मुस्लिम वक्फ बोर्ड और आम नागरिक
1947 के बंटवारे को हम सब देशवासियों को एक गंभीर चुनौती और दुखद त्रासदी के रूप में लेना चाहिए । देश के संजीदा लोग इस बात पर सहमत भी हैं कि हमें देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए। इसके उपरांत भी कुछ लोग हैं जो अभी भी देश के सांप्रदायिक परिवेश को बिगाड़ने के कार्यों में लगे रहते हैं। इनका एक ही उद्देश्य है कि जैसे भी हो उनकी राजनीति की दाल गलनी चाहिए। इसके लिए यदि देश को भी तोड़ना पड़ जाए तो इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
यदि बात मुस्लिम वक्फ बोर्ड की करें तो देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने की सबसे अधिक जिम्मेदारी लगता है वक्फ बोर्ड ने ही ले ली है। इस बोर्ड की गतिविधियों पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है और इसकी गतिविधियों को अप्रत्यक्ष रूप से देश के हित में उचित न मानते हुए इसे चेतावनी भी दी है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अभी कुछ समय पहले 23 जून को यह आदेश दिया कि 1947 से पहले स्थानांतरित की गई किसी भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का अधिकार नहीं होगा। यदि वक्त बोर्ड किसी ऐसी संपत्ति पर अपना अधिकार जमाए हुए है तो उसे ऐसी संपत्ति पर अपना अधिकार छोड़ना होगा। इस प्रकार की संपत्ति से संबंधित किसी भी प्रकार के कागजात कानूनी रूप से मान्य नहीं होंगे। ऐसी संपत्तियों के बारे में वक्फ बोर्ड को यह स्पष्ट करना होगा कि यह संपत्ति उसके पास कानूनी रूप से किस प्रकार आई है ? यदि वक्फ बोर्ड कानूनी कागजात पेश नहीं कर पाता है तो उसकी ऐसी सभी संपत्तियों को उनके मूल स्वामी को लौटा दिया जाएगा।
वास्तव में वक्फ संपत्ति अल्लाह के मार्ग में दिया गया ऐसा दान है जिसे कोई मुस्लिम ही कर सकता है। वह अपनी संपत्ति का कोई भाग या सारी संपत्ति वक्फ के नाम करता है तो वक्फ ऐसी संपत्ति का सदुपयोग गरीबों के कल्याण के लिए करेगा। क्योंकि उसकी ऐसी संपत्ति उन लोगों के कल्याण के लिए ही खर्च की जाएगी जो इस्लाम में विश्वास रखते हैं।
इस संबंध में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वक्फ के लिए अपनी संपत्ति वही व्यक्ति वैधानिक रूप से दान कर सकता है जो बालिग हो और जिसकी मानसिक दशा भी पूर्णतया ठीक हो। कानूनी रूप से अक्षम कोई भी ऐसा व्यक्ति जो अपनी संपत्ति को विक्रय ,दान आदि करने की क्षमता नहीं रखता है वह वक्फ करने के लिए कानूनी रूप से सक्षम नहीं माना जाता।
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति को हड़प कर उसे वक्फ के लिए दान करता है तो ऐसा दान भी अमान्य होता है। यदि ऐसी संपत्ति किसी हिंदू की संपत्ति है तो उसे वक्फ की भूमि के अंतर्गत कभी भी नहीं लिया जा सकता। इसके लिए सबसे आवश्यक तथ्य यह है कि ऐसी संपत्ति वक्फ करने वाले व्यक्ति की निजी संपत्ति होनी चाहिए।
किस प्रकार की संपत्ति के लिए विधिक प्रावधान है कि यदि ऐसी संपत्ति का वास्तविक स्वामी 1947 में हुए भारत के विभाजन के पश्चात भारत को छोड़कर पाकिस्तान चला गया है अथवा 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में उसने पाकिस्तान का साथ दिया था और अपनी इस प्रकार की देश विरोधी सोच और मानसिकता के कारण उसे देश छोड़ना पड़ गया है तो उस स्थिति में वो संपत्ति “शत्रु संपत्ति अधिनियम 2017″ के अंतर्गत सरकार की हो जाएगी।
