हजारी राम बाड़मेर जिला के खारा गांव का रहने वाला है। इसका एक छोटा भाई और एक बड़ी बहन है। हजारी राम 10 वीं कक्षा का छात्र है। वह युवा समूह की बैठकों से जुड़ा हुआ है। जहां अन्य मुद्दों के साथ-साथ सामाजिक विषयों पर भी चर्चा की जाती है। जब वह इस समूह की बैठक में पहली बार आया तो उसे बहुत अच्छा लगा। धीरे धीरे वह खुलने लगा और अपने घर के बारे में बताने लगा कि किस तरह मेरे चाचा चाची के साथ मारपीट करते है। यहां बैठको में आने के बाद उसकी समझ बनी है कि वे जो कर रहे है गलत है। एक दिन हजारी राम ने अपने चाचा के साथ इस विषय पर बातचीत की और उन्हें समझाने की कोशिश की कि वह चाची के साथ मारपीट नहीं करे। अपने पिता तोगाराम को भी (जो कि हेड कांस्टेबल है) इस स्थिति से अवगत कराया। परंतु उसके पिता ने इस पर गंभीरता से विचार करने की बजाए उल्टे उसे पढ़ाई पर ध्यान देने की नसीहत दे डाली। लगातार बैठको में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों पर बातचीत करने और महिलाओं से संबधित कानून की जानकारी से उसकी समझ बढ़ती गई। अब वह घरेलू काम में न सिर्फ अपनी बहन उषा की मदद करने लगा बल्कि उसे भी मंच के किशोरी समूह से जोड़ा। जिस पर उसे अपने परिवार का विरोध झेलना पड़ा। यह उसके चाचा को बिलकुल पसंद नहीं था। लेकिन उसने धीरे धीरे सबके साथ चर्चा करके उनके व्यवहार में बदलाव किया। उसकी बहन उषा जब दसवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी पास हुई तो उसे बहुत खुशी हुई। लेकिन वह खुशी ज्यादा दिन नहीं चल पाई क्योंकि उसके घर वालों ने बहन को आगे पढऩे नहीं जाने दिया और जल्दी उसकी शादी के लिए लड़का ढ़ूढऩा शुरू कर दिया। उषा आगे पढ़ाई करके डाक्टर बनना चाहती थी। बहन के सपने को टूटता देखकर हजारी राम को बहुत दुख: हुआ। एक दिन उसने अपने परिवार के सभी सदस्यों (मम्मी, पापा, दादा, दादी) के सामने उषा की पढा़ई आगे करवानें की और उसकी शादी अभी नहीं करने की चर्चा की। हजारी राम की बात सुनकर घर के सभी सदस्य उससे काफी नाराज हुए। लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ा रहा कि मैं अपनी बहन को जरूर पढाउंगा। हजारी राम का तर्क था कि जब मैं पढ़ सकता हॅू तो उषा के लिए उच्च शिक्षा पर पाबंदी क्यूं लगाया जा रहा है? इस संबंध में वह अपने गांव के हेडमास्टर से मिला और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया साथ ही उसने अपने मामा को भी घर वालों को स्त्री शिक्षा की उपयोगिता समझाने के लिए राजी किया। परंतु हजारी के सभी प्रयास करने के बावजूद जब उसके घरवाले बहन को आगे पढ़ाने को तैयार नहीं हुए तो उसने ऐलान कर दिया कि जब बहन आगे नहीं पढ़ सकती तो मैं भी उच्च शिक्षा हासिल नहीं करूगां। उसने युवा मंच की बैठकों में भी हिस्सा लेना छोड़ दिया। जब कई बैठकों में हजारी नहीं आया तो मंच के सदस्यों ने उसकी अनुपस्थिती का कारण जानना चाहा। पता चला कि हजारी अपनी बहन को आगे नहीं पढ़ाने के घरवालों के फैसले से नाराज हैं। हजारी के फैसले पर युवा मंच के सभी सदस्यों ने पूर्ण समर्थन जताया और इस संबंध में गांव के सरपंच देवाराम से सारी चर्चा की। सरपंच युवा मंच के सदस्यों के साथ हजारी के घर गए और उसे घरवालों को उषा की आगे पढ़ाई जारी रखवाने के लिए समझाने का विश्वास दिलाया। सरपंच देवाराम अपने भरपूर प्रयास के बाद उसके पिता को उषा की उच्च शिक्षा जारी रखवाने के लिए समझाने में कामयाब रहे। दानों भाई-बहन का जिला बाड़मेर में एडमिशन कराया गया है। इस प्रकार हजारी के प्रयास से न सिर्फ उषा को आगे शिक्षा प्राप्त करने का पूरा मौका मिला बल्कि उसका बाल विवाह भी रूक गया। वहीं दुसरी तरफ उसके इस प्रयास से क्षेत्र में एक नई शुरूआत भी हुई। गांव वाले अब अपनी लड़कियों को आगे पढ़ाने के लिए बाड़मेर भेजने लगे। यह काफी सकारात्मक पहल था क्योंकि इससे पहले आज तक उस गांव से लड़की जिला मुख्यालय पर रहकर नहीं पढ़ी थी। इस तरह से गांव से शिक्षा के लिए एक लड़की के बाहर जाने से धीरे-धीरे क्षेत्र की अन्य लड़कियों को भी अवसर खुलने लगे। -(साभार)