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कविता

अध्याय … 79 माता मेरी रो रही…..

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भारत में भारत बसे, लेय विशाल स्वरूप।
चक्रवर्ती सम्राट हों , वही पुराने भूप।।
वही पुराने भूप , फिर तक्षशिला नालंदा हों।
हमसे लेकर ज्ञान, ना कोई कभी शर्मिंदा हो।।
सारे भूमंडल को लोग कहें , फिर से भारत।
सब भेदों को, समूल मिटा दे अपना भारत।।

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‘नवभारत’ कैसा बना, जान गये सब कोय।
दिव्य भारत फिर बने, एक ही सपना होय।।
एक ही सपना होय , कभी जो सोने ना दे।
मारे हर उस जालिम को, जो रोने ना दे।।
आतंक मिटे , कहीं ना कोई होवे शरारत।
वही दिव्य भारत होगा, कभी नहीं नवभारत।।

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माता मेरी रो रही, देख-देख अपराध।
घायल है हालत बुरी, कहां छुपा है व्याध?
कहां छुपा है व्याध? – ढूंढना सबको होगा।
जहां मिले जल्लाद , मारना सबको होगा।।
जब एक हो संकल्प , देश तब ही बच पाता।
संकल्प भंग समाज से, दुखी है भारत माता।।

दिनांक : 26 जुलाई 2023

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