मृत्युंजय दीक्षित
योग, दर्शन व अध्यात्म के मर्मज्ञ महान संत महंत अवैद्यनाथजी का जन्म पौढ़ी गढ़वाल के ग्राम कांडी में हुआ था। महंत अवैद्यनाथ की माता जी का स्वर्गवास जब वह बहुत छोटे थे तभी हो गया था और उनका लालन पालन दादी ने किया था उच्च्तर माध्यकि स्तर शिक्षा पूर्ण होते ही उनकी दादी का भी निधन हो गया। जिसके कारण उनका मन इस संसार के प्रति उदासीन होता गया। उनके मन में वैराग्य का भाव गहरा होता गया। वह अपने पिता के एकमात्र संतान थे अतः उन्होंने अपनी संपत्ति अपने चाचाओं को दे दी और पूरी तरह से वैराग्य जीवन में आ गये।
महंत अवैद्यनाथ जी ने बहुत कम समय में ही बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगो़त्री, यमुनोत्री आदि तीर्थस्थलों की यात्रा की। कैलाश मानसरोवर की यात्रा से वापस आते समय अल्मोड़ा में उन्हें हैजा हो गया और उनके साथी अचेताअवस्था में ही उन्हें छोड़कर भाग गये। स्वस्थ होने के बाद महंत अमरता के ज्ञान की खोज में वह भटकने लग गये। ज्ञान की खोज की इसी यात्रा में उनकी भेंट योगी निवृत्तिनाथ जी से हुई और महंत जी उनके योग, आध्यात्मिक दर्शन तथा नाथ पंथ के विचारों से प्रभावित होते चले गये। योगी निवृत्तिनाथ के साथ रहकर ही महंत जी ने तत्कालीन गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के विषय में सुना जो योगी निवृत्तिनाथ को चाचा कहते थे।
महंत दिग्विजयनाथ से भेंट- महंत अवैद्यनाथ की 1940 में महंत दिग्विजयनाथ जी से भेंट हुई। इस भेंट के अगले दिन ही दिग्विजयनाथ को बंगाल जाना था तभी उन्होंने महंत अवैद्यनाथ को उत्तराधिकारी घोषित करने की इच्छा व्यक्त की किंतु तब तक अवैद्यनाथ जी नाथ पंथ को पूरी तरह से समझ नहीं सके थे। इसके बाद वह शांतिनाथ जी से मिलने कराची चले गये वहां दो साल उन्हें गोरखवाणी के अध्ययन का अवसर मिला। 8 फरवरी 1942 को गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ ने अवैद्यनाथ को पूरी दीक्षा देकर उन्हें अपना शिष्य और उत्तराधिकारी घोषित किया।
जब 1944 में देश के विभाजन की मांग जोर पकड़ रही थी उसी समय गोरखपुर में हिंदू महासभा का ऐतिहासिक अधिवेशन हुआ जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी भाग लिया। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था संभालने के साथ ही उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में भी सम्मिलित होने का गौरव प्राप्त हुआ। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हो जाने के बाद महंत दिग्विजयनाथ को गिरफ्तार कर लिया गया और मंदिर की चल- अचल संपत्ति जब्त कर ली गयी। उस समय महंत अवैद्यनाथ ने नेपाल में रहकर गोपनीय तरीके से गोरखनाथ मंदिर की व्यवस्था और महंत दिग्विजयनाथ को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास किया।
अवैद्यनाथ ने 1962 में राजनीति में प्रवेश किया 1962 से लेकर 1977 तक वह लगातार मनीराम विधानसभा से उप्र विधानसभा में पहुंचते रहे। इस क्षेत्र में वह ऐसे एकमात्र राजनेता बने जिन्होंने पांच बार विधानसभा तथा तीन बार लोकसभा चुनाव जीता। जनता लहर में भी वह अपराजेय रहे। 1998 में उन्होंने अपने शिष्य योगी आदित्यनाथ जी को चुनावी मैदान में उतार दिया। 1980 में मीनाक्षीपुरम में एक बहुत बड़ा धर्म परिवर्तन हुआ था जिससे आहत होकर उन्होंने राजनैतिक जीवन से संन्यास ले लिया और हिंदू समाज की सामजिक विषमता को दूर करने में लग गये।
1980-81 धर्म परिवर्तनों से आहत होकर हिंदू समाज से छुआछूत समाप्त करने के लिए प्रयास प्रारम्भ किये और जिसका प्रतिफल भी प्राप्त हुआ जिसके कारण सामाजिक परिवर्तन की आंधी से धर्म परिवर्तन कुछ सीमा तक नियंत्रित हो गया। 18 मार्च 1994 को काशी के डोम राजा सुजीत चौधरी के घर पर उनकी मां के हाथों का भोजन कर छुआछूत की धारणा पर करारा प्रहार किया। यह उस समय की एक महान घटना मानी जाती है क्योंकि तब अनेक संतों ने महंत जी के इस साहसिक कदम का विरोध भी किया था। महंत जी का धर्म परिवर्तन रोकने का यह प्रयास लगातार चलता रहा और उसमें नये आयाम जुड़ते चले गये।
21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में महंत जी को श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का अध्यक्ष चुना गया। पवित्र संकल्प के साथ अयोध्या के सरयू तट से 14 अक्टूबर 1984 को एक धर्मयात्रा लखनऊ पहुंची जहां बेगम हजरत महल पार्क में लाखों की संख्या में हिंदू जनमानस ने भाग लिया। तत्पश्चात आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए दिल्ली में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ। इसमें प्रस्ताव पास किया गया कि श्री राम जन्मभूमि हिंदुओं की थी और रहेगी। भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए 9 नवंबर 1989 को शिलान्यास का करने का निर्णय हुआ किंतु तत्कालीन गृहमंत्री से वार्ता के बाद कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। सरकार पर दबाव डाला गया कि वह शिलान्यास की अनुमति दे। जगह-जगह रामशिला पूजन का कार्यक्रम किया गया। 21 नवंबर 1990 को महंत अवैद्यनाथ ने कहा कि अब याचना नहीं रण होगा। 27 फरवरी 1991 को उन्होंने एक बार फिर राजनीति की और देखा और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल किया। अब श्री राम जन्मभूमि मुक्ति ही अवैद्यनाथ जी का ध्येय थी और यही उनका चुनावी मुद्दा। उनके नेतृत्व में कई प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलते रहे और वे स्वयं तीन बार प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भेंट करने गए। महंत जी के नेतृत्व में ही 6 दिसंबर 1992 को राम मंदिर के निर्माण के लिये कार सेवा प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया।
समाजसेवी के रूप में महंत अवैद्यनाथ जी ने गुरु महंत दिग्विजयनाथ के शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रारम्भ किये गए कार्यों को आगे बढ़ाया। महंत अवैद्यनाथ बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। वह प्रत्येक बच्चे से मिलते थे और उन्हें मिठाई फल आदि दिया करते थे। महंत अवैद्यनाथ जी बहुत ही सज्जन, सरल और मितभाषी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को मात्र गति ही नहीं दी अपितु एक संरक्षक की भांति सभी प्रकार से सुरक्षित और पोषित किया।
लंबी बीमारी के बाद 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ का निधन हुआ और नाथ परंपरा के अनुसार उन्हें समाधि दी गयी। आज अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि पर जो भव्य व दिव्य भगवान श्रीराम का मंदिर बन रहा है उसमें महंत जी का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।