वैश्विक स्तर पर आ रही विभिन्न आर्थिक समस्याओं के बीच, वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही, अप्रेल-जून 2023, में सेवा क्षेत्र में हुए अतुलनीय सुधार के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत की अर्थव्यवस्था में उक्त विकास दर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा हाल ही में कैलेंडर वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर दर्ज की गई 3.5 प्रतिशत की विकास दर की तुलना में कैलेंडर वर्ष 2023 एवं 2024 में 3 प्रतिशत रहने के अनुमान से सर्वथा विपरीत है। वैश्विक स्तर पर विभिन देशों में मुद्रा स्फीति की समस्या को हल करने के उद्देश्य से लगातार की जा रही ब्याज दरों में वृद्धि के चलते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर के अनुमान को 3.5 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया गया था। भारत के संदर्भ में पूर्व में यह अनुमान लगाया गया था कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कैलेंडर वर्ष 2023 के दौरान 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा सकेगी। परंतु, अप्रेल 2023 में इस अनुमान को बढ़ाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 के प्रथम तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर के 7.8 प्रतिशत रहने एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 6.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना जताई गई थी। परंतु, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 43 प्रमुख आर्थिक सूचकांकों में वित्तीय वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही, जनवरी-मार्च 2023, की तुलना में वित्तीय 2023-24 की प्रथम तिमाही के दौरान लगातार हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों के आधार पर यह अनुमान लगाया था कि भारत की विकास दर प्रथम तिमाही के दौरान 8.3 प्रतिशत रहेगी।
केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया है। केंद्र सरकार के वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में से प्रथम तिमाही के दौरान 27.8 प्रतिशत का पूंजीगत व्यय सम्पन्न किया जा चुका है। पूंजीगत व्यय में इसी प्रकार की वृद्धि कई राज्य सरकारों के बजट खर्चों में भी दिखाई दे रही है। जैसे, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश के पूंजीगत खर्चों में 41 प्रतिशत की वृद्धि दर दृष्टिगोचर हुई है। इसी प्रकार की वृद्धि कम्पनियों की लाभप्रदता में भी दिखाई दे रही है। कम्पनियों के टैक्स अदा करने के उपरांत लाभ की राशि में वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही के दौरान 30 प्रतिशत की वृद्धि (पिछले तिमाही की तुलना में) दर्ज की गई है। विशेष रूप से बैंक, ऑटो, सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मा एवं रिफाईनरी क्षेत्र की कम्पनियों में भारी वृद्धि दर अर्जित की गई है। यहां यह ध्यान देने की बात है कि जनवरी-मार्च 2023 तिमाही के पूर्व तक कुछ क्षेत्रों की कम्पनियों की लाभप्रदता में कुछ दबाव दिखाई दे रहा था परंतु इसके बाद से स्थिति में तेजी से सुधार दिखाई दे रहा है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र की कम्पनियों की उत्पादन क्षमता के दोहन में भी सुधार दिखाई दे रहा है, जो अब 75 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया है। सामान्यतः उत्पादन क्षमता का दोहन 75 प्रतिशत से अधिक होने की स्थिति में औद्योगिक इकाईयां अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के बारे में विचार करने लगती हैं। भारत की औद्योगिक इकाईयां अब इस स्थिति में पहुंच गई दिखाई दे रही हैं क्योंकि बैंकों द्वारा प्रदान की जा रही ऋण की राशि में पिछले कुछ समय से लगातार तेजी दिखाई दे रही है। समस्त अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के ऋणों में अप्रेल- 28जुलाई 2023 की अवधि के दौरान 19.7 प्रतिशत की वृद्धि अर्जित हुई है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 14.5 प्रतिशत थी। ऋण राशि में वृद्धि दर लगातार पिछले कई तिमाहियों से दहाई के आंकड़े पर बनी हुई है। जबकि इन्हीं बैकों की जमाराशि में वृद्धि दर 12.9 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में मात्र 9.2 प्रतिशत रही थी। ऋण की राशि में यह वृद्धि दर ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि दर के चलते भी सम्भव हो सकी है। विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति (ऋण राशि में वृद्धि, लाभप्रदता में वृद्धि, पूंजी पर्याप्तता अनुपात में वृद्धि, गैर-निष्पादनकारी आस्तियों में कमी, आदि) में लगातार सुधार दर्ज करते हुए अब यह बैंक मजबूत स्थिति में पहुंच गए हैं। सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में 34,418 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया है, जबकि पूरे वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह एक लाख करोड़ रुपए के आसपास रहा था। पूंजी बाजार में इन बैंकों के शेयरों की कीमत में भी हाल ही के समय में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। किसी भी देश के बैंक यदि मजबूत स्थिति में पहुंच जाते हैं तो उस देश के अन्य क्षेत्र के उद्योगों को ऋण की उपलब्धता में आसानी होती है और इसके चलते विभिन उद्योगों के उत्पादन में वृद्धि दर्ज होने लगती है। औद्योगिक क्षेत्र में बैकों को इसीलिए केंद्रीय भूमिका में रखा जाता है।
भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था में, विभिन्न आर्थिक मानकों पर, लगातार सुधार हो रहा है जिसके चलते भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2023-24 के प्रथम तिमाही में 7.8 प्रतिशत रही है। परंतु, साथ ही, अब वैश्विक स्तर पर कुछ इस प्रकार की घटनाएं घट रही हैं जिनका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक रूप से पढ़ता दिखाई दे रहा है। विशेष रूप से चीन की अर्थव्यवस्था, जो विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, हाल ही के समय में बहुत गम्भीर स्थिति का सामना कर रही है। चीनी सरकार द्वारा देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने हेतु किये जा रहे विभिन्न उपायों का कोई भी सकारात्मक असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। प्रतिकूल जनसांख्यिकी, अमेरिका तथा यूरोपीयन देशों के साथ चीन की बढ़ती दूरियां तथा चीन के अपने पड़ौसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधो के नहीं होने से चीन की आर्थिक स्थिति और अधिक खराब होने की सम्भावना बताई जा रही है। चीन में पिछले 40 वर्षों के दौरान लगातार सफलता पूर्वक चल रहे आर्थिक मॉडल पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। वैश्विक स्तर पर कई अर्थशास्त्रियों का अब यह मानना है कि चीन की अर्थव्यवस्था बहुत धीमी वृद्धि दर के युग में प्रवेश करती दिखाई दे रही है।
चीन की अर्थव्यवस्था में यदि आर्थिक संकट जारी रहता है तो इसका सीधा सीधा फायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि वैसे भी कोरोना महामारी के बाद से उद्योग जगत में वैश्विक स्तर पर यह सोच विकसित हो चुका है कि चीन के साथ ही अन्य किसी देश में भी उत्पादन इकाई का होना बहुत जरूरी है। इस विचार को ‘चीन+1’ का नाम दिया गया है। परंतु, अब तो चीन में लगातार गहराते आर्थिक संकट के बीच कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी औद्योगिक इकाईयों को चीन से अन्य देशों में स्थानांतरित करने के बारे में गम्भीरता से विचार किया जा रहा है और कुछ कम्पनियों द्वारा तो अपनी विनिर्माण इकाईयां अन्य देशों में स्थानांतरित भी की जा चुकी हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की इस नीति का सबसे अधिक लाभ भारत को मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स द्वारा जारी की गई एक जानकारी के अनुसार चीनी सरकार व सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों के विभिन्न स्तरों पर लिए गए कुल ऋण वर्ष 2022 तक चीन के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 300 प्रतिशत तक पहुंच गए थे जो वर्ष 2012 में 200 प्रतिशत से भी कम थे। अब चीन में कई सरकारी कम्पनियां ऋण के इस बोझ को कम करने के लिए जूझ रही हैं और उन्हें ऋण पर ब्याज अदा करने के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा है। चीन में युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 21 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। चीन की कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है क्योंकि वहां युवा नागरिक बच्चे पैदा करने से बच रहे हैं। चीन इस समय अपस्फीति (डीफलेशन) की स्थिति से गुजर रहा है। चीन के नागरिकों के हाथ में पैसा होने के बावजूद वे उत्पादों की खरीद नहीं कर रहे हैं, इससे विभिन्न उत्पादों की कीमतें कम हो रही हैं, कम्पनियों की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, कम्पनियां अपना उत्पादन घटा रही है जिससे अंततः बेरोजगारी की दर बढ़ रही है।
चीन की अर्थव्यवस्था यदि लम्बे समय तक ढलान पर बनी रहती है तो इन परिस्थितियों के बीच भारत के उद्योग जगत को लाभ उठाना चाहिए। जिन जिन देशों में चीनी उत्पादों का निर्यात कम हो रहा है ऐसे क्षेत्रों में भारत की कम्पनियों को अपनी पैठ बना लेने का यह सही समय है। चीन के सम्बंध कई पश्चिमी एवं पड़ौसी देशों से अच्छे नहीं हैं, यह समस्त देश भारत के मित्र देश हैं। इन परिस्थितियों के बीच भारत के उद्योग जगत को आगे आकर अपने उत्पादों को इन बाजारों में प्रोत्साहित करना चाहिए। चीन से विस्थापित होने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में आकर्षित करना चाहिए ताकि वे अपनी औद्योगिक इकाईयों को भारत में हस्तांतरित करें। इससे भारत में आर्थिक गतिविधियों को और अधिक बल मिलेगा। हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था पहिले से ही बहुत मजबूत अवस्था में पहुंच चुकी है, इसे और अधिक बल प्रदान किया जा सकता है ताकि भारत की विकास दर 10 प्रतिशत के आसपास पहुंच सके।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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