प्रणव को प्रणाम्
रायसीना हिल्स पर बने कभी के वायसरीगल हाउस (राष्ट्रपति भवन) के मुगल गार्डन में अगले ५ वर्ष के लिए किस विभूति को टहलने का अवसर मिलेगा? कुछ समय से सारा देश इस प्रश्न का उत्तर दिल थामकर टटोल रहा था। अंतत: १५ जून को देश के जनसाधारण को अपने प्रश्न का उत्तर मिल ही गया, जब यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने गठबंधन की ओर से वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को रायसीना हिल्स के लिए अपने गठबंधन का प्रत्याशी घोषित कर दिया।
प्रणव एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वह कुशल प्रशासक हैं, अनुभवी हैं, वरिष्ठ हैं और गंभीर हैं। लंबे समय से कांग्रेस में उनकी संकटमोचक की स्थिति रही है। कांग्रेस के संकटमोचक को राष्ट्र का संकटमोचक होने की उम्मीद देश की जनता कर रही थी। देश का बहुमत उन्हें महामहिम के रूप में देखना चाहता था। इसलिए संप्रग की अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी ने देश के जनमानस की आवाज पर मोहर लगाकर एक उचित कार्य किया है। सचमुच राष्ट्र का मुखिया राज्यपाल जैसे यदों से सीधे नियुक्त होकर नहीं आना चाहिए। क्योंकि राज्यपाल वही लोग बनाये जाते हैं जो सक्रिय राजनीति से या हट गये होते हैं या जिन्हें हटाया जाना होता है। कई बार केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन के लोग अपने कुछ ऐसे वफादार साथियों को पुरस्कार देने के लिए राज्यपाल बना देते हैं। जिन्होंने पार्टी के लिए किसी खास व्यक्ति के लिए कुछ विशेष सेवायें दी हों।
सक्रिय राजनीति में रहकर राष्ट्र की सेवा करने वाले प्रणव दा के लिए प्रणव जप करती देश की धरती का प्यारा प्यारा प्रणाम। जिसने देश की मिट्टी की सौंधी महक को पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के बाद एक बार फिर राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में बखेरने की ओर सराहनीय कदम बढ़ाये हैं। उनकी अनुभवशीलता और राजनीतिक सूझबूझ से देश लाभान्वित होगा ऐसी हमें आशा है। देश के सभी छोटे बड़े राजनीतिक दल धीरे धीरे उनके नाम पर अपनी सहमति व्यक्त करते जा रहे हैं। हमेशा की तरह अपनी हठ को उजागर करने वाली ममता बैनर्जी ने एक बार फिर गलती की है और बंगाल के एक तप:पूत को लेकर अपनी हठधर्मिता का प्रदर्शन किया है, जिसे उचित नहीं कहा जा सकता। उनकी हठधर्मिता को बंगाल की जनता ने ही अनुचित नहीं माना है अपितु देश की जनता ने भी उसे अनुचित ही माना है। सारा राष्ट्र बंगाल का बंदन करे और ममता उसका निंदन करे तो इसे कैसे उचित कहा जा सकता है? प्रणव मुखर्जी के लिए भाजपा भी साथ देगी, ऐसा हमारा विश्वास है। प्रणव देश की पसंद हैं और उनके नाम में किसी प्रकार का कोई तुष्टीकरण नहीं है। इसलिए राष्ट्रहित में प्रणव जप के संकीर्तन में भाजपा को भी सहयोग करना चाहिए। मुलायम सिंह यादव ने पहले कलाम, मनमोहन और सोमनाथ चटर्जी का नाम राष्ट्रपति के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित कर सौदेबाजी और ब्लैकमेलिंग का जो खेल ममता के साथ मिल कर खेलना चाहा था उस पर उन्होंने पीछे कदम हटा लिये और प्रणवदा का नाम आते ही अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। यह उनकी समझदारी का प्रतीक है। कलाम साहब का सारा देश सम्मान करता है। वह भारत रत्न से बढ़कर भी यदि कोई चीज हो तो उससे भी सम्मानित होने योग्य हैं, लेकिन उन्हें राष्ट्रपति रहते ही एक बार पुन: मौका दिया जाता तो अच्छा होता, अब उनका नाम किसी सौदेबाजी के लिए घसीटा जाए यह उचित नहीं है। जहां तक डॉ. मनमोहन सिंह की बात है तो उनसे देश की जनता बतौर प्रधानमंत्री खफा है। यदि वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते तो लोगों का समर्थन उनके साथ नहीं होता। समझ नहीं आता कि उनका राष्ट्रपति बनना उन्हें पुरस्कृत करना होता या कुछ और। जहां तक सोमनाथ चटर्जी की बात है तो वह अनुभवी राजनीतिज्ञ अवश्य हैं पर उनके साथ सिरों की गिनती का आंकड़ा फिट नहीं बैठता।
ऐसी परिस्थितियों में प्रणव दा का नाम सर्वसम्मत रूप से सामने आना चाहिए। रायसीना हिल्स पर एक अनुभवी और कुशल राजनीतिज्ञ पहुंचे यही राष्ट्रहित में होगा। एक अधिकारी के रूप में शांत बैठने वाले महामहिम की आवश्यकता देश को नहीं है, अपितु देश की नब्ज को समझकर उसका उपचार करने वाले कुशल वैद्य की आवश्यकता देश को है। हमने उत्तर प्रदेश में भाजपा के रामप्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बनते देखा है। वह अपने संसदीय मंत्री तक को नहीं जानते थे। इसलिए एक दिन उनसे ही पूछ बैठे थे कि हां बताइये आपका क्या काम है? आप क्यों सुबह से ही मेरे साथ हैं? गैरराजनीतिक या राजनीति से दूर हो गये लोगों को यदि महत्वपूर्ण दायित्व सौंपोगे तो ऐसी गलतियां अक्सर होंगी। इसलिए राष्ट्रपति भवन में बैठने वाले व्यक्ति को बिल्कुल हल्के में नहीं लेना चाहिए उसके चुनाव में पूरी गंभीरता का परिचय देना चाहिए। हम सचमुच महामहिम को लेकर एक बार पुन: गंभीर हो रहे हैं तो गंभीर व्यक्तित्व के धनी प्रणव को ही प्रणाम करना चाहिए।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।