संकष्टी चतुर्थी या संकट चौथ का व्रत

DR D K Garg
पौराणिक मान्यता : यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित होता है.संकष्टी चतुर्थी या संकट चौथ का व्रत संतान की लंबी उम्र व खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है साथ ही इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है। माना जाता है कि संकट चौथ का व्रत व इस दिन गणपति जी की पूजा से सारे संकट दूर हो जाते हैं और संतान की दीर्घायु और सुखद जीवन का वरदान प्राप्त होता है। माघ मास की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी (संकट चौथ) कहा जाता है। संकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रतुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
विश्लेषण: संकट चतुर्थी व्रत को भारत में अत्यंत महत्व दिया जाता है , इसके नाम पर खूब दान करने को कहा जाता है एक कलाकार की बनाई गणेश नामक मूर्ति को ईश्वर की प्रतिमा मान कर उसकी पूजा करना और व्रत के नाम पर अधिक से अधिक खाना , और पूजा तथा व्रत के सही महत्व को न समझते हुए पाखंड को बढ़ावा देना है। .
यह कैसी पूजा है ? या तो हम जानते नहीं है या समझना नहीं चाहते है।
आपके कष्ट दूर होने का सिर्फ एक ही उपाय है की ईश्वर के बताये मार्ग पर चलो ,अच्छे कर्म करते रहो। ईश्वर दयालु है और सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीश है। आपका जन्म कर्म करने के लिए हुआ है ईश्वर पर हुक्म चलाने के लिए नहीं और पूजा के नाम पर भूखे रहने से ईश्वर प्रसन्न नहीं होता बल्कि शरीर कमजोर होता है।
शास्त्रों के अनुसार गणेश का मतलब होता है गण का ईश अर्थात् किसी समूह का मुखिया और पूजा का मतलब है यथायोग्य सत्कार करना यानि गणेश की पूजा से मतलब है कि किसी समूह के मुखिया का यथायोग्य सत्कार करना और व्रत का मतलब भोजन आदि का त्याग नहीं है बल्कि अच्छे काम करने का संकल्प करना लेना है।
गण संख्याने धातु से गण शब्द में ईश जोड़ने से गणेश शब्द बनता है।
ये प्रक्रित्यादयो जडा जीवाश्च गणयन्ते संख्यायन्ते तेषामीश स्वामी पतिः पालको वा अर्थात् जो प्रकृति आदि जड़ पदार्थो का पालक व स्वामी है वही ईश्वर गणेश या गणपति कहलाता है। .
यदि हम पूरे संसार के पदार्थों के समूह के मुखिया को गणेश मानते है तो उसकी पूजा हमें मूर्ति बनाकर करने की जरुरत नहीं है क्योंकि ईश्वर का कोई रूप नहीं होता है , ईश्वर निराकार होता है और इस बात को यजुर्वेद के ३२ वें अध्याय का २ मंत्र स्पष्ट रूप से कहता है कि ईश्वर की कोई प्रतिमा हो ही नहीं सकती है।
जेसे किसी खेल का मुखिया नेता पूरे खेल में आगे रहता है सभी उसी की बात मानते है और एक परिवार में भी एक कोई बड़ा मुखिया होता है सभी उसकी बात मानते है उसका सत्कार करते है ठीक वेसे ही संसार का मुखिया ईश्वर है उसकी ही हमें पूजा करनी है तो उसकी आज्ञा मानना ही उसकी असली पूजा है और ईश्वर की आज्ञा वेदों में है अर्थात् वेदों के अनुसार चलना ही ईश्वर की पूजा है ….
यदि हम शरीरधारी गणेश की बात करते है जो हिमालय के राजा शिव जी का पुत्र है ,वह तो जन्म मृत्यु के बंधन में फसा हुआ है , वह ईश्वर नहीं हो सकता है , ईश्वर तो हमेशा रहता है , ईश्वर काल के बंधन में नहीं आता है ..
पाखंड की तो हद ही हो गई हर साल गणेश की मूर्ति को बनाते हो पूजा के नाम पर लाते हो और ले जाकर पानी में फेंक आते हो ,
ये मत कहना कि मैं पुजारी व मूर्ति बनाने वाले के पेट पर लात मार रहा हूँ या मैं धर्म का विरोधी हूँ। यदि गणेश की पूजा करनी है तो एक दिन नहीं प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय और सायं सूर्यास्त के समय संध्या वंदन के द्वारा करनी चाहिए । ईश्वर पूजा के लिए किसी भी वस्तु की जरूरत नहीं है , न फूल , न धूप , न अगरबत्ती , न भोग के लिए मोदक , न लड्डू , न पहनाने को कपड़ा , कोई आरती नहीं करनी है , न कोई चढ़ावा ही चढ़ाना है सिर्फ एक आसन बिछाकर एकांत में निराकार , सारे संसार के मालिक का धन्यवाद करना है कि हे प्रभु आप ही हो जो सारे संसार को बनाने वाले हो, आप निराकार हो , आप अजर , अमर , अभय , सर्वशक्तिमान हो , आप अंतर्यामी हो , हम आपका ही ध्यान धरते है … हे! प्रभु आप हमें सद्बुधी प्रदान करें , सन्मार्ग पर चलायें। .

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