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आज की भोर(04/07/2012)-भाइयो से प्रेम करो

वेद का आदेश है-
माँ भ्राता भ्रातरन द्विक्षत ।

भाई भाई में द्वेष न करे , भाई भाई से न लड़े और न झगड़े । परिवार में सुख , शांति और आनंद का मूल है भाइयो से प्रेम । भाइयो से द्वेष होने से परिवार नष्ट हो जाते है , संपत्ति वकीलो और कचहरियों की भेट हो जाती है , घर बर्बाद हो जाते है । भाइयो से प्रेम होने से घर स्वर्ग धाम बन जाते है । मेल-मिलाप से दरिद्रता के दिन भी सुखपूर्वक व्यतीत हो जाते है । भाइयो से प्रेम करो और प्रेम का आदर्श सीखो श्री राम , लक्ष्मण और भारत जी से । जिस समय श्री राम ने अपने राज्याभिषेक की बात सुनी तो उन्हे बड़ा आश्चर्य हुआ । गोस्वामी तुलसीदास जी ने उस समय का चित्रण यूं किया है-

जनमे एक संग सब भाई ।
भोजन शयन केली लरिकाई ॥
करनबेध उपवीत बियाहा ।
संग संग सब भये उछाहा ॥
विमल वंस याहू अनुचित एकू।
बंधु विहाइ बड़ेहि अभिषेकू ॥

अर्थ-श्री राम कहते है -हम सब भाई एक ही साथ जन्मे है और बालकपन से ही भोजन , शयन ,खेल-कूद ,कर्णबेध ,यज्ञोपवीत और विवाह संस्कार आदि भी साथ हुए ,परंतु हमारे निर्मल कुल में यह बड़ी अनुचित बात है कि छोटे भाइयो को छोडकर राज्यतिलक बड़े को ही हो ।
कैसा आदर्श मातृ-प्रेम है !
महाराजा दशरथ का देहांत हो गया । श्री राम के वनवास और महाराज की मृत्यु के वृत्तान्त को गुप्त रखकर भरत जी को अयोध्या बुलाया गया । भरत जी के अयोध्या पहुचने पर जब उन्हे माता कैकेयी से पिता जी के मरने का वृत्तान्त ज्ञात हुआ तब वे विलाप करते हुए बोले-
अभिषेक्ष्यति रामं नु राजा यज्ञम नु यक्षते ।
इत्यहं कृतसंकलपों हयष्टों यात्रामयासीषम ॥
हे माता ! मैं संभकता था कि महाराज श्री राम को राज्य देकर स्वंय कोई यज्ञानुष्ठान करेंगे । इसलिए मैं प्रसन्न हो वह से चला था ।
भरत ने विलाप ही नहीं किया अपितु अपने भाई को वापस लाने के लिए वे वनो में गए । जब श्री राम किसी भी प्रकार से लौटने के लिए तैयार नहीं हुए तो भारत जी श्री राम को चरण-पादुकाए लेकर वापस आए और स्वंय १४ वर्ष तक नंदी ग्राम नामक आश्रम में वानप्रस्थों का जीवन व्यतीत करते रहे ।
यह तो राम के प्रति भारत का स्नेह है अब , श्री राम के प्रेम का भी अवलोकन कीजिये । वन को जाते समय श्री राम अयोध्यावासियों से कहते है-
हे अयोध्यावासियों ! आप लोगो कि जैसी प्रीति , आदर और बहुमान मुझमे है , मेरी प्रसन्नता के लिए आप भारत के प्रति भी वैसा ही आदर और मान रखना ।
श्री लक्ष्मण का स्नेह तो जगतप्रसिद्ध है । वे अपने सुखो को छोड़ श्री रामके साथ वन को चल दिये । जहां श्री राम का पसीना गिरता था , वहाँ वे अपना रक्त बहाने को सदा प्रस्तुत रहते थे । कबंध राक्षस ने श्री राम और लक्ष्मण को पकड़ लिया तो लक्ष्मण जी ने कहा था-हे भाई ! इस कबंध राक्षस के लिए मेरी बाली देकर अपनी रक्षा कार्लो , फिर सीता को प्रपट कर पूरे अयोध्या के राजसिंहाशन पर आरूढ़ हो कभी-कभी मेरा स्मरण कर लिया करना ।
प्रस्तुति-अमन आर्य

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