ऐसे स्पष्ट प्रावधानों के होने के उपरांत भी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की गतिविधियां कुछ इस प्रकार की हो गई थीं कि सरकारी संपत्ति या किसी भी हिंदू की खाली पड़ी हुई भूमि पर वक्फ का बोर्ड लगा देने मात्र से वह सम्पत्ति बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दी जाती है। जिससे अनेक प्रकार के बाद विवाद न्यायालयों में बढ़ रहे हैं । यद्यपि वक्फ बोर्ड भारत के न्यायालयों की भी उपेक्षा कर अपनी संपत्ति के बारे में अपने आप ही निर्णय देने की क्षमता रखता है, पर अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने उपरोक्त आदेश से यह स्पष्ट कर दिया है कि देश का संविधान और देश का कानून सर्वोपरि है। किसी भी संगठन या संप्रदाय को अपनी मनमानी करने का कोई अधिकार नहीं है।
देश में सांप्रदायिक सोच को बढ़ावा देते हुए मुस्लिम वक्फ बोर्ड के लोग जमीनी जिहाद के माध्यम से अपनी मनमानी करने लगे हैं। जिससे शहरों में तो बड़ी भारी कीमत की संपत्तियों पर भी बोर्ड ने कब्जा कर लिया है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय की सक्रियता के चलते हमें उम्मीद करनी चाहिए कि मुस्लिम वक्फ बोर्ड की मनमानी पर अब अंकुश लगेगा। देश में कानून सबके लिए एक जैसा है तो फिर मुसलमानों के इस बोर्ड को भी कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता । कानूनी रूप से जो संपत्ति बोर्ड के पास है उस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए और यदि बोर्ड अपनी मनमानी करते हुए दूसरों की संपत्ति को हड़पने और उसे इस्लाम के प्रचार के लिए प्रयोग करता है तो ऐसी गतिविधियों को राष्ट्र विरोधी आचरण के रूप में ही देखा जाना चाहिए। भीड़ के नाम पर भीड़ का शोषण कर देश के जनमानस के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति अब किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए। इस बोर्ड में बैठे लोग मुसलमानों की सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काकर उनका अनुचित लाभ उठाते हैं। भारी भीड़ को सड़कों पर उतार कर उनके द्वारा नारेबाजी कराते हैं उन्हें देश के खिलाफ बरगलाते हैं , जिससे देश के अन्य वर्गों में प्रतिक्रिया होती है।
इंद्र की मोदी सरकार से हमारा अनुरोध है कि वह वक्त बोर्ड की गतिविधियों पर कड़ी दृष्टि रखते हुए यह भी सुनिश्चित करें कि हिंदुओं के धर्म स्थलों पर किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं लगेगा । वास्तव में हिंदू मंदिरों को जिस प्रकार आज कर देना पड़ रहा है वह मुगलिया काल का जजिया कर ही है। जब सरकार प्रत्येक प्रकार की गुलामी के प्रतीकों को मिटाने की बात करती हो तो उस समय इस प्रकार का जजिया या कर लगाया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
यह एक आश्चर्यजनक तत्व है कि 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान और बांग्लादेश जितना भूभाग भारत से ले गए थे लगभग उतने ही भूभाग पर इस समय मुस्लिम वक्फ बोर्ड ने कब्जा कर लिया है। देश के आम नागरिकों को भी देश की संपत्ति पर या जनसाधारण की संपत्ति पर मुस्लिम वक्फ बोर्ड द्वारा कब्जे की की जा रही किसी भी प्रकार की कार्यवाही पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए । उन्हें कानून को अपने हाथ में ना लेकर इस गलत कार्य की सूचना सरकार और न्यायालय को देनी चाहिए। जब आम नागरिकों की सहभागिता सरकार के कार्यों को पूर्ण करने में हो जाती है तो उस समय वास्तव में सुख समृद्धि और आनंद की अनुभूति करता है। यदि देश का आम नागरिक जागरुक होकर सरकार को इस प्रकार के कार्यों में सहयोग देने लगे तो सरकार / कोर्ट उस जमीन को वक्फ बोर्ड के अतिक्रमण से मुक्त करवाने के लिए बाध्य होगी।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं। )