226
नाच दिखाके शांत हो , करे नर्तकी रोज ।
प्रकृति पीछे हटे , हो जाता जब मोक्ष।।
हो जाता जब मोक्ष, जगत रचा ईश्वर ने।
जीवों का कल्याण हो, भाव रखा ईश्वर ने।।
स्वभाव जैसा जीव का, वही रचाता रास ।
अपनी अपनी साधना,अपना अपना नाच।।
227
तीन, पांच ,सोलह जुड़ें, संख्या है चौबीस ।
इनसे ही सब जग रचा ,छुपा कहीं जगदीश।।
छुपा कहीं जगदीश, समझ बिरला ही पाता ।
जिसने समझा खेल, वही बिरला कहलाता।।
चौबीस में सिमटा है, सारा खेल मेरे मीत ।
ईश्वर ,जीव, प्रकृति , ये अजर – अमर हैं तीन।।
( तीन अर्थात अव्यक्त, महतत्व, अहंकार । शब्द, स्पर्श ,रूप, रस गंध 5 तन्मात्राऐं।11 इंद्रियां ,पंचमहाभूत कुल 16 हुए . सबकी संख्या बन गई 24। इन्हीं से सारा चराचर जगत बना है।)
228
मनमोहक मुझको लगे, जब होवे बरसात।
रिमझिम रिमझिम हो रही, भीग रहा है गात।।
भीग रहा है गात , खुशी मनाते हैं सब लोग।
धनधान्य घर में आता, धूम मचाए सारा लोक।।
हरियाली सर्वत्र फैलती, बनी हुई है मोहक।।
खेत खलिहान की रौनक लगती है मनमोहक।।
दिनांक : 26 जुलाई 2023