे देकर सम्मानित कर चुकी हैं। उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार जैसे सम्मान भी ढेरों मिले हैं। आज भी वह निकम्मे होकर जीवन यापन नहीं कर रहे हैं। वह आज भी देश के सम्मान के लिए और सुरक्षा के लिए अपना अथक परिश्रम जारी रखे हुए हैं। इसलिए हमारा मानना है कि इतिहास आज भी उनका अनुचर है। ऐसे बेमिसाल मिसाइल मैन को भाजपा राष्ट्रपति चुनाव में अपना प्रत्याशी बना रही थी। भाजपा ममता की राह पर थी ना कि ममता भाजपा की राह पर थीं। वह रास्ता ममता के लिए आत्मघाती है-दुख:इस बात का है कि भारतीय जनता पार्टी ने भी आत्मघात का वही रास्ता चुन लिया जिस पर ममता चल रही हैं। सारा देश मान रहा है, जनता की आवाज आ रही है कि राष्ट्रपति प्रणव ही उचित रहेंगे, अत: उन्हें सर्वसम्मति से चुनो। लेकिन भाजपा और ममता ने अपने अहंकार के बाजे को जोर से बजाना आरंभ कर दिया और जनता रूपी युधिष्ठर के इस कथन को कि अश्वत्थामा मारा गया उस शोर में कहीं दबाकर अनसुना करने का प्रयास किया। भाजपा जनापेक्षा की ओर ध्यान नहीं दे रही है, यह दुख की बात है।
हमें लगता है कि अब जबकि कलाम ने बड़ी विनम्रता से अपने आपको पीछे हटा लिया है और 2012 का राष्ट्रपति पद का चुनाव लडऩे से मना कर दिया है तो भाजपा अवश्य ही अंतर्मथन करेगी और एन.डी.ए. के भीतर से ही उठती हुई आवाजों को अंजाम देकर प्रणव के नाम पर अपनी सहमति देगी। कुछ भी हो वर्तमान परिस्थितियों में कलाम ने किसी का मोहरा बनने से इंकार करके अपनी स्थितप्रज्ञता, विवेकशीलता और समझदारी का परिचय दिया है। उनके पास सत्य है (अध्यात्म की गहरी अनुभूति) यश है, श्री है। वह गीता, वेद और उपनिषदों का अमृत पीते हैं और सदा सद्बुद्घि प्रदान करने की भगवान से प्रार्थना करते हैं। इसलिए उनके निर्णयों में समझदारी, गंभीरता, विवेकशीलता और धैर्य सदा ही परिलक्षित होता है। सारी राजनीति को उन्होंने ठेंगा दिखाकर राजनीतिज्ञों को समझाया है कि राजनीति के सामने उन्हें अपना व्यक्तित्व कहीं अधिक प्रिय लगता है। मानो वो कह रहे हैं कि ममता जी और आडवाणी जी बुद्घि के उपासक बनो और इतिहास को अपनी ओर से सही जवाब दो, मैं तो दे चुका हूं, पर अब यह तुम्हारे दरवाजे पर खड़ा है। इसे निराश मत करना, अन्यथा आने वाली पीढिय़ों की नजरों में यह तुम्हें उपहास का पात्र बना देगा। आप इसकी नजरों को धोखा नहीं दे सकते। हां, यदि इसे आपने धोखा देने का प्रयास किया तो आप स्वयं ही धोखा खा जाओगे। कलाम के इस कलाम को आज सारा भारत सलाम कर रहा है।
मुख्य संपादक, उगता भारत