कुछ प्रबृद्घ – बुद्घिजीवियों के विचार इस प्रकार हैं।
७६ वर्षीय वकील – २० वर्ष बाद देखना। देश का प्रधानमंत्री कोई मुस्लिम ही होगा। बी.डी.ओ. ने भी कहा कि वकील साहब ठीक कह रहे हैं- जब उनसे कहा गया कि काम करने वाले संगठन को बल प्रदान करें। आर्थिक सहयोग दें या समय दें। उत्तर मिला – इस पर मै क्यों सोंचू ? जो होंगे वे अपने आप भुगतेंगे। ७० वर्षीय पूर्व प्रधानाध्यापक – मुस्लिम राज तो निश्चित से आने वाला है क्योंकि हम छोटे परिवार के प्रबल समर्थक हैं और वे बडे – बडे परिवार के समर्थक हैं। एक चींटी भी भला हाथी से लड़ सकती है इसलिए कोई सहयोग नहीं दूंगा। ५० वर्षीय डाक्टर- मेरी तो केवल दो लडकियां थीं जिन्हें अच्छा पढ़ा लिखाकर योग्य बना दिया है। देश के बारे में, मै क्यों सोंचू ? (ऐसे डाक्टर छह बच्चों का पालन पोषण भली प्रकार से कर सकते हैं) ६२ वर्षीय इंजीनियर- मेरे ३ बच्चे हैं। तीनों की शादियां हो चुकी हैं मुझे अच्छी पेन्शन मिलती है। मै तो निश्चिंत हूँ। हिन्दुओं का प्रतिशत तो घटना ही है जब मुसीबत आएगी तब वे निपटेंगे जो होंगे। मैं तो पूजा पाठ में लगा रहता हूं। मुझे राजनीति से कोई लगाव नहीं है। ४८ वर्षीय व्पापारी – मै तो मध्यम परिवार चाहता हूं लेकिन लड़का नहीं मानता है। एक ही बच्चा है और पत्नी का आपरेशन करा दिया है अत: हिन्दुओं पर संकट तो आना ही है। मै कुछ करने में असमर्थ हैं। इस प्रकार हमने देखा कि बुद्घिजीवी वर्ग जनसंख्या के महत्व को जानता है किन्तु कुछ देना या करना नहीं चाहता है। अन्त में हम कहेंगे कि यदि हिन्दू ने वीर सावरकर और भाई परमानन्द की पार्टी अखिल भारत हिन्दू महासभा को मजबूत व शक्तिशाली बनाने में रूचि नहीं ली तो भविष्य में उसकी पीढिय़ों को भारी मुसीबतों का सामना करना पडेगा। ईश्वर, हिन्दू को सद्बुद्घि दे।